Friday, April 19, 2024
Advertisement

स्वतंत्रता दिवस: ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ान कैसे बने बाचा खान से सीमांत गांधी?

गफ्फार खान और महात्मा गाँधी के बीच एक आध्यात्मिक स्तर की मित्रता थी। दोनों को एक दूसरे के प्रति अपार स्नेह और सम्मान था और दोनों ने सन 1947 तक मिल-जुलकर काम किया। गफ्फार खान के खुदाई खिदमतगार और कांग्रेस ने स्वाधीनता के संघर्ष में एक-दूसरे का साथ निभ

India TV News Desk Edited by: India TV News Desk
Published on: August 12, 2017 13:07 IST
abdul-ghaffar-khan- India TV Hindi
abdul-ghaffar-khan

नई दिल्ली: ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को लोग बाचा खान और बादशाह ख़ान के नाम से भी जानते हैं। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। वो 20वीं शताब्दी के पख्तूनों के सबसे करिश्माई नेता थे। वो महात्मा गांधी के पद चिन्हों पर चले और लोग उन्हें सीमांत गांधी कहने लगे। विनम्र ग़फ़्फ़ार ने सदैव स्वयं को एक ‘स्वतंत्रता संघर्ष का सैनिक’ मात्र कहा, परन्तु उनके प्रसंशकों ने उन्हें ‘बादशाह ख़ान’ कह कर पुकारा। गांधी जी भी उन्हें ऐसे ही सम्बोधित करते थे।

गफ्फार खान और महात्मा गाँधी के बीच एक आध्यात्मिक स्तर की मित्रता थी। दोनों को एक दूसरे के प्रति अपार स्नेह और सम्मान था और दोनों ने सन 1947 तक मिल-जुलकर काम किया। गफ्फार खान के खुदाई खिदमतगार और कांग्रेस ने स्वाधीनता के संघर्ष में एक-दूसरे का साथ निभाया। बादशाह खान खुद कांग्रेस के सदस्य बन गए थे। कई मौकों पर जब कांग्रेस गांधीजी के विचारों से सहमत नहीं होती तब गफ्फार खान गाँधी के साथ खड़े दिखते। वो कई सालों तक कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य रहे पर उन्होंने अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया।

गफ्फार खान महिला अधिकारों और अहिंसा के पुरजोर समर्थक थे। उन्हें एक ऐसे समाज से भी घोर सम्मान और प्रतिष्ठा मिली जो अपने ‘लड़ाकू’ प्रवित्ति के लिए जाना जाता था। उन्होंने ताउम्र अहिंसा में अपना विश्वास कायम रखा। उनके इन सिद्धांतों के कारण भारत में उन्हें ‘फ्रंटियर गाँधी’ या सीमांत गांधी के नाम से पुकारा जाता है।

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान का जन्म 6 फ़रवरी, 1890 को पेशावर, तत्कालीन ब्रिटिश भारत वर्तमान पाकिस्तान में हुआ था। उनके परदादा 'अब्दुल्ला ख़ान' बहुत ही सत्यवादी और जुझारू स्वभाव थे। उनके पिता 'बैरम ख़ान' शांत स्वभाव के थे और ईश्वरभक्ति में लीन रहा करते थे। उन्होंने अपने लड़के अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को शिक्षित बनाने के लिए 'मिशनरी स्कूल' में भेजा, पठानों ने उनका बड़ा विरोध किया। मिशनरी स्कूल की पढ़ाई समाप्त करने के बाद वे अलीगढ़ आ गए। गर्मी की छुट्टियों में समाजसेवा करना उनका मुख्य काम था। शिक्षा समाप्त कर वह देशसेवा में लग गए।

विनम्र ग़फ़्फ़ार ने सदैव स्वयं को एक 'स्वतंत्रता संघर्ष का सैनिक' मात्र कहा, परन्तु उनके प्रसंशकों ने उन्हें 'बादशाह ख़ान' कह कर पुकारा। गांधी जी भी उन्हें ऐसे ही सम्बोधित करते थे। राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेकर उन्होंने कई बार जेलों में घोर यातनायें झेली हैं। फिर भी वे अपनी मूल संस्कृति से विमुख नहीं हुए। इसी वज़ह से वह भारत के प्रति अत्यधिक स्नेह भाव रखते थे।

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को वर्ष 1987 में भारत सरकार की ओर से भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। सन 1988 में पाकिस्तान सरकार ने उन्हें पेशावर में उनके घर में नज़रबंद कर दिया गया। 20 जनवरी, 1988 को उनकी मृत्यु हो गयी और उनकी अंतिम इच्छानुसार उन्हें जलालाबाद अफ़ग़ानिस्तान में दफ़नाया गया।

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement