Wednesday, April 24, 2024
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चैत्र नवरात्र: इस तरह करें कलश स्थापना, जानिए पूरी पूजा विधि

18 मार्च चैत्र नवरात्र की शुरूआत हो रही है और 25 मार्च को नवरात्र समाप्त होंगे। इस बार अष्टमी तिथि के क्षय होने से अष्टमी और नवमी तिथि, दोनों 25 मार्च को पड़ रही हैं। जानिए कलश स्थापना करने की सही विधि के बारें में...

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: March 17, 2018 19:54 IST
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धर्म डेस्क: 18 चैत्र नवरात्र की शुरूआत हो रही है और 25 मार्च को नवरात्र समाप्त होंगे। इस बार अष्टमी तिथि के क्षय होने से अष्टमी और नवमी तिथि, दोनों 25 मार्च को पड़ रही हैं। इस बार अष्टमी तिथि उस दिन सुबह 08:03 तक रहेगी और उसके बाद नवमी तिथि लग जायेगी, यानी इस बार नवरात्र का यह उत्सव 8 दिन तक ही मनाया जायेगा।

पहले दिन माता के शैलपुत्री रूप का पूजन किया जायेगा। साथ ही कलश स्थापना की जायेगी। जानिए कलश स्थापना करने की सही विधि के बारें में...

पूजा विधि

सबसे पहले घर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में जाकर स्थान की सफाई करके, वहां पर उत्तर-पूर्व कोने में जल छिड़ककर साफ मिट्टी या बालू रखनी चाहिए। उस साफ मिट्टी या बालू पर जौ की परत बिछानी चाहिए। उसके ऊपर पुनः साफ मिट्टी या बालू की साफ परत बिछानी चाहिए और उसका जलावशोषण करना चाहिए। जलावशोषण का मतलब है उसके ऊपर जल छिड़कना चाहिए।

उसके ऊपर मिट्टी या धातु के कलश की स्थापना करनी चाहिए। कलश को गले तक साफ, शुद्ध जल से भरना चाहिए और उस कलश में एक सिक्का डालना चाहिए। अगर संभव हो तो कलश के जल में गंगाजल या पवित्र नदियों का जल जरूर मिलाना चाहिए। इसके बाद कलश के मुख पर अपना दाहिना हाथ रखकर
"गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति!
नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।"
वाला मंत्र अगर याद हो तो मंत्र पढ़ते हुए और अगर मंत्र याद न हो तो बिना मंत्र के ही गंगा, यमुनी, कावेरी, गोदावरी, नर्मदा, आदि पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए, उन नदियों के जल का आह्वाहन उस कलश में करना चाहिए और ऐसा भाव करना चाहिए कि सभी नदियों का जल उस कलश में आ जाये। साथ ही वरूण देवता का भी आह्वाहन करना चाहिए कि वो उस कलश में अपना स्थान ग्रहण करें।

अब कलश के मुख पर कलावा बांधना चाहिए और एक ढक्कन या परई या दियाली या मिट्टी की कटोरी, जो भी आप उसे अपनी भाषा में कहते हों और जो भी आपके पास उपलब्ध हो, उससे कलश को ढक देना चाहिए। अब ऊपर ढकी गयी कटोरी में जौ भरना चाहिए। यदि जौ न हो तो चावल भी भर सकते हैं। इसके बाद एक जटा वाला नारियल लेकर उसे लाल कपड़े से लपेटकर, ऊपर कलावे से बांध देना चाहिए। इस प्रकार बांधे हुए नारियल को जौ या चावल से भरी हुई कटोरी के ऊपर स्थापित करना चाहिए।

यहां दो बातें विशेष याद दिला दूं- कुछ लोग कलश के ऊपर रखी गयी कटोरी में ही घी का दीपक जला लेते हैं। ऐसा करना उचित नहीं है। कलश का स्थान पूजा के उत्तर-पूर्व कोने में होता है जबकि दीपक का स्थान दक्षिण-पूर्व कोने में होता है। अतः कलश के ऊपर दीपक नहीं जलाना चाहिए। दूसरी बात ये है कि कुछ लोग कलश के ऊपर रखी कटोरी में चावल भरकर उसके ऊपर शंख स्थापित करते हैं, तो इस सिलसिले में मुझे ये कहना है कि आप ऐसा कर सकते हैं। बशर्ते की शंख दक्षिणावर्त होना चाहिए। उसका मुंह ऊपर की ओर रखना चाहिए और चोंच अपनी ओर करके रखनी चाहिए।

इस सारे मसले में याद रखने की बात ये है कि ये सारी कार्यवाही नवार्ण मंत्र पढ़ते हुए करनी चाहिए। नवार्ण मंत्र है- "ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे"

अगली स्लाइड में पढ़ें पूरी पूजा विधि के बारें में

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