Wednesday, April 17, 2024
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लोकसभा उपचुनाव: जातियों का अखाड़ा बना कैराना, जानिए कितनों की किस्मत का करेगा फैसला

कैराना लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी जहां ओबीसी और परंपरागत वोट बैंक पर दांव लगा रही है वहीं आरएलडी गठबंधन जाट-मुस्लिम-दलित जातियों पर फोकस कर रहा है...

IndiaTV Hindi Desk Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: May 25, 2018 23:18 IST
मृगांका सिंह और...- India TV Hindi
मृगांका सिंह और तबस्सुम हसन

लखनऊ: कर्नाटक की हार के बाद अब कैराना लोकसभा का उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए और भी अहम हो गया है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने खुद यहां चुनावी रैली की जबकि एचआरडी मंत्री सत्यपाल सिंह, केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, गन्ना मंत्री सुरेश राणा और संगीत सोम यहां कई दिनों से डेरा डाले हुए हैं। उधर सपा-बसपा और आरएलडी का गठबंधन भी इस उपचुनाव में पूरी ताकत झोंके हुए है।

बीजेपी जहां ओबीसी और परंपरागत वोट बैंक पर दांव लगा रही है वहीं आरएलडी गठबंधन जाट-मुस्लिम-दलित जातियों पर फोकस कर रहा है।

जानिए कैराना का जातिय गणित-

कैराना में कुल 17 लाख वोटर हैं जिसमें मुस्लिमों की संख्या 5 लाख है और जाटों की संख्या 2 लाख है। वहीं, दलितों की संख्या 2 लाख है और ओबीसी की संख्या दो लाख है जिनमें गुर्जर, कश्यप और प्रजापति शामिल हैं। अगर इन जातियों का झुकाव देखें तो अगड़ी जातियां, अति पिछड़ी जातियां और गुर्जर पूरी तरह से बीजेपी के साथ लामबंद दिखाई देते हैं। वहीं, गुर्जरों की लामबंदी की मुख्य वजह यह है कि बीजेपी प्रत्याशी मृगांका गुर्जर समुदाय से आती हैं। शाक्य, सैनी, प्रजापति आदि अति पिछड़ी जातियां बीजेपी के साथ पुरजोर तरीके से खड़ी हैं।

रालोद प्रत्याशी तबस्सुम हसन को सपा और बसपा का समर्थन हासिल है। उनके साथ पांच लाख मुसलमान और दो लाख दलितों का समर्थन दिखाई देता है।

प्रमुख पार्टियों के उम्मीदवारों को पारिवारिक संबंधों का सहारा

शामली में तबस्सुम हसन के चुनाव कार्यालय के लोग इस मामले में स्पष्ट हैं कि वह कैराना लोकसभा उप-चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) की उम्मीदवार से कहीं ज्यादा अहमियत रखती हैं। रालोद के झंडों के अलावा कांग्रेस, सपा और बसपा के झंडे भी वहां आने वाले लोगों का स्वागत करते हैं। ये झंडे इस बात के गवाह हैं कि तबस्सुम उत्तर प्रदेश में विपक्षी पार्टियों की उम्मीदवार हैं, जिन्हें कैराना उप-चुनाव में जीत की उम्मीद है। ये पार्टियां भाजपा को हराकर यह भी साबित करना चाहती हैं कि गोरखपुर और फूलपुर के उप-चुनावों में विपक्ष को मिली जीत कोई इत्तेफाक नहीं थी।

तबस्सुम के चुनाव दफ्तर से बमुश्किल एक किलोमीटर की दूरी पर भाजपा उम्मीदवार मृगांका सिंह का दफ्तर है, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की तस्वीरें लगी हुई हैं। मृगांका के पिता और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता रहे हुकुम सिंह के निधन के कारण कैराना लोकसभा सीट पर उप-चुनाव कराया जा रहा है। तबस्ससुम भी अपने पारिवारिक संबंधों पर बहुत हद तक निर्भर हैं। तबस्सुम के शामली स्थित दफ्तर में उनके दिवंगत पति मुनव्वर हसन की एक तस्वीर लगी है। मुनव्वर ने उत्तर प्रदेश विधानसभा और लोकसभा दोनों में कैराना का प्रतिनिधित्व किया था।

रालोद दफ्तर में जाट नेता चौधरी चरण सिंह की भी एक तस्वीर है, जिनके बेटे अजित सिंह पार्टी के अध्यक्ष हैं। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा भी चरण सिंह की विरासत की अनदेखी नहीं कर सकती। भाजपा के चुनावी दस्तावेजों में भी चरण सिंह की तस्वीर है। चरण सिंह का जिक्र ही शायद एक ऐसी चीज है जो दोनों पार्टियों के उम्मीदवार कर रहे हैं।

कैराना से हिंदू परिवारों के कथित पलायन के मुद्दे पर तबस्सुम और मृगांका की अलग-अलग राय है। मृगांका के पिता ने कैराना से हिंदू परिवारों के ‘‘पलायन’’ का दावा किया था जो 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बड़ा मुद्दा बन गया था। मृगांका कहती हैं, ‘‘कैराना से हिंदू परिवारों का पलायन थम गया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले डर और प्रताड़ना के कारण कैराना से सैकड़ों हिंदू परिवार चले गए थे। बहरहाल, योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में भाजपा की सरकार बनने के बाद क्षेत्र में कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार हुआ है।’’

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