Saturday, April 27, 2024
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UPA और NDA दोनों के भरोसेमंद रहे एनएन वोहरा

वोहरा कश्मीर के संबंध में कई प्रधानमंत्रियों- अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और फिर नरेंद्र मोदी के लिए भरोसेमंद रहे।

India TV News Desk Edited by: India TV News Desk
Published on: August 23, 2018 22:49 IST
नरेंद्र नाथ वोहरा- India TV Hindi
नरेंद्र नाथ वोहरा

श्रीनगर: नरेंद्र नाथ वोहरा की छह दशकों से भी अधिक लंबी लोक सेवा पारी आज समाप्त हो गई जब सत्यपाल मलिक ने आतंकवाद से प्रभावित राज्य के 13 वें राज्यपाल के रूप में शपथ ली। 1959-बैच के पंजाब कैडर के आईएएस अधिकारी वोहरा दस साल तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे। उनका कार्यकाल अचानक समाप्त हो गया जब मंगलवार को केंद्र ने उनके स्थान पर नेता मलिक को राज्यपाल बनाने की घोषणा की।

जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल ने श्रीनगर में राजभवन में मलिक को शपथ दिलाई। उस समय वोहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मिलने के बाद दिल्ली से श्रीनगर लौटे रहे थे। 82 वर्षीय वोहरा नौकरशाह हैं जो 25 जून 2008 से राज्य के राज्यपाल थे। वह केंद्र सरकार की पसंद थे, भले ही केंद्र में अलग-अलग दलों की सरकार रही। इसकी मुख्य वजह क्षेत्र की जानकारी और विशेषज्ञता तथा वार्ता कौशल था।

इस साल जून में भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार के पतन के बाद उन्हें चौथी बार अशांत राज्य की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। आतंकवाद, सामाजिक अशांति और राजनीतिक अनिश्चितता के तूफान के केंद्र में रहे वोहरा जम्मू-कश्मीर में रोजाना के प्रशासनिक कार्येां और नीति निर्णयों के लिए जिम्मेदार बन गए। उनका ताजा कार्यकाल उस समय शुरू हुआ जब भारतीय सेना का सुरक्षा अभियान जारी था। अधिकारियों के मुताबिक, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर और ट्रिब्यून ट्रस्ट के अध्यक्ष होने के नाते वोहरा ने 25 जून को अपना कार्यकाल समाप्त होने पर पद से हटने की इच्छा व्यक्त की थी। लेकिन उनसे अमरनाथ यात्रा समाप्त होने तक पद पर बने रहने को कहा गया था।

उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जाता है जो राज्य की नब्ज पहचानते हैं। वह कश्मीर के संबंध में कई प्रधानमंत्रियों- अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और फिर नरेंद्र मोदी के लिए भरोसेमंद रहे। उनके कार्यकाल के दौरान राज्य में कई संकट सामने आए। इनमें 2008 में जम्मू-कश्मीर में श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को 800 कनाल वन भूमि के हस्तांतरण को लेकर आंदोलन शामिल है। वह पंजाब में आतंकवाद के उभरने और फिर उसके समाप्त होने के भी गवाह रहे।

वह 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद पंजाब के गृह सचिव थे जब राज्य में अलग खालिस्तान को लेकर खूनी संघर्ष हो रहा था और सेना स्वर्णमंदिर के अंदर गई थी। मुंबई में 1993 में सिलसिलेवार विस्फोटों के तुरंत बाद उन्हें केंद्रीय गृह सचिव नियुक्त किया गया था। वह 1990 से 1993 तक रक्षा सचिव थे। 1994 में सेवानिवृत्ति के बाद, वह उस समिति का हिस्सा थे जिसने राजनीति में अपराधीकरण की समस्या का अध्ययन किया और भारत में अपराधी-नेता-नौकरशाह गठबंधन पर विचार किया।

उनकी सेवानिवृत्ति अल्पकालिक ही रही। 1997 में उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदर कुमार गुजराल का प्रधान सचिव नियुक्त किया गया था। तत्कालीन संप्रग सरकार ने 2008 में उन्हें राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया। 2013 में उन्हें फिर से राज्य की कमान सौंप दी गई।

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