Saturday, April 27, 2024
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Blog: #MeToo…..अरे भाई तुम्हारे पेट में इतना दर्द क्यों हो रहा है?

ये दर्द तब क्यों नही उठता जब कोई सीनियर तुम्हारे सामने किसी महिला पर अश्लील कमैंट्स करता है और चार लोग उस पर हंसते हैं? शायद इसलिए कि तुम भी उन्हीं चार में से एक होगे, ठहाके लगा रहे होगे।

Sucharita Kukreti Written by: Sucharita Kukreti
Published on: October 12, 2018 13:20 IST
Blog: #MeToo…..अरे भाई तुम्हारे पेट में इतना दर्द क्यों हो रहा है?- India TV Hindi
Blog: #MeToo…..अरे भाई तुम्हारे पेट में इतना दर्द क्यों हो रहा है?

ज़्यादा हैरानी नहीं है कि इस #MeToo कैंपेन के खिलाफ खड़े होने वालों की संख्या अच्छी खासी है। अब क्यों?? पहले क्यों नही?? पब्लिसिटी के लिए है क्या?? पहले रिपोर्ट क्यों नही किया? अरे भाई तुम्हारे पेट में इतना दर्द क्यों हो रहा है? तुम्हारे पेट मे इतना दर्द उस वक़्त क्यों नही होता जब कोई महिला सहकर्मी अपने साथ हुई बदसलूकी की कहानी बयां करती है? तब दर्द कहां गायब हो जाता है जब किसी लड़की का आंखों से ही ऊपर से नीचे तक बॉडी स्कैन चल रहा होता है।

ये दर्द तब क्यों नही उठता जब कोई सीनियर तुम्हारे सामने किसी महिला पर अश्लील कमैंट्स करता है और चार लोग उस पर हंसते हैं? शायद इसलिए कि तुम भी उन्हीं चार में से एक होगे, ठहाके लगा रहे होगे, हंस रहे होगे और तुम्हें रत्ती भर भी फर्क नही पड़ रहा होगा। तुम ना पहले थे न अब हो इसलिए उम्मीद न तुमसे पहले थी न अब है।

लड़कियां सशक्त हैं, पढ़ी लिखी हैं। अभी तक क्यों नही बोलीं? पुलिस केस क्यों नही किया? अरे साहब ये लोग कभी समझेंगे नहीं। कोई लड़की अगर इनसे कह दे कि उसे तंग किया जा रहा है तो उसे समझा देंगे की तुम इग्नोर करो, कहीं दूसरी नौकरी ढूंढ लो। लेकिन आज जो लड़कियां सामने आ कर अपनी आपबीती बता रही हैं उन से ये उम्मीद की पुलिस में क्यों नही गयीं, केस क्यों नही किया.....बहुत हिम्मत जुटानी पड़ती है साहब।

नौकरी, कैरियर सब दाव पर लगाने की हिम्मत। घर पर बैठ कर पैसे की तंगी झेलने की हिम्मत। पुलिस, कोर्ट के चक्कर लगाने की हिम्मत और सब से बड़ी बात, ये सोच तोड़ने की हिम्मत की कोई हल्के से हाथ कमर पर फेर दे, कोई बात करते हुए चेहरा छोड़ कर हर जगह देखे, आफिस से बाहर मिलने के लिए बार बार मैसेज करे, तो इस के लिए पुलिस में जा सकते हैं, ये सब भी हैरेसमेंट है। इन सब के लिए भी केस किया जा सकता है।

आज ये समझ समाज मे आ रही है लेकिन अभी भी आ ही रही है। ऐसे में 19 साल पहले विनता नंदा के समय या 10 साल पहले तनुश्री दत्ता के समय क्या ये आसान रहा होगा?? हां इन्हें आवाज़ उठानी चाहिए थी, उसी समय उठानी चाहिए थी। पर अगर अब उठा रहीं हैं तो क्या गलत कर रही हैं?

ऐसी भी महिलाओं को जानती हूं जो पढ़ी लिखी हैं, नौकरी करती हैं पर अपने पति की मार खाती हैं। विवाह के बंधन में बंधी इन महिलाओं का उत्पीड़न सरासर गलत है कि नही?  फिर भी इनमें से कितनी पुलिस में जाती हैं? बहुत कम। पुलिस में इन्हें जाना चाहिए लेकिन एक दिन इनमें से एक कई बार मार खाने के बाद हाथ पकड़ ले और जवाब में रसीद दे एक मुंह पर, भले ही कुछ साल बाद ही सही, तो उसकी हिम्मत को सराहोगे या कहोगे 20 साल बाद क्यों??

ये वही चांटा है जो कुछ साल बाद ही सही पर पड़ा है और हिला कर छोड़ गया है। अब इस चांटे कि गूंज दूर तक जानी चाहिए। एक महिला किसी भी तरह के शोषण के खिलाफ कब आवाज़ उठाये ये उसका निर्णय है। पहले हिम्मत नही हुई तो अभी भी न कहे? पुलिस में जाये या #MeToo लिखे ये भी उसका निर्णय है।

पुलिस में जाने से वो सशक्त और #MeToo लिखने में वो दिखावटी हो जाए? एक #MeToo  के बाद भी लंबा सफर तय करना होता है। विरोध झेलना पड़ता है। उपेक्षित हो कर रहना पड़ता है। इस सब के बावजूद भी #MeToo  है तो क्यों है, ये सोचिये।

(ब्लॉग लेखिका सुचरिता कुकरेती देश के नंबर वन चैनल इंडिया टीवी में न्यूज एंकर हैं और ये उनके विचार हैं)

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