Friday, March 29, 2024
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कश्मीर में एहतियात बरतने से एक भी जान नहीं गई : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने के फैसले के बाद लगाई गई पाबंदियों को उचित ठहराते हुए गुरुवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि एहतियाती कदम के चलते एक व्यक्ति की भी जान नहीं गई और न ही एक गोली चली।

Bhasha Reported by: Bhasha
Published on: November 21, 2019 23:43 IST
Supreme Court- India TV Hindi
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नयी दिल्ली: केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने के फैसले के बाद लगाई गई पाबंदियों को उचित ठहराते हुए गुरुवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि एहतियाती कदम के चलते एक व्यक्ति की भी जान नहीं गई और न ही एक गोली चली। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि सवाल के बजाय केंद्र सरकार को पांच अगस्त के ऐतिहासिक और अद्वितीय फैसले के बाद राज्य के हालात को प्रभावी तरीके से संभालने के लिए बधाई दी जानी चाहिए। 

उन्होंने न्यायमूर्ति एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि पांच अगस्त के फैसले के बाद इंटरनेट सेवाओं की अनुमति दी जा सकती थी, फिर एक बटन दबाते ही 10,000 संदेश हजारों अलगाववादियों या आतंकवादी नेताओं को एकत्र होने के लिए भेजे जाते जिसका नतीजा अराजक स्थिति और हिंसा की घटनाएं होती। वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘ एहतियाती कदम उठाने से पहले पिछले रिकॉर्ड पर गौर किया गया। रिकॉर्ड से राज्य में आतंकवादी घटनाओं की श्रृंखला की जानकारी मिलती है। जुलाई 2016 में बुरहान वानी सहित तीन खूंखार आतंकवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने के बाद राज्य में तीन महीने तक पाबंदी लगाई गई। उस समय एक भी याचिका दायर नहीं की गई और अब 20 याचिकाएं दायर की गई है।’’ 

‘कश्मीर टाइम्स’ अखबार की संपादक अनुराधा भसीन और कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद की ओर से दायर याचिकाओं पर जवाब देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘ जो पांच अगस्त को हुआ वह देश के 70 गत साल के इतिहास में अद्वितीय है।’’ वेणुगोपाल ने पीठ को बताया, ‘‘ भारत सरकार को इस हालात को संभालने के लिए बधाई दी जानी चाहिए। इस दौरान किसी की जान नहीं गई और न ही एक गोली चली।’’ इस पीठ में न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बीआर गवई भी शामिल है। कश्मीर घाटी में आतंकवादी हिंसा का संदर्भ देते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि गत कई वर्षों से सीमा पार से आतंकवादियों को भेजा जाता रहा, स्थानीय आतंकवादी और अलगवावादी संगठनों ने इलाके के लोगों को बंधक बना लिया था और यह बेवकूफी होती अगर केंद्र सरकार नागरिकों की जान बचाने के लिए एहतियाती कदम नहीं उठाती। उन्होंने कहा, ‘‘ पहले, अनुच्छेद-370 ने आतंकवादियों और हुर्रियत को हिंसा फैलाने के लिए उर्वरक जमीन दी। इस अनुच्छेद को हटाना असामान्य स्थिति है और अगर एहतियाती कदम नहीं उठाए जाते तो इससे अशांति फैल सकती थी।’’ 

वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘ जम्मू-कश्मीर के लोगों का उज्ज्वल भविष्य इंतजार कर रहा है। उद्योग आएंगे और विकास कार्य होगा।’’ उन्होंने न्यायालय से अनुरोध किया कि वह यह नहीं देखे कि कैसे और किन परिस्थितियों में निषेधाज्ञा (धारा-144) लगायी गयी बल्कि वृहद परिदृश्य को देखे। जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने दावा किया कि विभिन्न थानों में लागू पाबंदियों में जरूरत के हिसाब से ढील दी गई और आज के दिन परस्थितियां सामान्य हो चुकी है। मेहता ने पाबंदियों के खिलाफ याचिका को अप्रासांगिक और अहमियत खो देना वाला बताते हुए दावा किया कि शत फीसदी स्कूल (20,411) खुल चुके हैं, परीक्षाएं हो रही हैं, अस्पताल खुले हैं, सार्वजनिक और निजी परिवहन सेवा सामान्य हैं, दुकानें खुली हैं, मोबाइल और लैंडलाइन फोन काम कर रहे हैं। 

उन्होंने कहा, ‘‘ कश्मीर घाटी में सभी अखबार सामान्य रूप से प्रकाशित हो रहे हैं सिवाय अनुराधा भसीन के अखबार ‘कश्मीर टाइम्स’ जिसे जानबूझकर प्रकाशित नहीं करने का फैसला किया गया। मेहता ने कहा, ‘‘ कश्मीर टाइम्स का जम्मू संस्करण प्रकाशित हो रहा है लेकिन कश्मीर संस्करण जानबूझकर प्रकाशित नहीं करने का फैसला किया गया। पत्रकारों पर कोई रोक नहीं है। उन्हें पांच अगस्त से ही इंटरनेट सुविधाएं मुहैया कराई जा रही है।’’ पीठ ने मेहता से पूछा कि दूसरे पक्ष से तर्क दिया जा रहा है कि राज्य के 70 लाख लोगों को आशंका की वजह से पाबंदियों में रखा गया है। मेहता ने जवाब दिया, ‘‘घाटी में अधिकतर आबादी के लिए हालात सामान्य है, जो केंद्र सरकार के अनुच्छेद-370 को हटाने के फैसले से खुश हैं लेकिन अलगाववादी मानसिकता वाले लोगों के लिए हालात ठीक नहीं है। यह न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकार का संरक्षक है और उसे जम्मू-कश्मीर के 99.9 फीसदी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।’’ 

सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने से पहले जम्मू-कश्मीर में केंद्र के कई कानून लागू नहीं होते थे। राज्य में सूचना का अधिकार और बाल विवाह रोकथाम के कानून भी लागू नहीं होते थे। याचिकाकर्ताओं का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘ जब बच्चों को शिक्षा के अधिकार के लाभ से वंचित किया जा रहा था तब उन्होंने अदालत का रुख नहीं किया लेकिन अब वे इंटरनेट सेवा बहाल करने की मांग को लेकर न्यायालय आए हैं।’’ मेहता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के सभी 195 पुलिस थानों से धारा 144 हटा ली गई है और रात में कुछ पाबंदी है। उन्होंने कहा, ‘‘पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आई है। पिछले साल 802 घटनाएं सामने आई थी। इस साल पत्थरबाजी की 544 घटनाएं दर्ज की है इनमें से 190 घटनाएं पांच अगस्त के बाद दर्ज की गई है।’’ याचिकाओं पर बहस पूरी नहीं हुई और सोमवार को भी यह जारी रहेगी।

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