Friday, March 29, 2024
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संविधान विशेषज्ञों ने CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का विरोध किया

संवैधानिक विशेषज्ञों ने आज महसूस किया कि कांग्रेस नीत विपक्ष का देश के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को पद से हटाने की कार्यवाही शुरू करने के लिये दिये गए नोटिस से राजनीति की बू आती है और यह संसद में पारित नहीं हो पाएगा।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: April 20, 2018 23:45 IST
Constitutional experts oppose impeachment motion against CJI Misra - India TV Hindi
Constitutional experts oppose impeachment motion against CJI Misra 

नयी दिल्ली: संवैधानिक विशेषज्ञों ने आज महसूस किया कि कांग्रेस नीत विपक्ष का देश के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को पद से हटाने की कार्यवाही शुरू करने के लिये दिये गए नोटिस से राजनीति की बू आती है और यह संसद में पारित नहीं हो पाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला न तो शक्तियों का दुरूपयोग है और न ही कोई कदाचार है। 

सात विपक्षी दलों के नेताओं ने आरोप लगाते हुए आज उप राष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू से मुलाकात की और उन्हें प्रधान न्यायाधीश को पद से हटाने की कार्यवाही शुरू करने के प्रस्ताव का नोटिस दिया। इस नोटिस पर 64 राज्यसभा सदस्य और सात ऐसे सदस्यों के हस्ताक्षर हैं, जिनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है। 

यह कदम प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाली उच्चतम न्यायालय की एक पीठ द्वारा उन याचिकाओं को खारिज किये जाने के एक दिन बाद आया है जिनमें विशेष सीबीआई न्यायाधीश बी एच लोया की मृत्यु की स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी। कदम को प्रमुख विधिवेत्ता जैसे सोली सोराबजी, उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों एस एन ढींगरा और अजित कुमार सिन्हा और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने ‘‘प्रेरित’’ और ‘‘राजनीतिक’’ बताया। 

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली तत्कालीन राजग सरकार के दौरान अटॉर्नी जनरल रहे सोराबजी ने प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ पद से हटाने की कार्यवाही शुरू करने का नोटिस देने के लिए तीखा हमला बोला और कहा, ‘‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ यह सबसे खराब बात हो सकती है।’’ 

उन्होंने कहा कि आज की घटना लोगों के मन में न्यायपालिका में विश्वास और भरोसे को हिला देगी। सोराबजी के विचार को न्यायमूर्ति ढींगरा ने भी साझा किया और कहा कि यह राजनीतिक लाभ हासिल करने का एक प्रयास है। 

उन्होंने गत 12 जनवरी को न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एम बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की ओर से आहूत संवाददाता सम्मेलन की ओर परोक्ष रूप से इशारा किया जिसमें वे मुद्दे उठाये गए थे जो कि इस नोटिस में प्रतिबिंबित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच असंतोष इस कदम को उचित नहीं ठहराता। 

उन्होंने कहा, ‘‘यह नोटिस प्रेरित है और संसद सदस्य यह जानते हुए राजनीतिक लाभ चाहते हैं कि उनके पास प्रधान न्यायाधीश को हटाने की कार्यवाही के लिए पर्याप्त संख्या बल नहीं है। न्यायाधीशों के बीच असंतोष का यह मतलब नहीं कि आप पद से हटाने की कार्यवाही शुरू कर दें। असंतोष जीवन का एक हिस्सा है।’’ न्यायमूर्ति सिन्हा और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने इसे न्यायपालिका के लिए एक ‘‘दुखद दिन’’ और उच्चतम न्यायालय के कल के उस फैसले की ‘‘केवल एक प्रतिक्रिया’’ करार दिया जिसमें उसने न्यायाधीश लोया की कथित संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु की जांच की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। लोया सोहराबुदीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवायी कर रहे थे। 

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