Friday, March 29, 2024
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असाध्य रोग से ग्रसित लोगों को इच्छा मृत्यु की मंजूरी मिलने तक का घटनाक्रम कुछ यूं रहा

असाध्य रोग से ग्रसित लोगों को इच्छा मृत्यु की मंजूरी देने तक का घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है.....

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: March 09, 2018 20:32 IST
Supreme court- India TV Hindi
Image Source : PTI Supreme court

नयी दिल्ली: असाध्य रोग से ग्रसित लोगों को इच्छा मृत्यु की मंजूरी देने तक का घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है..... 

11 मई, 2005 : सुप्रीम कोर्ट ने असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु की अनुमति देने संबंधी गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की याचिका को मंजूरी दी। कोर्ट ने सम्मान के साथ मृत्यु के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में घोषित करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर केन्द्र से जवाब मांगा। 

16 जनवरी, 2006 : कोर्ट ने दिल्ली चिकित्सा परिषद( डीएमसी) को हस्तक्षेप करने की अनुमति दी और निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु पर दस्तावेज दायर करने का निर्देश दिया।।

28 अप्रैल, 2006 : विधि आयोग ने निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु पर एक विधेयक का मसौदा तैयार करने की सलाह दी और कहा कि हाईकोर्ट में दायर ऐसी याचिकाओं पर विशेषज्ञों की राय लेने के बाद ही फैसला हो। 

31 जनवरी, 2007 : कोर्ट का सभी पक्षों से दस्तावेज दायर करने का निर्देश। 

7 मार्च, 2011 : अरूणा शानबाग की ओर से दायर अन्य याचिका पर कोर्ट ने मुंबई के एक अस्पताल में पूर्णतया निष्क्रिय अवस्था में पड़ीं नर्स को इच्छा मृत्यु की अनुमति दी। 

23 जनवरी, 2014 : भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी. सताशिवम की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने मामले पर अंतिम सुनवाई शुरू की। 

11 फरवरी, 2014 : डीएमसी ने भारत में निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु पर नीतिगत बयान संबंधी अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला की कार्यवाही से जुड़े दस्तावेजों की प्रति कोर्ट को सौंपी, कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा। 

25 फरवरी, 2014 : कोर्ट ने शानबाग मामले में दिये गये फैसले सहित निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु पर दिये गए विभिन्न फैसलों में समरूपता नहीं होने की बात कहते हुए जनहित याचिका को संविधान पीठ के पास भेजा। 

15 जुलाई, 2014 : पांच जजों की पीठ ने याचिका पर सुनवाई शुरू की, सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को नोटिस भेजे, वरिष्ठ अधिवक्ता टी. आर. अंद्यार्जुना को न्याय मित्र नियुक्त किया। मामला लंबित रहने के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी। 

15 फरवरी, 2016 : केन्द्र ने कहा कि वह मामले पर विचार कर रही है। 

11 अक्तबूर, 2017 : भारत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने दलीलें सुनी और फैसला सुरक्षित रखा। 

नौ मार्च, 2018 : कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में इस तथ्य को मान्यता दे दी कि असाध्य रोग से ग्रस्त मरीज इच्छा पत्र लिख सकता है जो चिकित्सकों को उसके जीवन रक्षक उपकरण हटाने की अनुमति देता है। कोर्ट ने कहा कि जीने की इच्छा नहीं रखने वाले व्यक्ति को निष्क्रिय अवस्था में शारीरिक पीड़ा सहने नहीं देना चाहिए। पीठ ने निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु और अग्रिम इच्छा पत्र लिखने की अनुमति है। संविधान पीठ ने कहा कि इस मामले में कानून बनने तक फैसले में प्रतिपादित दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे। 

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