Saturday, April 27, 2024
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कावेरी विवाद पर प्रदर्शन तेज, बेंगलूरू-मैसूरू राजमार्ग रोका गया

मांड्या (कर्नाटक): तमिलनाडु के लिए कावेरी का पानी छोड़ने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद कर्नाटक में आंदोलन तेज हो गया और राज्य के किसानों और कन्नड समर्थक संगठनों ने आज बेंगलूरू-मैसूरू राजमार्ग बंद

India TV News Desk India TV News Desk
Updated on: September 06, 2016 17:46 IST
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मांड्या (कर्नाटक): तमिलनाडु के लिए कावेरी का पानी छोड़ने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद कर्नाटक में आंदोलन तेज हो गया और राज्य के किसानों और कन्नड समर्थक संगठनों ने आज बेंगलूरू-मैसूरू राजमार्ग बंद कर दिया। कावेरी राजनीतिक के केन्द्र मांड्या जिले में बंद रखा गया। प्रदर्शनकारियों ने अनेक जगहों पर सड़कें जाम कर दी और धरने दिए। कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए कावेरी क्षेत्र में केन्द्रीय बल समेत सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है।

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उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक को निर्देश दिया है कि तमिलनाडु के किसानों की दिक्कतें दूर करने के लिए वह अगले 10 दिन तमिलनाडु को 15000 क्यूसेक पानी छोड़े। इस निर्देश के बाद कावेरी पर विवाद गरमा गया जिसके मद्देनजर नौ सितंबर तक कृष्णराजसागर बांध के ईदगिर्द निषेधाज्ञा लगा दी गई और वहां आगंतुकों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई।

पुलिस ने बताया कि मांड्या में प्रदर्शनकारियों ने अनेक सरकारी दफ्तरों में तोड़फोड़ की और उसे बंद करने के लिए बाध्य कर दिया। दूकानें, होटल और अन्य वाणिज्यिक प्रतिष्ठान बंद रहे। जिले में स्कूलों और कालेजों में छुट्टी घोषित कर दी गई। जिले में सरकारी और निजी बसें सड़कों से गायब हैं। मैसूरू और हासन जिले में भी प्रदर्शन हो रहे हैं। प्रदर्शनकारी मांग कर रहे हैं कि कर्नाटक कावेरी नदी से तमिलनाडु को पानी नहीं दे। प्रदर्शनकारियों ने कई स्थानों पर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता के पुतले फूंके।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री वरिष्ठ मंत्रियों, कानूनी विशेषज्ञों और अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैं। उन्होंने भावी रणनीति तय करने के लिए विधानमंडल के नेताओं और सांसदों की बैठक भी बुलाई है।

आखिर क्या है कावेरी जल विवाद ?

कावेरी जल विवाद अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है। 1924 में इन दोनों के बीच समझौता हुआ, लेकिन बाद में विवाद में केरल और पुडुचेरी भी शामिल हो गए जिससे यह और मुश्किल हो गया। 1972 में गठित एक कमेटी की रिपोर्ट के बाद 1976 में कावेरी जल विवाद के सभी चार दावेदारों के बीच एग्रीमेंट किया गया, जिसकी घोषणा संसद में हुई इसके बावजूद विवाद जारी रहा।

1986 में तमिलनाडु ने अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956) के तहत केंद्र सरकार से एक ट्रिब्यूनल की मांग की। 1990 में ट्रिब्यूनल का गठन हो गया। ट्रिब्यूनल ने फैसला किया कि कर्नाटक की ओर से कावेरी जल का तय हिस्सा तमिलनाडु को मिलेगा। कर्नाटक मानता है कि ब्रिटिश शासन के दौरान वह रियासत था जबकि तमिलनाडु ब्रिटिश का गुलाम, इसलिए 1924 का समझौता न्यायसंगत नहीं। कर्नाटक का कहना है कि तमिलनाडु की तुलना में वहां कृषि देर से शुरू हुआ। वह नदी के बहाव के रास्ते में पहले है, उसे उसपर पूरा अधिकार है।

तमिलनाडु पुराने समझौतों को तर्कसंगत बताते हुए कहता है, 1924 के समझौते के अनुसार, जल का जो हिस्सा उसे मिलता था, अब भी वही मिले। केंद्र जून 1990 को न्यायाधिकरण का गठन किया और अब तक इस विवाद को सुलझाने की कोशिश चल रही है।

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