Friday, April 26, 2024
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राम जन्मभूमि विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर, केंद्रीय कानून को दी गई चुनौती

अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल के पास की भूमि अधिग्रहण करने संबंधी 1993 के केंद्रीय कानून की संवैधानिक वैधता को सोमवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई।

Bhasha Written by: Bhasha
Published on: February 04, 2019 17:57 IST
उच्चतम न्यायालय- India TV Hindi
उच्चतम न्यायालय

नई दिल्ली: अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल के पास की भूमि अधिग्रहण करने संबंधी 1993 के केंद्रीय कानून की संवैधानिक वैधता को सोमवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई। स्वयं को राम लला का भक्त बताने का दावा करने वाले लखनऊ के दो वकीलों सहित सात व्यक्तियों ने ये याचिका दायर की है। याचिका में दलील दी गई है कि संसद राज्य की भूमि का अधिग्रहण करने के लिए कानून बनाने में सक्षम नहीं है। याचिका में कहा गया है कि राज्य की सीमा के भीतर धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन के लिए कानून बनाने का अधिकार राज्य विधानमंडल के पास है।

याचिकाकर्ताओं के अनुसार अयोध्या के कतिपय क्षेत्रों का अधिग्रहण कानून,1993 संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त और संरक्षित हिंदुओं के धर्म के अधिकार का अतिक्रमण करता है। याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को 1993 के कानून के तहत अधिग्रहित 67.703 एकड़ भूमि, विशेषरूप से श्री राम जन्म भूमि न्यास, राम जन्मस्थान मंदिर, मानस भवन, संकट मोचन मंदिर, जानकी महल और कथा मंडल, में स्थित पूजा स्थलों पर पूजा, दर्शन और धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन में हस्तक्षेप नहीं करने का निर्देश दिया जाए। 

याचिका में दलील दी गई है कि संविधान के अनुच्छेद 294 में स्पष्ट प्रावधान है कि संविधान लागू होने की तारीख से उत्तर प्रदेश के भीतर स्थित भूमि और संपत्ति राज्य सरकार के अधीन है। याचिका में कहा गया है कि ऐसी स्थिति में अयोध्या में स्थित भूमि और संपत्ति उप्र राज्य की संपत्ति है और केंद्र सरकार अयोध्या में स्थित भूमि और संपत्ति सहित उसका कोई भी हिस्सा अपने अधिकार में नहीं ले सकती है।

इससे पहले, 29 जनवरी को केंद्र सरकार ने भी एक याचिका दायर कर शीर्ष अदालत से अनुरोध किया था कि उसे अयोध्या में 2.77 एकड़ के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल के आसपास अधिग्रहित की गई 67 एकड़ भूमि उसके असली मालिकों को सौंपने की अनुमति दी जाए। केंद्र ने दावा किया है कि सिर्फ 0.313 भूमि ही विवादित है जिस पर वह ढांचा था, जिसे कार सेवकों ने 6 दिसंबर, 1992 को ढहा दिया था।

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