Thursday, March 28, 2024
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Rajat Sharma Blog: जम्मू कश्मीर में नए सिरे से चुनाव ही हैं एकमात्र विकल्प

गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी ने महबूबा मुफ्ती की सरकार से 19 जून को समर्थन वापस ले लिया था, और इसके अगले ही दिन सूबे में राज्यपाल शासन लागू हो गया था।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: November 22, 2018 14:21 IST
Rajat Sharma | India TV- India TV Hindi
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जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने बुधवार की रात अचानक ही राज्य की विधानसभा को भंग कर दिया। इसके साथ ही दिनभर चले उस सियासी ड्रामे का भी अंत हो गया जिसकी शुरुआत पारंपरिक राजनीतिक प्रतिद्वंदियों पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस की कांग्रेस के साथ मिलकर नई सरकार बनाने की कोशिशों से हुई थी। दूसरी तरफ, सज्जाद लोन के नेतृत्व वाली पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने भी पीडीपी के कुछ असंतुष्ट विधायकों और भारतीय जनता पार्टी के समर्थन का दावा करते हुए सरकार बनाने का दावा पेश किया था। राज्यपाल ने राज्य की विधानसभा को भंग कर इन तमाम साजिशों और अटकलों पर तुरंत विराम लगा दिया।

 
देर रात को एक बयान में गवर्नर ने कहा, ‘विरोधी राजनीतिक विचारधाराओं वाली पार्टियों के साथ आने से स्थाई सरकार बनना असंभव है। इनमें से कुछ पार्टियों तो विधानसभा भंग करने की मांग भी करती थीं। इसके अलावा पिछले कुछ वर्ष का अनुभव यह बताता है कि खंडित जनादेश से स्थाई सरकार बनाना संभव नहीं है। ऐसी पार्टियों का साथ आना जिम्मेदार सरकार बनाने की बजाए सत्ता हासिल करने का प्रयास है।’
 
गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी ने महबूबा मुफ्ती की सरकार से 19 जून को समर्थन वापस ले लिया था, और इसके अगले ही दिन सूबे में राज्यपाल शासन लागू हो गया था। उस समय विधानसभा को भंग नहीं किया गया और इसे सस्पेंडेड एनिमेशन पर रखा गया था। 20 दिसंबर को जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन के 6 महीने पूरे होने वाले थे, इसके बाद संविधान के प्रावधानों के मुताबिक यहां राष्ट्रपति शासन लग जाता।
 
वहीं, कभी महबूबा मुफ्ती के करीबी रहे मुजफ्फर बेग के नेतृत्व में पीडीपी विधायकों के बगावत की खबरें भी आ रही थीं। यह भी कहा जा रहा था कि पीडीपी के 18 विधायक पार्टी से नाता तोड़कर सज्जाद लोन और भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिला सकते हैं। यदि ऐसा होता तो यह महबूबा मुफ्ती की पार्टी के लिए एक बड़ा सियासी झटका होता।
 
इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए महबूबा ने मजबूरी में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी उमर अब्दुल्ला से हाथ मिलाने का फैसला किया। उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस के अलावा कांग्रेस को भी साथ लिया और 56 विधायकों के समर्थन का दावा करते हुए राज्यपाल को एक चिट्टी लिखी। वहीं, दूसरी तरफ सज्जाद लोन ने भी सरकार बनाने का दावा पेश करके पेंच फंसा दिया।
 
राज्यपाल ने बुधवार की रात मास्टस्ट्रोक खेलते हुए विधानसभा को भंग कर दिया। इसके साथ ही सूबे में सरकार बनाने की सारी संभावनाएं भी खत्म हो गईं। साफ जाहिर होता है कि बगैर विधायकों की खरीद-फरोख्त किए एक चुनी हुई सरकार का गठन मुश्किल ही था। ऐसे में वर्तमान हालात को देखते हुए जम्मू-कश्मीर में फिर से चुनाव कराना ही एकमात्र रास्ता प्रतीत होता है। (रजत शर्मा)

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