Thursday, March 28, 2024
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उत्तराखंड: आज़ादी की गवाह रही है अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल

अल्मोड़ा: आज हम भले की खुली हवा में सास ले रहे हो, लेकिन देश को को आज़ाद कराने में हज़ारो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने जीवन की आहुति दी है, उन्होंने आज़ादी के खातिर जेलों

Nahid Khan Nahid Khan
Updated on: August 13, 2015 16:14 IST
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उत्तराखंड: आज़ादी की गवाह रही है अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल

अल्मोड़ा: आज हम भले की खुली हवा में सास ले रहे हो, लेकिन देश को को आज़ाद कराने में हज़ारो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने जीवन की आहुति दी है, उन्होंने आज़ादी के खातिर जेलों में रहना मंज़ूर किया लेकिन अंग्रेज़ो के सामने झुके नहीं। ऐसे ही उत्तराखंड के अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जिला जेल आजादी के संघर्ष की गवाह रही है।

अल्मोड़ा की जिला जेल आजादी के इतिहास से जुडी हुई है,यह अंग्रेज़ो के ज़ुल्म की गवाह रही है, यहाँ आज़ादी के दीवानों में जननायक पं. जवाहर लाल नेहरू, भारत रत्न गोविन्द बल्लभ पंत, फ्रन्टियर गांधी खान अब्दुल गप्फार खान, हर गोविन्द्र पंत, विक्टर मोहन जोशी,बद्रीदत्त पांडये,प. हरगोबिन्द पंत,सुश्री सरला बहन,आचार्य नरेंद्र देव,चन्द्र सिंह गढ़वाली,कामरेड पूर्ण चंद जोशी,

गोबिंद चरणकर, मोहन लाल साह,दुर्गा सिंह रावत सहित अनेक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने इस ऐतिहासिक जेल की काल कोठरियों में गुज़ारे है। यहाँ महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी रखा गया था। अल्मोड़ा की यह ऐतिहासिक जेल 1872 में बनाई गई थी, जिसमें आजादी के अनेक वीरों को यहां रखा गया था। यह जेल उत्तराखंड सबसे पुरानी जेलों में शुमार है। इस जेल में पंडित जवाहर लाल नेहरू दो बार जेल में रहे है। एक बार 28 अक्टूबर 1934 से 3 सितम्बर 1935 तक।

स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़ी हुई अनेक ऐतिहासिक यादे आज भी इस जेल में संजो कर रखी गई है, जिन्हे देख कर आज भी सब कुछ जीवंत हो उठता है। इसी जेल में प.जवाहर लाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा के कुछ अध्याय भी लिखे थे। जेल के एक सेक्शन में स्वतन्ता संग्राम के सेनानियों की अनेक यादे को संरक्षित करके रखा गया है। जिनमें उनके खाने के बर्तन, चरखा, दीपक सहित पुस्तकालय भवन है।   

लेकिन अगस्त क्रान्ति की गवाह रही यह जेल जीर्ण क्षीर्ण होती जा रही है। इन ऐतिहासिक यादों को समेंटे इस जेल को संरक्षित किए जाने की की ज़रुरत है,वर्ना किसी दिन हमारा यह आज़ादी का इतिहास दफ़न हो जायेगा।    

अल्मोड़ा की इस ऐतिहासिक जेल में अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चम्पावत जनपदों के कैदियों को रखा जाता है। यहाँ कैदियों की संख्या लगातार बढ़ने से भी इस जेल की हालत खस्ता होती  है। आजादी के दौर की गवाह रही यह जेल इतिहास के पन्नो में दर्ज है।

सरकार इस धरोहर को संरक्षित करने के लिए गंभीर दिखाई नहीं देती। फिलहाल अगस्त क्रान्ति के अवसर पर इस जेल में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।

अगली स्लाइड में देखें अल्मोड़ा जेल की तस्वीरें-

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