Friday, March 29, 2024
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BLOG: क्या सिंधु जल समझौता टूटना आसान है ?

मीनाक्षी जोशी इन दिनों सिंधु जल समझौता रद्द कर पाकिस्तान को करारा जवाब देने की बात सोशल मीडिया पर जोर शोर से जारी है। प्रधानमंत्री जहां एक ओर संयम बरतते हुए पाकिस्तान को गरीबी, अशिक्षा,

IndiaTV Hindi Desk IndiaTV Hindi Desk
Updated on: September 27, 2016 23:59 IST
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Image Source : KHABAR INDIA TV sindhu river blog

मीनाक्षी जोशी

इन दिनों सिंधु जल समझौता रद्द कर पाकिस्तान को करारा जवाब देने की बात सोशल मीडिया पर जोर शोर से जारी है। प्रधानमंत्री जहां एक ओर संयम बरतते हुए पाकिस्तान को गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी से लड़ने की चुनौती दे रहे हैं वहीं संचार के कई माध्यमों के जरिए ऐसा माहौल बनाया जा रहा है मानो हमारे टैंक पाकिस्तान की ओर कूच कर गए हों।

अटकलें लगने लगीं  हैं क्या पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत सिंधु नदी समझौता तोड़ देगा ? क्या भारत 1960 में हुई इस संधि को दरकिनार करते हुए पानी रोकेगा ? भारत और पाकिस्तान के बीच युद्द की हिमायती लोग भले ही चटकारे लेकर ये चर्चा कर रहे हों लेकिन क्या सिंधु का पानी रोकना तो व्यवहारिक तौर पर संभव है! यह मानवता के विरुद्ध है और अंतराष्ट्रीय समझौतों के लिहाज से आसान भी नहीं लगता।

भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के बीच ये संधि 1960 में हुई थी। इसमें सिंधु नदी बेसिन में बहने वाली 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी दो हिस्सों में बांटा गया। पूर्वी हिस्से में बहने वाली नदियों सतलज, रावी और ब्यास के पानी पर भारत का अधिकार है जबकि पश्चिमी हिस्से में बह रही सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी का भारत सीमित उपयोग कर सकता है। इस संधि के मुताबिक भारत इन नदियों के पानी का कुल 20 फीसद पानी ही रोक सकता है।

सिंधु की लंबाई 3000 किलोमीटर से अधिक है और ये दुनिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है। ये भारत की गंगा नदी से भी बड़ी है। इसकी सहायक नदियां चिनाब, झेलम, सतलज, राबी और ब्यास के साथ इसका संगम पाकिस्तान में होता है। सिंधु नदी बेसिन के फैलाव का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उत्तर प्रदेश जैसे 4 राज्य इसमें समा सकते हैं। इन नदियों का उद्गम भारत में है यानी नदियां भारत से पाकिस्तान में जा रही हैं और भारत चाहे तो सिंधु के पानी को रोक सकता है। ऐसे में पाकिस्तान के दो तिहाई हिस्से जहां सिंधु और उसकी सहायक नदियां बहती हैं वो तबाह हो सकते हैं।

लेकिन सवाल ये है कि उन्मांद में कहने को तो ये बातें ठीक हैं लेकिन क्या ऐसा कर पाना संभव है ? मौजूदा हाल में पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जिस तरह से सिंधु के पानी को रोकने की बात की जा रही है वह बेहद मुश्किल है। इस नदी में इतना पानी है कि इसे रोक पाना कोई आसान काम नहीं। इसके लिए भारत को बांध और कई नहरें बनानी होंगी। जिसके लिए बहुत पैसे  की जरुरत होगी और काफी समय भी लगेगा। लाखों लोगों को  विस्थापन की समस्या का समाना भी करना पड़ सकता है और इसके पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेंगे। जो आने वाले सालों में दोनों देशों को भारी संकट में डाल सकता है।

यही नहीं अंतराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक भारत 'रन ऑफ द रिवर' प्रोजेक्ट  के तहत सिंधु के पानी का इस्तेमाल तो कर सकता है लेकिन बहता पानी रोक नहीं सकता। इस कदम से भारत के अंतरराष्ट्रीय साख को भी नुकसान होगा। अब तक भारत ने ऐसी किसी भी अंतराष्ट्रीय संधि का उल्लंघन नहीं किया। अगर भारत अब पानी रोकता है तो पाकिस्तान को हर मंच पर भारत के खिलाफ बोलने का एक मौका मिलेगा और वो इसे मानवाधिकारों से जोड़ेगा।

चीन से कई नदियां भारत में आती हैं और आने वाले दिनों में चीन भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल के साथ भी भारत की नदी जल संधियां हैं और इन पर भी इसका असर पड़ सकता है।

सबसे बड़ा सवाल तो भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की एकता को लेकर है जहां सियासतदानों की तमाम नफरत भरी राजनीति के बाद भी लोगों में दोस्ती का, अपनेपन का एक भाव नजर आता है। वैसे भी ये हकीकत है कि भारत और पाकिस्तान के बीच का तनाव वहां के सियासी दलों, सेना और आईएसआई की उपज है। इसकी सजा सिंधु नदी की तराई में बसने वाले लाखों लोगों को क्यों दी जाए ?

(ब्लॉग लेखिका मीनाक्षी जोशी देश के नंबर वन चैनल इंडिया टीवी में न्यूज एंकर हैं)

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