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अनसोल्‍ड हाउसिंग स्‍टॉक को क्लियर करने में दिल्‍ली-एनसीआर को लगेंगे 44 महीने, बेंगलुरू को चाहिए सिर्फ 15 माह

चेन्नई में बन चुके फ्लैटों को निकालने में 31 महीने, मुंबई महानगर क्षेत्र में 34 महीने और कोलकाता में 38 माह का समय लगेगा।

India TV Paisa Desk Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: November 13, 2019 15:45 IST
to clear unsold housing stock Delhi-NCR needs 44 months, says Anarock- India TV Paisa
Photo:TO CLEAR UNSOLD HOUSING S

to clear unsold housing stock Delhi-NCR needs 44 months, says Anarock

नई दिल्ली। रीयल एस्टेट डेवलपर्स को अपने बने फ्लैटों का स्टॉक निकालने में काफी समय लग रहा है। संपत्ति क्षेत्र की सलाहकार एनारॉक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बने मकानों का स्टॉक निकालने में बेंगलुरू के बिल्डरों को सबसे कम 15 माह का समय लगेगा। वहीं दिल्ली-एनसीआर के बिल्डरों को अपने बन चुके फ्लैटों को बेचने में साढ़े तीन साल से अधिक यानी 44 महीने लगेंगे। सितंबर तिमाही के अंत तक सात प्रमुख शहरों दिल्ली-एनसीआर, मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर), चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरू, हैदराबाद और पुणे में बन चुके लेकिन बिक नहीं पाए फ्लैटों की संख्या 6.56 लाख थी।

शीर्ष सात शहरों में 2019 की तीसरी तिमाही तक फ्लैटों का 30 महीने का स्टॉक था। एक साल पहले समान अवधि में यह 37 माह था। देश की आईटी राजधानी बेंगलुरू में फ्लैटों का स्टॉक निकालने में सबसे कम यानी 15 महीने का समय लगेगा। वहीं एनसीआर में सबसे अधिक यानी 44 माह का समय लगेगा।

मौजूदा बाजार परिदृश्य से इस बात का संकेत मिलता है कि फ्लैटों के स्टॉक को निकालने में कितना समय लगेगा। एनारॉक के चेयरमैन अनुज पुरी ने कहा कि अब बिल्डर अपना स्टॉक निकाले पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इसके अलावा बिल्डरों ने बाजार में अपनी आपूर्ति भी सीमित कर दी है।

चेन्नई में बन चुके फ्लैटों को निकालने में 31 महीने, मुंबई महानगर क्षेत्र में 34 महीने और कोलकाता में 38 माह का समय लगेगा। एनसीआर इस समय देश का सबसे अधिक प्रभावित आवासीय बाजार है। यहां फ्लैटों के स्टॉक को निकालने में कम से कम 44 माह का समय लगेगा। हालांकि, 2018 की तीसरी तिमाही में यह 58 माह था।

आंकड़ों के अनुसार 2019 की तीसरी तिमाही के अंत तक शीर्ष सात शहरों में कुल मिलाकर बिक नहीं पाए फ्लैटों की संख्या 6.56 लाख थी। सालाना आधार पर यह करीब पांच प्रतिशत की कमी है। वहीं इससे दो साल पहले की तुलना में यह 12 प्रतिशत कम है। 

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