Friday, April 26, 2024
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Exclusive | किस 'डर' से मुंबई टीम छोड़ विदर्भ से खेलने लगे रणजी लीजेंड वसीम जाफर? खुद बताई वजह

जीत के बाद, indiatvnews.com ने इस दिग्गज क्रिकेटर के साथ टेलीफोन पर बातचीत की, जहां उन्होंने इस जीत पर चर्चा की, और पिछले कुछ वर्षों में भारतीय क्रिकेट और भारतीय क्रिकेट टीम में आए बदलावों के बारे में भी बात की। यहां पढ़ें पूरा इंटरव्यू:

India TV Sports Desk Written by: India TV Sports Desk
Updated on: February 14, 2019 14:23 IST
Exclusive | क्यों मुंबई टीम छोड़ विदर्भ से खेलने लगे रणजी लीजेंड वसीम जाफर? खुद बताई वजह- India TV Hindi
Image Source : PTI Exclusive | क्यों मुंबई टीम छोड़ विदर्भ से खेलने लगे रणजी लीजेंड वसीम जाफर? खुद बताई वजह

विदर्भ ने हाल ही में रणजी ट्रॉफी के फाइनल में सौराष्ट्र को उनके घरेलू मैदान नागपुर में 78 रन से हराकर इतिहास रचा था। यह विदर्भ का लगातार दूसरा खिताब है। हालांकि भले ही एक पूरी टीम की मेहनत थी जिससे विदर्भ ने इतिहास रचा और रणजी जीतने वाली छठी टीम बनी। लेकिन, विदर्भ टीम के अलावा उनके सलामी बल्लेबाज वसीम जाफर ने भी दसवीं बार ट्रॉफी जीतकर इतिहास रच दिया।

जीत के बाद, indiatvnews.com ने इस दिग्गज क्रिकेटर के साथ टेलीफोन पर बातचीत की, जहां उन्होंने इस जीत पर चर्चा की, और पिछले कुछ वर्षों में भारतीय क्रिकेट और भारतीय क्रिकेट टीम में आए बदलावों के बारे में भी बात की। यहां पढ़ें पूरा इंटरव्यू:

10वां रणजी ट्रॉफी खिताब जीतने पर बधाई।

आपका बहुत- बहुत धन्यवाद!

दो सालों में दो खिताब जीतकर कैसा लग रहा है?
वाकई बहुत अच्छा लग रहा है। सबसे पहले, विदर्भ का दो खिताब जीतना कोई सामान्य बात नहीं है। यह टीम के इतिहास में पहली बार हुआ है जोकि इसे एक असाधारण उपलब्धि बनाता है।

विदर्भ लगातार 22 प्रथम श्रेणी मैच में नहीं हारा है। क्या आप हमें इस यात्रा के बारे में कुछ बता सकते हैं?
बिल्कुल, बिना किसी शक के, पिछले कुछ वर्षों में हमें जो नतीजे मिले हैं उसके लिए मानसिकता में बदलाव एक बड़ा कारण है। हमारे प्रमुख खिलाड़ी लगभग 3-4 साल पहले की तुलना में अब भी वही हैं, इसलिए ऐसा नहीं है कि कुछ नए खिलाड़ी हैं जिन्होंने नतीजे दिए हैं। 

क्या टीम की मानसिकता में बदलाव आया है, खासकर कोच चंद्रकांत पंडित के आने से?
हां, पंडित के आने से खिलाड़ियों के बीच जीत की मानसिकता पैदा हुई है। अब, वे केवल जीतने की मानसिकता के साथ खेलते हैं और इसलिए आत्मविश्वास का स्तर भी बढ़ गया है जो मेरी राय में, प्रतिस्पर्धा करने और अच्छी तरह से खेलने के लिए बिल्कुल जरूरी है। यदि आप केवल खेल रहे हैं, या आप हारने के बाद भी बुरा महसूस नहीं करते हैं, तो आपको अपने आप को देखने और खेल खेलने के तरीके के बारे में लंबा और कठिन सोचने की जरूरत है। इससे पहले, विदर्भ घर पर अच्छा खेलता था लेकिन उनसे उम्मीद की जाती थी, और ज्यादातर ऐसा करते थे, कि घर से बाहर हार जाते थे। वह मानसिकता अब बदल गई है।

आपने मुंबई के लिए कई सालों तक खेला और उनके साथ खिताब भी जीते। लेकिन आप 2015-16 में विदर्भ चले गए। क्या आप बता सकते हैं कि आपके इस कदम से पीछे क्या मकसद था?
देखिए, मुझे महसूस हुआ कि मैं अपने करियर में एक ऐसे मुकाम पर हूं जहां मैं अब दोबारा भारत के लिए नहीं खेलने पाऊंगा। व्यक्तिगत स्तर पर, मैं खुद को भी चुनौती देना चाहता था। इसके अलावा, वनडे टीम से मुझे ड्रॉप करने के बारे में भी खबरें थीं, जबकि मैं उस सीजन में वनडे मैचों में मुंबई के लिए सबसे अधिक रन बनाने वाला खिलाड़ी था। इसलिए, मुझे इस बात का अहसास था कि वे अभी या कुछ समय बाद मुझसे अलग विकल्प देख सकते हैं। और फिर मैंने सोचा कि अगर मैं खुद ही बाहर निकल जाऊं तो बेहतर होगा, क्योंकि आप जानते हैं कि मुंबई की टीम भारतीय टीम में चुने जाने की सीढ़ी है। मैं राष्ट्रीय टीम पर नजर रखने वाले नौजवानों के रास्ते में नहीं आना चाहता था। मैं इस बात का भी इंतजार करना नहीं चाहता था कि 18-19 साल तक उनके साथ खेलने के बाद वे मुझे टीम से बाहर करें। मैं ऐसी टीम के लिए खेलना चाहता था जहां मैं कुछ खास कर सकता था, एक ऐसी टीम जो जीतना चाहती हो ताकि मैं उन्हें अधिक मैच जीतने में मदद कर सकूं। विदर्भ ने मुझे एक प्रस्ताव दिया और मैंने देखा कि वे एक टीम के रूप में सुधार कर रहे हैं। उन्होंने सुब्रमण्यम बद्रीनाथ, गणेश सतीश जैसे कैलिबर वाले खिलाड़ियों को तराशा है। मेरे लिए यह एक अच्छा फैसला साबित हुआ। 

23 साल का लंबा करियर और उसके बाद घरेलू क्रिकेट में सब कुछ हासिल कर लेने के बाद, क्या आप इन सभी वर्षों में से अपना सबसे शानदार पल चुन सकते हैं?
मुझे लगता है, सबसे पहले मैंने जिस समय मुंबई के लिए रणजी ट्रॉफी खेली थी, वह मेरी पहली सबसे बड़ी उपलब्धि थी। इसलिए क्योंकि उनकी सितारों से सजी टीम में जगह पाना एक बड़ी बात थी। इसके बाद, इतने लंबे समय तक टीम में अपना स्थान बनाए रखना। भारत के लिए खेलना निश्चित रूप से मेरे करियर का सबसे बड़ा सम्मान था। जब मैंने अपना डेब्यू किया, तो मेरा परिवार, माता-पिता सभी मुझ पर गर्व कर रहे थे। हजारों खिलाड़ियों में से देश के लिए खेलने के लिए कुछ चुनिंदा ही मिलते हैं, इसलिए निश्चित रूप से यह मेरा सबसे यादगार पल है।

इस साल रणजी ट्रॉफी में कुल 37 टीमें खेल रही थीं। कुछ साल पहले, बीसीसीआई ने टूर्नामेंट के लिए तटस्थ स्थानों के प्रयोग की भी कोशिश की। लेकिन यह स्पष्ट है कि रणजी मैच जहां भी खेले जा रहे हैं, वहां पर फैंस की संख्या घटती रही है। इसके लिए बहुत सारे कारण जिम्मेदार हैं, लेकिन क्या आप एक या दो ऐसे स्टेप्स के बारे में बता सकते हैं जिन्हें क्राउड को वापस लाने के लिए उठाया जाना चाहिए?

जाहिर तौर पर 'घर और बाहर' फॉर्मेट में खेलना काफी जरूरी है क्योंकि यह टीमों को प्रतिस्पर्धा का मौका देता है। लेकिन तटस्थ स्थानों पर, अगर घरेलू टीम नहीं खेल रही है, तो कई लोग खेल को देखने के लिए नहीं जाएंगे। दूसरा, मुझे लगता है कि छोटे और कम फेमस स्थानों पर खेलना भी उतना ही महत्वपूर्ण है क्योंकि हमें खेल को छोटे शहरों और गांवों तक ले जाना होगा। हमने कई बार देखा है कि ऐसे स्थानों पर मैच देखने के लिए अधिक लोग आते हैं ...उदाहरण के लिए लाहिली, हरियाणा?

जी बिल्कुल। क्योंकि अगर एक बार क्रिकेट ऐसी जगहों पर पहुंच जाए और लोग पेशेवर खिलाड़ियों को खेलते हुए देखेंगे, तो निश्चित रूप से ये उन लड़कों और लड़कियों में उत्सुकता जगाएगा जो क्रिकेट को करियर बनाने के लिए गंभीर हैं। यह उन्हें अधिक फेसम और बड़े स्थानों के विपरीत खेलने के लिए प्रेरित करेगा जहां रणजी ट्रॉफी के बारे में उतना आकर्षण नहीं है।

क्या रणजी ट्रॉफी में DRS का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, खासकर नॉक-आउट गेम्स में?
निश्चित रूप से! यदि संभव हो तो। बीसीसीआई को निश्चित रूप से नॉक-आउट स्टेज में तो इसे जरूर लागू करना चाहिए क्योंकि कई अंपायरिंग फैसले इसके इससे मैच को बदल सकते हैं, जैसा कि मैंने अतीत में देखा है। हालांकि लीग मैचों में इसका उपयोग करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि वे बहुत ज्यादा हैं। लेकिन नॉकआउट स्टेज और जिन मैचों का सीधा प्रसारण होता है, उनमें इस सिस्टम का उपयोग करना चाहिए।

इस साल के फाइनल के दौरान आपके प्रतिद्वंद्वी रहे चेतेश्वर पुजारा (सौराष्ट्र के प्लेयर), और आपको अक्सर बल्लेबाजों के एक अलग वर्ग में रखा जाता है। कम से कम बाहर से देखने वाले लोगों को तो यही लगता है कि आप दोनों के पास एक स्ट्रॉन्ग डिफेंसिव गेम है और इसलिए वे आप पर बहुत भरोसा भी करते हैं। आपके मुताबिक वो क्या है जो आप दोनों को बाकी लोगों से अलग करता है?
मुझे लगता है कि जिस पीढ़ी से हम दोनों आते हैं, वह उसी तरह की क्रिकेट है जिसे हमने बड़े होते हुए सीखा है - अपने डिफेंस पर भरोसा...

... 'अपनी पीढ़ी' से आपका मतलब गैर-आईपीएल पीढ़ी से है?
बिल्कुल। हमारे समय के दौरान आईपीएल या टी20 जैसी कोई चीज नहीं थी। इसलिए हमें हमेशा ग्राउंड शॉट्स पर ध्यान देना, कम जोखिम लेना और पूरे दिन बल्लेबाजी करना सिखाया गया। आज के क्रिकेटरों के लिए यह बहुत मुश्किल है। साथ ही, मेरी राय में यह आज की दुनिया में काफी अप्रासंगिक भी है। इन दिनों जिस तरह की क्रिकेट खेली जा रही है, अगर आप उसे पुराने स्कूल के अनुसार खेलते रहेंगे, तो कि आप कितना क्रिकेट खेल पाएंगे? कोई भी आपको T20 के लिए कंसीडर नहीं करेगा, न ही वे आपको वनडे मैचों के लिए चुनेंगे। इसलिए, अब समय बदल गया है। व्यक्ति को समय के साथ स्वयं को ढालते रहना है।

लेकिन हाल ही में भारत के ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान, पुजारा ने 500 से अधिक रन बनाए और दोनों टीमों के बीच सबसे बड़ा अंतर रहे ...
हाँ, मैं मानता हूँ कि आपके पास एक अच्छा डिफेंस होना चाहिए, लेकिन मैं नहीं मानता कि यह आज के समय में आपका प्रमुख खेल हो सकता है। आज के क्रिकेटर के लिए चुनौती यह है कि उन्हें पता होना चाहिए कि तीनों प्रारूपों में अच्छा कैसे खेलना है। यदि आप पुजारा के मामले को लेते हैं, तो वह केवल एक फॉर्मट खेलने में सक्षम है। हालाँकि वह अब भारतीय टीम में एक स्थापित खिलाड़ी है, कोई खिलाड़ी आज उसे कॉपी करने के बारे में नहीं सोच सकता है अन्यथा वे एक साल के दौरान ज्यादा नहीं खेल पाएंगे।

छोटे शहरों की बात करें, तो क्या आपको लगता है कि इस खेल में पिछले कुछ वर्षों में लोकतांत्रिकरण हुआ है, क्योंकि हम देश के विभिन्न हिस्सों से खिलाड़ियों और टीमों को रैंकों के माध्यम से देखते हैं, जैसे कि, सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर ?
मुझे लगता है कि अधिकांश राज्यों में खेल में बहुत सुधार हुआ है। आंध्र प्रदेश ने शानदार तरीके से इस खेल को अपनाया है, विदर्भ ने अब दो बार ट्रॉफी जीती है और केरल अब एक अच्छी टीम है। मुझे याद है कि जब मैं अंडर -19 खेलता था, तो गुजरात एक कमजोर टीम थी, लेकिन उन्होंने अब रणजी ट्रॉफी और विजय हजारे टूर्नामेंट जीते हैं। इसलिए अच्छी और बुरी टीमों के बीच की खाई अब देश भर के बुनियादी ढांचे के विकास के कारण बहुत कम हो गई है। एलीट प्लेट में अब पश्चिम क्षेत्र की पांच टीमें शामिल हैं। गोवा और असम जैसी कमजोर टीमें भी खराब नहीं हैं क्योंकि उन्होंने रणजी सेमीफाइनल में भी जगह बनाई है। झारखंड जैसी टीम, जिसे पहले अच्छी टीम भी नहीं माना जाता था, अब टॉप टियर में शुमार हो गई है और इसने हमें एमएस धोनी जैसे दिग्गज खिलाड़ी दिए हैं। यह भारतीय क्रिकेट के लिए वास्तव में बहुत अच्छी खबर है और यही कारण है कि मेरा मानना है कि रणजी ट्रॉफी जीतना आजकल उतना आसान नहीं है।

भारत के इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने वाले उमेश यादव, विदर्भ के लिए आपकी टीम के साथी हैं। जब से उन्होंने भारत के लिए डेब्यू किया है, हमने उनकी गेंदबाजी में बहुत सुधार देखा है, खासकर पिछले दो वर्षों में। उनके डेवलपमेंट पर आपके क्या विचार हैं?
मुझे निश्चित रूप से लगता है कि इस साल नॉक आउट के दौरान विदर्भ के लिए उसकी मौजूदगी ने हमारे लिए बहुत बड़ा काम किया। जाहिर है, अगर आपकी टीम में कोई 140+ kph की स्पीड से इंटरनेशनल गेंदबाजी करने वाले गेंदबाज मौजूद है तो यह आपको हमेशा मदद करता, इसमें कोई संदेह नहीं है। यह उसके पास मौजूद एक्स-फैक्टर है। आप सामान्य तौर प्रथम श्रेणी स्तर पर ऐसी स्पीड से खेलने की उम्मीद नहीं करते। खासतौर पर उत्तराखंड और केरल के खिलाफ उनका मैन ऑफ द मैच का प्रदर्शन अद्भुत रहा। यह उसके लिए बहुत अच्छा साल था क्योंकि उसने पहली बार ट्रॉफी का खिताब जीता था। वह पिछले साल रणजी फाइनल के दौरान नेशनल टीम में था। जैसा कि आप जानते हैं कि बहुत से भारतीय दिग्गज रणजी ट्रॉफी नहीं जीत पाए हैं। वह खेल का भरपूर आनंद उठाता है और वह अपने अन्य साथियों के साथ विदर्भ में बड़ा हुआ है, इसलिए वह अपने करियर में अच्छी जगह पर है।

बतौर सफल सलामी बल्लेबाज, क्या आपको लगता है कि इस समय भारत के लिए टेस्ट में सर्वश्रेष्ठ ओपनिंग जोड़ी है?
पृथ्वी शॉ और मयंक अग्रवाल बिना किसी संदेह के मेरी पहली पसंद होंगे। शॉ ने जिस तरह से खेला है जब से उसने डेब्यू किया है वह शानदार रहा है, हालांकि ऑस्ट्रेलिया सीरीज से ठीक पहले उनकी चोट दुर्भाग्यपूर्ण थी। अग्रवाल ने टीम में मिले कुछ अवसरों को भी अच्छी तरह से भुनाया है। इसलिए इन दोनों को अगले टेस्ट के लिए टीम में लिया जाना चाहिए। 

(इंडिया टीवी के सीनियर सब एडिटर अजय तिवारी के साथ टेलीफोनिक बातचीत पर आधारित)

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