Wednesday, April 17, 2024
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Govardhan Puja 2018: घर पर गोवर्धन पूजा करने की ये है विधि

जानें, इस साल गोवर्धन पूजा कब मनाया जाएगा और क्या है इसकी पूजा विधि।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: November 01, 2018 21:09 IST
Govardhan Puja 2018 - India TV Hindi
Govardhan Puja 2018

नई दिल्ली: कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा मनाया जाता है। यह त्योहार दिवाली के एक दिन बाद मनाया जाता है। इस बार 8 नवंबर को यह त्योहार मनाया जाएगा। इस पूजा का भी अपना एक विशेष महत्व है।

इस त्योहार को सबसे ज्यादा श्री कृष्ण की जन्मभूमि में यानि  मथुरा, काशी, गोकुल, वृ्न्दावन में मनाया जाता है। इस दिन घर के आंगन में गोवर्धन पर्वत को गाय के गोबर से बनाया जाता है। साथ ही ब्रज भूमि में गोवर्धन पर्व को मानवाकार रुप में मनाया जाता है। यहां पर गोवर्धन पर्वत उठाये हुए, भगवान श्री कृ्ष्ण के साथ साथ उसके गाय, बछडे, गोपिया, ग्वाले आदि भी बनाये जाते हैं। इसके बाद इन्हें मोर पंख से सजाया जाता है।

कैसे करें गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा के दिन विशेष रूप से गाय-बैलों को भी सजाया जाता है। जिनके पास गाय होती है, वह गायों को प्रात: स्नान करा कर, उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल-मालाओं से सजाते हैं। इसके साथ ही गोवर्धन को गोबर से बना कर पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन गायों की सेवा करने से आपका कल्याण होता है।

गोवर्धन को गोबर से बनाकर इसमें रुई और करवे की सीके लगाकर पूजा की जाती है। गोबर पर खील, बताशे ओर शक्कर के खिलौने चढाये जाते है। इसके बाद शाम को रोज इनके सामने दीपक जलाया जाता है।

क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा

कहा जाता है कि एक बार भगवान श्री कृ्ष्ण अपनी गोपियों और ग्वालों के साथ गाय चरा रहे थे। गायों को चराते हुए श्री कृ्ष्ण जब गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे तो गोपियां 56 प्रकार के भोजन बनाकर बड़े उत्साह से नाच-गा रही थीं। जब उन्होनें गोपियों से पूछा कि यह क्या हो रहा है तो उन्हें बताया गया कि सब देवराज इन्द्र की पूजा करने के लिए किया जा रहा है। देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर हमारे गांव में वर्षा करेंगे, जिससे अन्न पैदा होगा। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत है, जो हमारी गायों को भोजन देते हैं।

ब्रज के लोगों ने श्री कृ्ष्ण की बात मानी और गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी। जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग मेरी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे है तो उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। इन्द्र गुस्से में आ गए और उन्होंने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर खूब बरसे, जिससे वहां का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाए।

अपने देव का आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगें। ऐसी बारिश देख कर सभी भयभीत हो गए ओर दौड़ कर श्री कृ्ष्ण की शरण में पहुंचे। श्री कृ्ष्ण ने सभी को गोवर्धन पर्वत की शरण में चलने को कहा। जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का उंगली पर उठा लिया। सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गए।

ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा। यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह श्री कृ्ष्ण से क्षमा मांगने लगे। सात दिन बाद श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा। इसके बाद ब्रजबासी हर साल गोवर्धन पूजा करने लगे।

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