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NPA का समाधान करने के पीछे मकसद कंपनियों को समाप्त करना नहीं बल्कि उन्हें बचाना है: जेटली

वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि उनके NPA की समस्या का समाधान करने के पीछे मूल उद्देश्य कारोबार को समाप्त करना नहीं है बल्कि उसे बचाना है।

Abhishek Shrivastava Abhishek Shrivastava
Published on: August 19, 2017 15:40 IST
NPA का समाधान करने के पीछे मकसद कंपनियों को समाप्त करना नहीं बल्कि उन्हें बचाना है: जेटली- India TV Paisa
NPA का समाधान करने के पीछे मकसद कंपनियों को समाप्त करना नहीं बल्कि उन्हें बचाना है: जेटली

मुंबई। वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने कर्ज के दबाव में फंसी कंपनियों को आस्‍वश्‍त करते हुए कहा कि उनके पुराने फंसे कर्ज (NPA) की समस्या का समाधान करने के पीछे मूल उद्देश्य कारोबार को समाप्त करना नहीं है बल्कि उसे बचाना है। उन्होंने कहा कि नए दिवाला कानून ने उन कर्जदारों, जो समय पर कर्ज नहीं लौटा पाए और कर्ज देने वालों के रिश्तों में उल्लेखनीय बदलाव ला दिया है।

जेटली ने कहा, एनपीए समस्या के समाधान के पीछे वास्तविक उद्देश्य संपत्तियों को समाप्त करना नहीं है, बल्कि उनके व्यावसाय को बचाना है। यह काम चाहे इन कंपनियों के मौजूदा प्रवर्तक खुद करें अथवा अपने साथ नया भागीदार जोड़कर करें या फिर नए उद्यमी आएं और यह सुनिश्चित करें कि इन मूल्यवान संपत्तियों को संरक्षित रखा जा सके।

उन्होंने नए दिवाला एवं शोधन अक्षमता कानून की जरूरत को बताते हुए कहा कि ऋण वसूली न्यायाधिकरणों के अपना काम प्रभावी तरीके से नहीं करने और उनके असफल रहने की वजह से यह कानून लाना पड़ा है। उन्होंने कहा कि प्रतिभूतिकरण और वित्तीय आस्तियों का पुनर्गठन एवं प्रतिभूति हितों का प्रवर्तन (सरफेसी कानून) शुरू के दो-तीन सालों के दौरान एनपीए को प्रभावी ढंग से नीचे लाने में सफल रहा था। लेकिन उसके बाद ऋण वसूली न्यायाधिकरण उतने प्रभावी नहीं रहे जितना समझा गया था, जिसकी वजह से नया कानूना लाना पड़ा।

जेटली ने कहा कि दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) नया कानून आने के बाद कर्जदार और लेनदार के रिश्तों में व्यापक बदलाव आया है। उन्होंने कहा, हम कई सालों से एक ऐसी व्यवस्था में रह रहे हैं जिसमें कर्जदार को संरक्षण मिला हुआ था और परिसंपत्तियों को बेकार रखकर जंग लगने दिया गया।

उन्होंने कहा, वह पुरानी व्यवस्था जिसमें कर्ज देने वाला कर्जदार का पीछा करते करते थक जाता था और आखिर में उसे कुछ हाथ नहीं लगता था अब समाप्त हो चुकी है। यदि कर्ज लेने वाले को व्यवसाय में बने रहना है तो उसे अपने कर्ज की किस्त-ब्याज को समय पर चुकाना होगा अन्यथा उसे दूसरे के लिए रास्ता छोड़ना होगा। मुझो लगता है कि कोई भी कारोबार करने का यही सही तरीका हो सकता है, यह संदेश स्पष्ट रूप से सभी तक पहुंच जाना चाहिए।

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