Friday, April 26, 2024
Advertisement

2019 लोकसभा चुनाव जीतने की मंशा की भेंट चढ़ी 'पद्मावत': इतिहासकार

इतिहासकार कहते हैं, पद्मावत एक सूफी महाकाव्य है, जो कल्पना पर आधारित है...

IANS Reported by: IANS
Published on: January 28, 2018 19:12 IST
padmaavat- India TV Hindi
padmaavat

नई दिल्ली: इतिहासकारों का मानना है कि संजय लीला भंसाली की 'पद्मावत' वर्ष 2019 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव की भेंट चढ़ गई है। चुनाव में राजपूत वोटों की चाहत में फिल्म को बलि का बकरा बनाया गया। देश के एक जाने-माने इतिहासकार ने पहले 'पद्मावती' और उसके बाद 'पद्मावत' पर हुए फसाद पर बेबाकी से बयान दिया, मगर अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर। इसके पीछे उनका तर्क था, "नाम से लोग समझ जाएंगे कि मैं हिंदू नहीं हूं और तब मेरी बातों को शायद कुछ लोग उसी नजरिए से लेंगे।"

उन्होंने कहा, "यह इस देश का दुर्भाग्य है कि बिना इतिहास को समझे फिल्म को लेकर इतना हल्ला मचाया गया। राजपूती शान में सड़कों पर उतरने वाली इस भीड़ ने अगर 'पद्मावत' पढ़ ली होती तो यह फसाद होता ही नहीं।"

वह कहते हैं, "'पद्मावत' क्या है, यह एक सूफी महाकाव्य है, जो कल्पना पर आधारित है। इसे मलिक मुहम्मद जायसी ने 16वीं सदी में रचा था। 'पद्मावत' में पद्मावती राजपूत भी नहीं है। वह श्रीलंका की राजकुमारी थी। चित्तौड़ का राजा रतन सिंह पद्मावती के पिता को युद्ध में मारकर उसकी बेटी को ब्याहकर लाता है। कहानी में पद्मावती बुद्धि और मानवीय आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। चित्तौड़ का पड़ोसी राजा पद्मावती के पास संदेश भेजकर उनसे शादी की इच्छा व्यक्त करता है, लेकिन जब रतन सिंह को यह वाकया पता चलता है तो दोनों राजाओं के बीच युद्ध होता है। इस युद्ध में दोनों राजा मारे जाते हैं, जिसके बाद दोनों राजाओं की रानियां जौहर कर लेती हैं।"

लेकिन संजय लीला भंसाली की फिल्म इससे कुछ हटकर बयां करती है। इस फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी के पद्मावती के प्रति आसक्त होने के बारे में पूछने पर वह कहते हैं, "यह समझने की जरूरत है कि 'पद्मावत' 16वीं सदी में लिखी गई, जबकि अलाउद्दीन खिलजी 13वीं-14वीं सदी का सुल्तान था। 'पद्मावत' अवधी भाषा में रची गई कृति है और इसके रचयिता जायसी पूर्वी उत्तर प्रदेश के जायस से ताल्लुख रखते थे। उन्होंने राजस्थान की पृष्ठभूमि से जुड़ी एक सुनी हुई कहानी पर 'पद्मावत' महाकाव्य लिखा। 17वीं शताब्दी में राजस्थान के किसी राजपूत परिवार ने ऐसी कहानियों का संकलन किया। उन कहानियों का एक अंग्रेज इतिहासकार टॉट ने अंग्रेजी में अनुवाद कर उसे एक किताब का रूप दिया और नाम रखा 'लिजेंड्स ऑफ राजपूताना'।

उन्होंने आगे बताया कि वह किताब बाद में बंगाल पहुंची, जिसका वहां हिंदी और बांग्ला में अनुवाद हुआ। हिंदी अनुवाद 19वीं सदी में राजस्थान पहुंचा। 19वीं सदी से पहले राजस्थान में कहीं भी पद्मावती का कोई जिक्र नहीं है। 19वीं सदी के बाद ही पद्मावती और खिलजी को लेकर कहानियां और अवधारणाएं बनती चली गईं। इतिहासकार ने कहा, "यह सब राजनीतिक खेल है। राजपूत वोटबैंक की राजनीति है। इनका इतिहास से कोई लेना-देना नहीं है। यह सीधे-सीधे 2019 के चुनाव में राजपूत वोट जोड़ने की राजनीति है और फिल्म इसी की भेंट चढ़ गई।"

एक और इतिहासकार और अंबेडकर विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग की प्रोफेसर तनुजा कोठियाल ने खिलजी और पद्मावती के प्रसंग के बारे में पूछे जाने पर आईएएनएस से कहा, "इसमें कोई शक नहीं है कि खिलजी इतिहास के क्रूरतम शासकों में शुमार रहा है। यह भी सच्चाई है कि उसने चित्तौड़ पर हमला किया था, लेकिन इसका कारण पद्मावती नहीं थी, बल्कि गुजरात का रास्ता राजस्थान से होकर गुजरता था। वह दिल्ली सल्तनत को बढ़ाना चाहता था।"

लेकिन यह पूछने पर कि 'पद्मावत' में किस खिलजी का जिक्र है? उनका जवाब मिला, "पद्मावत में जिस खिलजी का जिक्र किया गया है, वह अलाउद्दीन खिलजी नहीं, बल्कि जियासुद्दीन खिलजी है। खिलजी 13वीं सदी का शासक था, जबकि पद्मावत 16वीं सदी में लिखा गया और उस समय खिलजी नहीं था। एक बात और, जिस समय पद्मावत लिखा गया, उस समय रतन सिंह चित्तौड़ का राजा भी नहीं था।"

तनुजा ने कहा, "यह समझने की जरूरत है कि पद्मिनी, पद्मावती सभी काल्पनिक किरदार हैं। इनका इतिहास से कोई सरोकार नहीं है। पद्मावत लिखे जाने के बाद इससे जुड़ीं कहानियां देशभर में फैलती रहीं और लोग उनमें मनगढ़ंत बातें जोड़ते रहे। यही वजह है कि पद्मावती को लेकर भ्रांतियां बढ़ीं और इन कहानियों को चटखारे लेकर पढ़ने लगे।" भंसाली की 'पद्मावत' में अलाउद्दीन खिलजी और उनके गुलाम मलिक काफूर के 'बायसेक्सुअल संबंधों' ने भी काफी सुर्खियां बटोरी हैं। इस बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, "हां, इतिहास में इनके संबंधों का जिक्र है और यह उस दौर के हिसाब से नया नहीं है। उस दौर के कई शासकों के इस तरह के संबंध होते थे। बाबर के बारे में भी ऐसा कहा गया है।"

काफूर की हत्या के बावत तनुजा ने कहा, "मलिक काफूर, खिलजी का करीबी था। उसे खिलजी का साया कहा जा सकता है। वह खिलजी के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता था, लेकिन यह भी सच है कि बीमारी की वजह से खिलजी की मौत होने के बाद काफूर ने ही सल्तनत संभाली, लेकिन खिलजी के बेटे ने काफूर के षड्यंत्र की खबर मिलने पर उसे मार डाला था।"

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement