Friday, April 19, 2024
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अशून्य शयन व्रत: वैवाहिक जीवन को बनाना है आनंदमय, तो आज करें इस मंत्र से मां लक्ष्मी की पूजा

शास्त्रों के अनुसार चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु का शयनकाल होता है और इस अशून्य शयन व्रत के माध्यम से शयन उत्सव मनाया जाता है। कहते हैं जो भी इस व्रत को करता है, उसके दाम्पत्य जीवन में कभी दूरी नहीं आती। साथ ही घर-परिवार में सुख-शांति तथा सौहार्द्र बना रहता है।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: July 29, 2018 6:51 IST
Lord vishnu- India TV Hindi
Image Source : FACEBOOK Lord vishnu

धर्म डेस्क: आज श्रावण कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि और रविवार का दिन है। आज अशून्य शयन व्रत है। चातुर्मास के चार महीनों के दौरान हर माह के कृष्ण पक्ष की द्वितिया को यह व्रत किया जाता है। यह व्रत श्रावण मास से शुरू होता है। साथ ही भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को भी यह व्रत किया जाता है।

विष्णुधर्मोत्तर के पृष्ठ- 71, मत्स्य पुराण के पृष्ठ- 2 से 20 तक, पद्मपुराण के पृष्ठ-24, विष्णुपुराण के पृष्ठ- 1 से 19 आदि में अशून्य शयन व्रत का उल्लेख मिलता है। अशून्य शयन द्वितिया का अर्थ है- बिस्तर में अकेले न सोना पड़े। जिस प्रकार स्त्रियां अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिये करवाचौथ का व्रत करती हैं, ठीक उसी तरह पुरूषों को अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिये यह व्रत करना चाहिए। क्योंकि जीवन में जितनी जरूरत एक स्त्री को पुरुष की होती है, उतनी ही जरूरत पुरुष को भी स्त्री की होती है।

हेमाद्रि और निर्णयसिन्धु के अनुसार अशून्य शयन द्वितिया का यह व्रत पति-पत्नी के रिश्तों को बेहतर बनाने के लिये बेहद अहम है। यह व्रत रिश्तों की मजबूती को बरकरार रखने में मदद करता है।

इस व्रत में लक्ष्मी तथा श्री हरि, यानी विष्णु जी का पूजन करने का विधान है। दरअसल शास्त्रों के अनुसार चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु का शयनकाल होता है और इस अशून्य शयन व्रत के माध्यम से शयन उत्सव मनाया जाता है। कहते हैं जो भी इस व्रत को करता है, उसके दाम्पत्य जीवन में कभी दूरी नहीं आती। साथ ही घर-परिवार में सुख-शांति तथा सौहार्द्र बना रहता है। अतः गृहस्थ पति को यह व्रत अवश्य करना चाहिए। इस व्रत में किस प्रकार भगवान की प्रार्थना करनी चाहिए।

लक्ष्म्या न शून्यं वरद यथा ते शयनं सदा।

शय्या ममाप्य शून्यास्तु तथात्र मधुसूदन।।

अर्थात् हे वरद, जैसे आपकी शेषशय्या लक्ष्मी जी से कभी भी सूनी नहीं होती, वैसे ही मेरी शय्या अपनी पत्नी से सूनी न हो, यानी मैं उससे कभी अलग ना रहूं, ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए।

आज के दिन इस व्रत में शाम के समय चन्द्रोदय होने पर अक्षत, दही और फलों से चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है और अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। आज के दिन चन्द्रोदय रात 08 बजकर 22 मिनट पर होगा। फिर अगले दिन, यानी तृतीया को, यानी कल के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और उनका आशीर्वाद लेकर उन्हें कोई मीठा फल देना चाहिए। इस प्रकार व्रत आदि करने से आपके जीवनसाथी पर आने वाली सारी मुसीबतों से आपको छुटकारा मिलता है।

जानिए अशुन्य शयन व्रत की पूजा विधि

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