Saturday, April 27, 2024
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केरल में मुसलमानों की आर्थिक स्थिति, साक्षरता दर बेहतर, लेकिन जनसंख्या वृद्धि दर ज्यादा: रिपोर्ट

केरल में मुसलमानों की आर्थिक स्थिति और साक्षरता दर बेहतर होने के बावजूद उनकी जनसंख्या वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है।

Bhasha Reported by: Bhasha
Published on: October 07, 2018 14:56 IST
Representational Image | PTI- India TV Hindi
Representational Image | PTI

नई दिल्ली: मुस्लिम समुदाय में गरीबी और पिछड़ेपन के लिए उच्च शिक्षा में कम हिस्सेदारी और जनसंख्या वृद्धि को अहम कारण माना जाता है लेकिन एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, केरल में यह तर्क लागू नहीं होता। केरल में मुसलमानों की आर्थिक स्थिति और साक्षरता दर बेहतर होने के बावजूद उनकी जनसंख्या वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। ‘सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस’ की ‘भारत की अल्पसंख्यक नीति और देश में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन’ विषय पर रिपोर्ट में कहा गया है कि केरल की आबादी 2001 की तुलना में 2011 में 3.18 करोड़ से बढ़कर 3.34 करोड़ दर्ज की गई जो करीब 15 लाख की वृद्धि दर्शाती है। इसमें मुस्लिम आबादी में 10.10 लाख वृद्धि, हिन्दुओं की आबादी में 3.62 लाख और ईसाइयों की आबादी में 84 हजार की वृद्धि दर्ज की गई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि केरल में मुसलमान आर्थिक रूप से समृद्ध हैं और उनकी साक्षरता दर भी राष्ट्रीय औसत से बेहतर है। राज्य में हिन्दुओं की आबादी 54.9 प्रतिशत, मुसलमानों की आबादी 26.6 प्रतिशत और ईसाइयों की आबादी 18.4 प्रतिशत है। हालांकि साल 2015 में शिशु जन्म में हिन्दुओं का योगदान 42.87 प्रतिशत, मुसलमानों का 41.5 प्रतिशत और ईसाइयों का 15.42 प्रतिशत रहा। इसमें कहा गया है कि आमतौर पर मुस्लिम समुदाय में गरीबी और पिछड़ेपन के लिए उच्च शिक्षा में कम हिस्सेदारी और जनसंख्या वृद्धि को अहम कारण माना जाता है लेकिन केरल के मामले में यह तर्क लागू नहीं होता। मुस्लिम समुदाय में महिलाओं के, साक्षरता और कार्य में हिस्सेदारी दोनों में पीछे रहने का उल्लेख करते हुए एक रिपोर्ट में सरकार से अल्पसंख्यकों से जुड़े इस गंभीर विषय पर समग्रता से विचार करने और वस्तुपरक पहल अपनाने का सुझाव दिया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, देश में अल्पसंख्यकों से जुड़ी अनेक योजनाएं चल रही हैं लेकिन क्रियान्वयन के स्तर पर कमियों के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहे हैं। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर महिला कार्य सहभागिता दर 24.64 प्रतिशत है जबकि मुस्लिम समुदाय में यह दर सबसे कम, 15.58 प्रतिशत है। इसमें कहा गया है कि निम्न साक्षरता दर आर्थिक अवसरों की उपलब्धता को कम करती है जिसके कारण कार्य में हिस्सेदारी दर घटती है। किसी भी समुदाय में गरीबी को साक्षरता और कार्य में हिस्सेदारी के समग्र प्रभाव के रूप में देखा जाता है। मुस्लिम समुदाय दोनों कारकों में पीछे है। इसका एक महत्वपूर्ण कारक मुस्लिम समाज में ‘महिलाओं की स्थिति’ है। रिपोर्ट के अनुसार, जो समाज महिलाओं के साथ समानता एवं सम्मानपूर्ण व्यवहार करता है, उसमें महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने वाले समाज की तुलना में विकास की अधिक क्षमता होती है।

रिपोर्ट में 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर कहा गया है कि हिन्दुओं में निरक्षरों की संख्या 36.39 प्रतिशत है जिसमें 44 प्रतिशत महिलाएं एवं 29.22 प्रतिशत पुरुष शामिल हैं। मुसलमानों में 42.72 प्रतिशत निरक्षर हैं जिनमें 48.1 प्रतिशत महिलाएं तथा 37.59 प्रतिशत पुरुष शामिल हैं। ईसाइयों में 25.65 प्रतिशत निरक्षर हैं जिसमें 28.03 प्रतिशत महिलाएं और 23.22 प्रतिशत पुरुष शामिल हैं। सिखों में निरक्षर 32.49 प्रतिशत हैं जिसमें महिलाएं 36.71 प्रतिशत और पुरुष 28.68 प्रतिशत हैं। इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि राष्ट्र से जुड़े वृहद उद्देश्यों को हासिल करने के लिये सरकार को अल्पसंख्यकों के प्रति अपनी पहल में बदलाव लाना चाहिए ताकि महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाया जा सके।

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