Friday, April 19, 2024
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NSG: चीन समेत छह देशों का विरोध जारी, आखिरी बैठक आज

न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता को लेकर देर रात तक चली बैठक में 48 में से 47 सदस्य तो भारत को अपना समर्थन दे चुके हैं, लेकिन चीन की अभेद दीवार अभी भी टस से मस होने का नाम नहीं ले रही है।

India TV News Desk India TV News Desk
Updated on: June 24, 2016 8:20 IST
CHINA- India TV Hindi
CHINA

सियोल: न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता को लेकर देर रात तक चली बैठक के बाद भी चीन समेत छह देशों (ब्राजील, ऑस्ट्रिया, न्यूजीलैंड, तुर्की और आयरलैंड) ने भारत की सदस्यता को समर्थन नहीं दिया। 48 सदस्यों वाले एनएसजी में चीन अब भी अपने रूख से पीछे हटने को तैयार नहीं है। इससे पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ताशकंद में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात कर उनसे समर्थन देने की अपील की थी। आपको बता दें कि चीन अब भी इस बात पर अड़ा है कि अगर भारत को एनपीटी में हस्ताक्षर किए बगैर एनएसजी में शामिल किया जा सकता है तो फिर पाकिस्तान को क्यों नहीं?

आज होगी आखिरी कोशिश:

सियोल में इस मसले पर चल रही बैठक में आज फिर से एक बार सभी सदस्य इस पर चर्चा करेंगे। हो सकता है कि इस बैठक में सभी सदस्यों में एक राय बन जाए। वहीं दूसरी तरफ चीन ने यह भी कहा है कि एनएसजी में भारत की सदस्यता के मुद्दे को लेकर भारत और चीन संबंधों में और द्विपक्षीय रिश्तों पर कोई असर नहीं आएगा। जानकारी के मुताबिक भारत के वरिष्ठ अधिकारी भी कड़ी मशक्कत कर रहे हैं साथ ही अमेरिका भी एनएसजी में भारत के समर्थन के लिए देशों को मनाने में जुटा हुआ है।    

जानिए क्यों बना NSG और क्या था इसका मकसद:

NSG यानी न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह) 48 देशों का ऐसा समूह है जो परमाणु संपन्न हैं और वो पूरा दुनिया में परमाणु प्रसार रोकने के मकसद से काम करता है। इतना ही नहीं ये देश परमाणु विस्तार कार्यक्रमों में उस तकनीक को भी नियंत्रित करने का काम करते हैं जिसका इस्तेमाल किया जा सकने की संभावना होती है। आपको बता दें भारत ने साल 1974 में परमाणु परीक्षण किया था। इसके ठीक एक साल बाद यानी साल 1975 को ही परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) का गठन हुआ था। इसी साल इसकी एक बैठक भी हुई थी। साल 2016 तक आते आते इसमें फिलहाल 48 देश ही सदस्य के तौर पर जुड़ पाए हैं। इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य यह था कि दुनिया में किसी भी तरह परमाणु हथियारों की होड़ को रोका जाए।  

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