Saturday, April 20, 2024
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जानिए कौन हैं ईश्वरचंद्र विद्यासागर, जिनकी मूर्ति तोड़े जाने पर बंगाल में सियासी भूचाल आया हुआ है

महान दार्शनिक, समाजसुधारक और लेखक ईश्वरचंद विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर, 1820 को कोलकाता में हुआ था। वह स्वाधीनता संग्राम के सेनानी भी थे। ईश्वरचंद विद्यासागर को गरीबों और दलितों का संरक्षक माना जाता था।

IndiaTV Hindi Desk Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: May 15, 2019 23:31 IST
Ishwar Chandra Vidyasagar- India TV Hindi
Ishwar Chandra Vidyasagar

नई दिल्ली: कोलकाता में बीते मंगलवार को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई हिंसा में कॉलेज परिसर में बनी ईश्वरचंद विद्यासागर की मूर्ति तोड़ दी गई। इस मामले में एक तरफ से BJP और दूसरी ओर से TMC एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। BJP का कहना है कि TMC के गुंडों और लोगों ने मूर्ति तोड़ी है वहीं दूसरी ओर TMC का कहना है कि BJP के लोगों ने ही ईश्वरचंद विद्यासागर की मूर्ति तोड़ी है। इसी तरह से ये मामला बढ़ता ही जा रहा है। खैर हम इससे अलग ये जानते हैं कि आखिर ईश्वरचंद विद्यासागर हैं कौन?

कौन हैं ईश्वरचंद्र विद्यासागर?

महान दार्शनिक, समाजसुधारक और लेखक ईश्वरचंद विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर, 1820 को कोलकाता में हुआ था। वह स्वाधीनता संग्राम के सेनानी भी थे। ईश्वरचंद विद्यासागर को गरीबों और दलितों का संरक्षक माना जाता था। उन्होंने स्त्री शिक्षा और विधवा विवाह कानून के लिए खूब आवाज उठाई और अपने कामों के लिए समाजसुधारक के तौर पर भी जाने जाने लगे, लेकिन उनका कद इससे भी कई गुना बड़ा था। 

ईश्वरचंद्र विद्यासागर की जन्मभूमि और पढ़ाई

ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जन्म पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था, जन्म की तारीख ऊपर बता दी गई है। ईश्वरचंद्र विद्यासागर का परिवार गरीब था लेकिन धार्मिक परिवार था। उनके पिता ठाकुरदास बन्धोपाध्याय और माता भगवती देवी थीं। ईश्वरचंद्र विद्यासागर का पूरी बचपन गरीबी में ही बीता। जहां तक पढ़ाई की बात रही तो उन्होंने गांव के स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ली और फिर अपने पिता के साथ कोलकाता आ गए। पढ़ाई में अच्छे होने की वजह से यहां उन्हें कई संस्थानों से छात्रवृत्तियां मिली। उनके विद्वान होने की वजह से ही उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी गई थी।

ईश्वरचंद्र विद्यासागर का करियर

साल 1839 में उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की और फिर साल 1841 में उन्होंने फोर्ट विलियम कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया था। उस वक्त उनकी उम्र महज 21 साल ही थी। फोर्ट विलियम कॉलेज में पांच साल तक अपनी सेवा देने के बाद उन्होंने संस्कृत कॉलेज में सहायक सचिव के तौर पर सेवाएं दीं। यहां से उन्होंने पहले साल से ही शिक्षा पद्धति को सुधारने के लिए कोशिशें शुरू कर दी और प्रशासन को अपनी सिफारिशें सौंपी। इस वजह से तत्कालीन कॉलेज सचिव रसोमय दत्ता और उनके बीच तकरार भी पैदा हो गई। जिसके कारण उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा। लेकिन, उन्होंने 1849 में एक बार वापसी की और साहित्य के प्रोफेसर के तौर पर संस्कृत कॉलेज से जुडे़। फिर जब उन्हें संस्कृत कालेज का प्रधानाचार्य बनाया गया तो उन्होंने कॉलेज के दरवाजे सभी जाति के बच्चों के लिए खोल दिए।

समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर

ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने स्थानीय भाषा और लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूलों की एक श्रृंखला के साथ कोलकाता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना की। इससे भी कई ज्यादा उन्होंने इन स्कूलों को चलाने के पूरे खर्च की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली। स्कूलों के खर्च के लिए वह विशेष रूप से स्कूली बच्चों के लिए बंगाली में लिखी गई किताबों की बिक्री से फंड जुटाते थे। उन्होंने विधवाओं की शादी के हख के लिए खूब आवाज उठाई और उसी का नतीजा था कि विधवा पुनर्विवाह कानून-1856 पारित हुआ। 

उन्होंने खुद एक विधवा से अपने बेटे की शादी करवाई थी। उन्होंने बहुपत्नी प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। उनके इन्हीं प्रयासों ने उन्हें समाज सुधारक के तौर पर पहचान दी। उन्होंने साल 1848 में वैताल पंचविंशति नामक बंगला भाषा की प्रथम गद्य रचना का भी प्रकाशन किया था। नैतिक मूल्यों के संरक्षक और शिक्षाविद विद्यासागर का मानना था कि अंग्रेजी और संस्कृत भाषा के ज्ञान का समन्वय करके भारतीय और पाश्चात्य परंपराओं के श्रेष्ठ को हासिल किया जा सकता है।

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