Tuesday, March 19, 2024
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Blog: अनायास नहीं है ओमप्रकाश राजभर की तल्खी, इसके हैं सियासी मायने

ओमप्रकाश राजभर ये भलीभांति जानते हैं कि अगर वो बिना किसी बड़े कारण खुद बीजेपी से अलग होते हैं तो यह पार्टी हित में नहीं होगा।

Shivaji Rai Written by: Shivaji Rai
Updated on: January 17, 2019 13:23 IST
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Blog: अनायास नहीं है ओमप्रकाश राजभर की तल्खी, इसके हैं सियासी मायने

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर की बीजेपी के खिलाफ तल्खी अनायास नहीं है। 4 विधायकों की जीत पर सत्‍ता का स्‍वाद चखने वाले ओमप्रकाश राजभर का बीजेपी की जड़ों में मट्ठा डालने को किसी भी लिहाज से स्‍वाभाविक नहीं कहा जा सकता है। इसके पीछे राजभर का राजनीतिक निहितार्थ होना लाजमी है। एसपी-बीएसपी महागठबंधन के बाद अगर एसपी-बीएसपी के अंदरखाने की चर्चा पर कान लगाया जाए तो ये साफ लग जाएगा कि ओमप्रकाश राजभर की तल्‍खी महागठबंधन में उनके शामिल होने की रणनीति का बड़ा हिस्सा है।

ओमप्रकाश राजभर ये भलीभांति जानते हैं कि अगर वो बिना किसी बड़े कारण खुद बीजेपी से अलग होते हैं तो यह पार्टी हित में नहीं होगा। लिहाजा वो चाहते हैं या तो ऐसा माहौल बना दें जिससे बीजेपी उनसे नाता तोड़ने की पहल करे या फिर योगी सरकार पर जनसरोकार से जुड़ा कोई गंभीर आरोप लगाकर खुद गठबंधन से अलग हो जाएं। ताकि वह बिना किसी नुकसान के अपने वोट बैंक को और ठीक से दुरुस्त कर सकें। यही वजह है कि वह बीजेपी के खिलाफ लगातार हमलावर बने हुए हैं। 

इधर एसपी-बीएसपी महागठबंधन के अंदरखाने में में भी ओमप्रकाश राजभर को लेकर चर्चा जोरों पर है। सूत्र बताते हैं कि वह लोकसभा चुनाव अभियान शुरू होने से पहले गठबंधन में शामिल होने का पूरी तरह मन बना चुके हैं। हालांकि बीजेपी गठबंधन में वह अपने लिए लोकसभा की 5 सीटें मांग रहे हैं जबकि एसपी-बीएसपी गठबंधन में उन्‍हें सिर्फ एक सीट देने के पक्ष में हैं। फिलहाल चर्चा के मुताबिक गठबंधन में उन्‍हें मऊ जिले की घोसी लोकसभा सीट देने की बात आ रही है, जबकि राजभर घोसी के साथ सलेमपुर लोकसभा सीट पर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं।

फिलहाल एक सीट को लेकर ओमप्रकाश राजभर संतुष्‍ट नहीं दिख रहे हैं और अपना पत्‍ता नहीं खोल रहे हैं। खबरों से नाखुश राजभर बार-बार कह रहे हैं कि एसपी-बीएसपी ही नहीं किसी भी गठबंधन से सीटों की भीख नहीं मांग रहे हैं। सम्‍माजनक संख्या में सीटें नहीं मिलीं तो अकेले अपने दम पर सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। हालांकि यूपी के सियासी जानकार इसे ओमप्रकाश राजभर के मोलभाव का तरीका बता रहे हैं। मौजूदा वक्‍त में ओमप्रकाश राजभर की पहली प्राथमिकता अपने बेटे डॉ. अरविंद राजभर को लोकसभा में भेजने की है। 

ओमप्रकाश राजभर का एसपी-बीएसपी गठबंधन को लेकर गोलमोल जवाब और बीजेपी के खिलाफ उनकी मुखरता इस चर्चा को जरूर बल दे रही है कि उनके मन में कोई राजनीतिक खिंचड़ी पक रही है। इसी कड़ी में लखनऊ में हालिया अपनी पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में उन्होंने बीजेपी को ललकारने वाले अंदाज में यहां तक कह डाला कि हिम्मत है तो बीजेपी योगी सरकार की कैबिनेट से उन्हें निकाल कर दिखाए। विधानसभा के बाहर भी जब पत्रकार ने कहा कि आपका अंदाज बागी जैसा है तो राजभर यहां तक कह बैठे कि मैं किसी का गुलाम नहीं हूं, मैं सिर्फ गरीबों, पिछड़ों का गुलाम हूं, मैं बागी हूं और बागी रहूंगा।

ओमप्रकाश राजभर सार्वजनिक मंचों पर इस बात पर बल देते रहे कि बीजेपी के साथ गठबंधन में हैं बावजूद बीजेपी उनका हक नहीं दे रही है। आरोप यहां तक लगा रहे हैं कि सरकार में होते हुए भी उनकी पार्टी के प्रदेश कार्यालय के लिए अभी तक जगह का आवंटन नहीं हुआ। अपने भाषण और बयान में भी वह बीजेपी को आए दिन चेताते भी रहे हैं कि उन्हें मंत्री की कुर्सी छोड़ने में भी देर नहीं लगेगी। लोकसभा चुनाव दिनोंदिन नजदीक आ रहा है लिहाजा राजभर की भी सियासी गतिविधियां भी तेज हो गई हैं। वह बदलते समय और हालात के साथ पाला बदलने की जुगत और मोलभाव में लगे हुए हैं। 

राजभर ने ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण में अति पिछड़ी जातियों के लिए अलग हिस्सेदारी की मांग को तेज कर दिया है। वह बार-बार कह रहे हैं कि सरकार को तीन महीने का समय दे रहे हैं, सरकार ने हमारी मांग नहीं पूरी की तो उन्हें गठबंधन पर विचार करना पड़ेगा। राजभर जानते हैं कि योगी सरकार उनके खिलाफ कोई विपरीत कदम चलने की स्थिति में नहीं है। इसीलिए उन्‍हें खुद की उग्रता में चौतरफा फायदा दिख रहा है। सियासी नब्‍ज को टटोलते हुए राजभर उग्रता में बीजेपी प्रदेश नेतृत्व के लिए असहज स्थिति बनाए हुए हैं। 

खबरों की मानें तो राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह से बीजेपी प्रदेश नेतृत्व कई बार राजभर से मुक्ति ले लेने की सिफारिश तक कर चुका है। फिलहाल बीजेपी नेतृत्‍व ओमप्रकाश राजभर को लेकर सियासी चुप्‍पी साधे हुए है और राजभर की गर्म बयानबाजी बिना अवरोध जारी है। वहीं, हमीरपुर अवैध खनन घोटाले में CBI के छापेमारी के खिलाफ एसपी-बीएसपी का साथ आना और लोकसभा की सीट बंटवारे पर दोनों दलों के आम सहमति जैसे सियासी तकाजे के बीच ओमप्रकाश राजभर की अकुलाहट को बेवजह नहीं कहा जा सकता है। राजभर जानते हैं कि चुनावी राजनीति में अंत में जीत ही मायने रखती है। ‍इसीलिए मौके पर चौका नहीं लगाया तो सब बेमानी सिद्ध होगा।

(ब्लॉग के लेखक शिवाजी राय पत्रकार हैं और इंडिया टीवी में कार्यरत हैं। ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं)

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