Wednesday, April 24, 2024
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अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने ‘जन्म स्थल’ के बारे में मुस्लिम पक्ष से किया सवाल

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर हिन्दुओं के दावे का विरोध कर रहे मुस्लिम पक्षों से उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कुछ विचारणीय प्रश्न पूछे और उससे यह जानना चाहा कि जन्मस्थान का संपत्ति के स्वामित्व को लेकर किसी ‘‘विधिक व्यक्ति’’ के तौर पर अधिकार क्यों नहीं हो सकता?

Bhasha Reported by: Bhasha
Published on: September 13, 2019 23:24 IST
Supreme Court- India TV Hindi
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नयी दिल्ली: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर हिन्दुओं के दावे का विरोध कर रहे मुस्लिम पक्षों से उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कुछ विचारणीय प्रश्न पूछे और उससे यह जानना चाहा कि जन्मस्थान का संपत्ति के स्वामित्व को लेकर किसी ‘‘विधिक व्यक्ति’’ के तौर पर अधिकार क्यों नहीं हो सकता? प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सुन्नी वक्फ बोर्ड और मूल याचिकाकर्ता एम सिद्दीक सहित अन्य की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने बताया कि 1989 में पहली बार ‘‘रामलला विराजमान’’ और जन्मस्थल इस विवादित स्थल पर अपने दावे को लेकर अदालत में आए थे। 

उन्होंने रामलला की ओर से देवकी नंदन अग्रवाल द्वारा एक वाद दायर कर ‘‘जन्मस्थान’’ को एक पक्ष बनाये जाने का कड़ा विरोध करते हुए कहा, ‘‘यह हमें 1989 तक देखने को नहीं मिला।’’ धवन ने पीठ से कहा कि एक भूखंड कैसे मामला दायर कर सकता है और उसे किसी मुकदमे में वाद करने के लिए ‘‘विधिक व्यक्ति’’ का दर्जा कैसे मिल रहा है। संविधान पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण एवं न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं। पीठ ने 23वें दिन मामले की सुनवाई की। उन्होंने हिन्दू पक्षों की इस दलील का विरोध किया कि रामलला के अयोध्या में जन्म का उल्लेख स्कंद पुराण एवं अन्य शास्त्रों में मिलता है। उन्होंने कहा कि यह सदियों पुरानी मान्यता है। 

पीठ ने धवन से सवाल किया कि ‘‘जन्मस्थान’’ को लेकर हिन्दुओं की मान्यता को कैसे चुनौती दे जा सकती है। पीठ ने कहा कि भगवान राम ने वहां जन्म लिया, इस मान्यता की शुचिता तथा यह सत्य है या मनगढ़त, इसकी परीक्षा केवल हिन्दू धर्म के अनुरूप ही हो सकती है। उसने कहा, ‘‘आपकी दलील है कि जन्मस्थान एक भूखंड है और इसकी विधायी हस्ती है जिसका आविष्कार पहली बार उन्होंने (हिन्दुओं ने) 1989 में किया था। सवाल है कि किसी के लिए इस बात का आकलन करने का अवसर कब था कि जन्मस्थान की विधायी हस्ती है।’’ पीठ ने कहा कि इससे पहले हिन्दुओं के पास यह कहने के लिए कोई अवसर नहीं था कि जन्मस्थान को ‘‘विधायी व्यक्ति’’ की तरह कानूनी अधिकार हैं। धवन ने कहा, ‘‘आप मुझसे असंभव का उत्तर देने के लिए कह रहे हैं।’’ पीठ अब इस मामले में 16 सितंबर को सुनवाई बहाल करेगी। 

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