Thursday, April 25, 2024
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Rajat Sharma’s Blog: यूपी की चुनावी जंग में जाति कितना मायने रखती है?

2014 तक राजनीति काफी हद तक जातियों और समुदायों पर आधारित थी, विकास की बात कुछ ही नेता करते थे, लेकिन अब यह ट्रेंड बदल गया है।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: January 18, 2022 17:30 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

समाजवादी पार्टी ने शुक्रवार को खुले तौर पर चुनाव आयोग के उस निर्देश का उल्लंघन किया जिसमें चुनावी राज्यों में सभी तरह की रैलियों पर प्रतिबंध लगाया गया था। सपा ने एक ‘वर्चुअल रैली’ आयोजित की जिसमें पार्टी के हजारों कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। रैली में मौजूद लोगों को पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने संबोधित भी किया।

सोशल मीडिया पर हंगामा मचने के बाद देर रात उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने गौतमपल्ली थाना प्रभारी दिनेश सिंह बिष्ट को 'कर्तव्यों के निर्वहन में घोर लापरवाही' के आरोप में निलंबित करने का निर्देश दिया। साथ ही उन्होंने एसीपी अखिलेश सिंह और लखनऊ मध्य निर्वाचन क्षेत्र के रिटर्निंग ऑफिसर गोविंद मौर्य को कारण बताओ नोटिस जारी किया। चुनाव आयोग ने यह कार्रवाई लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश द्वारा भेजी गई एक रिपोर्ट के आधार पर की। रिपोर्ट में कहा गया था कि रैली का आयोजन चुनाव आचार संहिता और कोविड प्रोटोकॉल का घोर उल्लंघन था।

लखनऊ के पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर ने कहा, समाजवादी पार्टी के पार्टी मुख्यालय में लगभग 2,500 लोग जमा हुए, जो 15 जनवरी तक सारी फिजिकल रैलियों पर चुनाव आयोग के प्रतिबंध का उल्लंघन था। पुलिस कमिश्नर ने कहा, ‘हमारी पुलिस टीम ने कार्यक्रम का वीडियो बनाया है और इन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है।’

रैली का आयोजन सपा में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी सहित 8 विधायकों और मंत्रियों के स्वागत में किया गया था। इन मंत्रियों ने इसी हफ्ते बीजेपी की सरकार से इस्तीफा दे दिया था। पूरे भारत में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने के साथ, चुनाव आयोग ने 15 जनवरी तक मतदान वाले राज्यों में सभी रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। उत्तर प्रदेश में अकेले शुक्रवार को 16 हजार से ज्यादा नए मामले सामने आए। इनमें से सिर्फ लखनऊ में ही 2,209 नए मामले दर्ज किए गए। चुनाव आयोग ने नुक्कड़ सभाओं पर भी प्रतिबंध लगाया हुआ है, और ज्यादा से ज्यादा सिर्फ 5 लोगों को ही घर-घर जाकर चुनाव प्रचार करने की इजाजत दी है।

तथाकथित 'वर्चुअल रैली' के वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि वहां हजारों पार्टी कार्यकर्ता मौजूद हैं और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव समेत लगभग 50 नेता एक साथ मंच पर बैठे हुए हैं। चुनाव आयोग ने 5 से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाई हुई है और इस ‘वर्चुअल रैली’ में 50 से ज्यादा नेता एक साथ बैठे थे। ज्यादातर नेता बिना मास्क के थे, जबकि अखिलेश यादव ने अपनी जेब में मास्क रखा था जिसे वह कभी पहन लेते थे तो कभी उतार देते थे। जब रैली के वीडियो न्यूज चैनलों पर चलने लगे तो लखनऊ के डीएम ने रैली को रिकॉर्ड करने के लिए तत्काल पुलिस की एक टीम भेजी। लखनऊ के डीएम ने कहा, रैली की इजाजत नहीं ली गई थी।

सपा की साइकिल पर सवार हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने दावा किया कि लखनऊ में समाजवादी पार्टी के दफ्तर से लेकर कालीदास मार्ग तक का पूरा इलाका कार्यकर्ताओं से पटा पड़ा है। मौर्य ने दावा किया, ‘अगर कोई कोविड प्रोटोकॉल नहीं होता, तो भीड़ सारे रिकॉर्ड तोड़ देती।’ सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, चुनाव आयोग के दिशानिर्देश हैं, लेकिन हम और ज्यादा वर्चुअल रैलियां करेंगे और फिजिकल रैलियां भी करेंगे।

मैं मानता हूं कि समाजवादी पार्टी को चुनाव के दौरान प्रचार करने का पूरा हक है, लेकिन उन्हें मालूम होना चाहिए कि राज्य में कोरोना की वजह से हालात सामान्य नहीं हैं। पूरे राज्य से नेताओं को अपने समर्थकों को लाने की इजाजत देकर साफ तौर पर कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया गया था। अब जब ये समर्थक अपने जिलों में लौटेंगे, तो वे सुपर स्प्रेडर्स के रूप में काम करेंगे। ऐसे में चुनाव आयोग अगर सख्त कार्रवाई करता है तो पार्टी के नेता इल्जाम लगाएंगे कि चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं है।

सवाल यह भी है जब तमाम नेता पहले ही मीडिया के सामने आकर अपनी बात कह चुके थे, तो फिर सबको एक साथ लाकर, कार्याकर्ताओं को जुटाकर इतनी बड़ी रैली करने की क्या जरूरत थी? हो सकता है कि चुनाव आयोग द्वारा दिशानिर्देशों की घोषणा करने से पहले इस रैली की योजना बनाई गई हो। लेकिन प्रतिबंध लगने के बावजूद समाजवादी पार्टी के नेताओं ने अपनी रणनीति में बदलाव न करने का फैसला किया, और चुनाव आयोग के प्रतिबंध की धज्जियां उड़ाते हुए अपने समर्थकों को इकट्ठा किया। चुनाव आयोग की कार्रवाई से बचने के लिए उन्होंने इसे ‘वर्चुअल रैली’ का नाम दे दिया।

रैली में स्वामी प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव को ‘भविष्य का मुख्यमंत्री’ बताया और दावा किया कि चुनावी जंग पिछड़ों, दलितों और अन्य का प्रतिनिधित्व करने वाले 85 प्रतिशत और बाकी के 15 प्रतिशत के बीच लड़ी जाएगी।

सपा की चुनौती का मुकाबला करने के लिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार दौरे पर हैं, विभिन्न वर्गों और जातियों के नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। गोरखपुर के पीरू शहीद दलित बस्ती में शुक्रवार को योगी ने एक दलित अमृत लाल भारती के घर खिचड़ी खाई। मकर संक्रांति के मौके पर होने वाले इस आयोजन को 'खिचड़ी सहभोज' का नाम दिया गया है। स्थानीय बीजेपी नेताओं ने कहा कि योगी हर साल मकर संक्रांति के मौके पर दलितों के साथ भोजन करते हैं। इस मौके पर योगी ने कहा कि जो लोग वंशवाद की राजनीति में विश्वास रखते हैं और भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, वे कभी भी सामाजिक न्याय के समर्थक नहीं हो सकते। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘ये नेता अपने परिवारों, माफिया सरगनाओं और भ्रष्ट व्यापारियों को बढ़ावा देते रहे हैं, वे कभी भी दलितों के लिए सामाजिक कल्याण को बढ़ावा नहीं दे सकते।’

वक्त बदला है, पिछले 8 सालों में राजनीति का अंदाज बदला है, लोगों का मिजाज बदला है। आम लोगों के नजरिए में बदलाव की वजह से अब पूरा राजनीतिक शब्दकोष भी बदल गया है। 2014 तक राजनीति काफी हद तक जातियों और समुदायों पर आधारित थी, विकास की बात कुछ ही नेता करते थे, लेकिन अब यह ट्रेंड बदल गया है। इसके साथ ही नियमों में भी बदलाव किया गया है। पहले उम्मीदवार नामांकन दाखिल करते वक्त हलफनामे में अपने खिलाफ दर्ज मामलों का जिक्र करते थे। अब सभी उम्मीदवारों को सार्वजनिक तौर पर विज्ञापनों के जरिए अपने खिलाफ दर्ज मामलों के साथ-साथ यदि किसी मामले मे सजा हुई है, तो उसकी भी जानकारी देनी होगी।

यह मान लेना कि मतदाता अब केवल जाति के आधार पर ही वोट करेंगे, गलत होगा। लोग कब तक अपनी जाति के लोगों को वोट देते रहेंगे, भले ही उनकी जाति का उम्मीदवार माफिया गैंगस्टर ही क्यों न हो? अपराधी और गैंगस्टर की कोई जाति नहीं होती। मेरा मानना है कि इस बार यूपी के मतदाता इस भ्रम को तोड़ देंगे कि वोट सिर्फ जाति के नाम पर मिल सकता है। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 14 जनवरी, 2022 का पूरा एपिसोड

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