Thursday, March 28, 2024
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अरुण जेटली का मल्लिकार्जुन खड़गे पर वार, बोले- ‘नियमित रूप से जताते हैं असहमति’

केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि ‘‘CBI निदेशक की नियुक्ति और स्थानांतरण को देखने वाली प्रधानमंत्री, भारत के प्रधान न्यायाधीश और विपक्ष के नेता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति में एकमात्र चीज जो लगातार स्थिर बनी हुई है वह है खड़गे की असहमति।’’

Bhasha Written by: Bhasha
Updated on: February 03, 2019 17:34 IST
Arun Jaitley- India TV Hindi
Arun Jaitley

नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे पर अत्यधिक असहमति जताने का आरोप लगाते हुए रविवार को कहा कि उन्होंने CBI निदेशक की नियुक्ति को एक राजनीतिक संघर्ष की तरह बताने का प्रयास किया, जिसकी कभी परिकल्पना नहीं की गई थी। दरअसल, खड़गे ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर रिषि कुमार शुक्ला को नया CBI निदेशक नियुक्त करने पर अपनी असहमति जताई थी। 

खड़गे ने आरोप लगाया था कि अधिकारी को भ्रष्टाचार निरोधक मामलों की जांच का अनुभव नहीं है और कानून एवं उच्चतम न्यायालय के फैसलों का उल्लंघन करते हुए चयन के मानदंडों को कमजोर किया गया। जेटली ने एक ब्लाग में लिखा है कि लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता खड़गे ने नए CBI निदेशक की नियुक्ति में ‘‘एक बार फिर असहमति जताई है।’’ उन्होंने कहा कि ‘‘खड़गे नियमित रूप से असहमति जताते हैं।’’ 

जेटली ने याद किया कि कांग्रेस नेता ने तब भी असहमति जतायी थी जब आलोक वर्मा को CBI निदेशक नियुक्त किया गया था, तब भी असहमति जताई थी जब वर्मा को स्थानांतरित किया गया और अब भी असहमति जताई है जब शुक्ला की नियुक्ति की गई है। जेटली ने कहा, ‘‘CBI निदेशक की नियुक्ति और स्थानांतरण को देखने वाली प्रधानमंत्री, भारत के प्रधान न्यायाधीश और विपक्ष के नेता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति में एकमात्र चीज जो लगातार स्थिर बनी हुई है वह है खड़गे की असहमति।’’

जेटली ने कहा कि विपक्ष के नेता जब कालेजियम के एक सदस्य के तौर पर बैठते हैं तो वह अपने पद का राजनीतिक रंग छोड़ देते हैं, वैसे ही जैसे प्रधानमंत्री और भारत के प्रधान न्यायाधीश अपने अपने अधिकारक्षेत्र का प्राधिकार छोड़कर निदेशक की नियुक्ति केवल योग्यता और निष्पक्षता के मानदंड पर करने पर कार्य करते हैं।

इलाज के लिए पिछले महीने अमेरिका गए जेटली ने कहा, ‘‘खड़गे का लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद उन्हें समिति में बैठने का हकदार बनाता है। लेकिन, उस पद का राजनीतिक रंग बाहर छोड़ देना होता है।’’ उन्होंने कहा कि असहमति लोकतंत्र में एक शक्तिशाली साधन है। असहमति संसदीय प्रणाली का भी हिस्सा है, विशेष तौर पर विधायी समितियों में। असहमति जताने वाला वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। जहां मौद्रिक नीति समितियां होती हैं, सदस्यों द्वारा असहमति यदा कदा जताई जाती हैं।

मंत्री ने कहा, ‘‘नियुक्तियों वाले कॉलेजियम में हमेशा असहमति जताने वाला यह संदेश देता है कि उसे विपक्ष के नेता की उसकी क्षमता के कारण एक सदस्य के रूप में शामिल किया गया था, लेकिन वह विपक्ष के सदस्य के रूप में अपनी भूमिका नहीं छोड़ सका जबकि अब वह एक सरकारी समिति का हिस्सा है। उनकी असहमति ने उसका मूल्य और विश्वसनीयता कम कर दी है।’’

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