Tuesday, April 16, 2024
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अदालत ने मीडिया को उन्नाव बलात्कार पीड़िता, परिवार और गवाहों का नाम-पता उजागर करने से रोका

दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को मीडिया को निर्देश दिया कि वह रिपोर्टिंग के दौरान उन्नाव बलात्कार पीड़िता, उसके परिवार और गवाहों का नाम-पता तथा मामले के कुछ अन्य पहलुओं को उजागर करने से परहेज करे।

Bhasha Reported by: Bhasha
Published on: August 07, 2019 22:47 IST
Unnao - India TV Hindi
Image Source : PTI An ambulance carries the Unnao rape survivor to the AIIMS trauma centre for treatments after she was airlifted from Lucknow. (FILE)

नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को मीडिया को निर्देश दिया कि वह रिपोर्टिंग के दौरान उन्नाव बलात्कार पीड़िता, उसके परिवार और गवाहों का नाम-पता तथा मामले के कुछ अन्य पहलुओं को उजागर करने से परहेज करे।

जिला न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने मामले में मीडिया रिपोर्टिंग को लेकर कई दिशा-निर्देश जारी किए। उन्होंने कहा कि मीडिया गवाहों की गवाही तथा मामले के गुण-दोष पर रिपोर्टिंग न करे। अदालत उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार मामले में रोजाना सुनवाई कर रही है। इसने कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार मुकदमे को 45 दिन के भीतर पूरा किया जाना है। इसने जांच पूरी करने के लिए 30 दिन देने के सीबीआई के आग्रह को मानने से इनकार कर दिया और कहा कि इसे 17 अगस्त तक पूरा करना होगा।

सीबीआई की ओर से पेश हुए वरिष्ठ लोक अभियोजक अशोक भारतेन्दु ने कहा कि अदालत द्वारा रिकॉर्ड किए गए पीड़िता के बयान पर इस मामले में भरोसा किया जाना चाहिए और आरोपी लोगों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। सीबीआई की दलीलों का विरोध करते हुए आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर की ओर से पेश वकील तनवीर अहमद मीर ने कहा कि आरोप ‘‘झूठे’’ हैं। उन्होंने दावा किया कि आरोप सेंगर और पीड़िता के परिवारों के बीच पहले से चली आ रही दुश्मनी का नतीजा हैं।

मीडिया को निर्देश जारी करते हुए अदालत ने कहा कि बंद कमरे में सुनवाई को लेकर बाद में उचित फैसला सुनाएगी। इसने सोमवार को मामले में आरोपी विधायक कुलदीप सेंगर को उत्तर प्रदेश की सीतापुर जेल से दिल्ली की तिहाड़ जेल में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था। सेंगर पर आरोप है कि उसने 2017 में उन्नाव स्थित अपने आवास में पीड़िता से बलात्कार किया। पीड़िता उस समय नाबालिग थी। उच्चतम न्यायालय ने पिछले सप्ताह मामले में रोजाना सुनवाई करने और इसे 45 दिन के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया था। 

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