Friday, April 19, 2024
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BLOG: क्या कांग्रेस,एनसी और पीडीपी को इन सवालों का जबाब नहीं देना चाहिए?

राज्यपाल के द्वारा विधानसभा भंग करने को लेकर उठ रहे सवालों का जवाब, गुरुवार को राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने ख़ुद दिया है। उन्होंने कहा है कि मैंने ये काम जम्मू-कश्मीर के संविधान में जो व्यवस्था है, उसके तहत किया है।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: November 25, 2018 0:03 IST
Kashmir politics- India TV Hindi
Kashmir politics

बुधवार की रात क़रीब 8 बजे पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती के एक ट्वीट के बाद जम्मू-कश्मीर की राजनीति में भूचाल आ गया था। क़रीब 5 महीने के बाद राज्य में सरकार बनाने को लेकर उन सभी की ख़ामोशी घंटेभर के लिए टूट गई,जिनकी ज़िम्मेदारी थी राज्य में सरकार बनाने की। लेकिन राज्य के वर्तमान मुखिया को अचानक से टूटी ख़ामोशी रास नहीं आई। और वो किया जो उनको राज्य के लिए बेहतर लगा। 

राज्यपाल के द्वारा विधानसभा भंग करने को लेकर उठ रहे सवालों का जवाब, गुरुवार को राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने ख़ुद दिया है। उन्होंने कहा है कि मैंने ये काम जम्मू-कश्मीर के संविधान में जो व्यवस्था है, उसके तहत किया है। जिस दिन मैं यहाँ का राज्यपाल बना, उस दिन से ही मैं चाहता था कि जम्मू-कश्मीर में चुनी हुई सरकार काम करें। 

लेकिन मेरे राज्यपाल बनने से अब तक कोई भी सरकार बनाने के लिए एक बार भी मिलने नहीं आया। 15-20 दिनों से रिपोर्टस आ रही थी कि यहाँ बहुत बड़े पैमाने पर एमएलएस (MLAS) को डराया जा रहा है, धमकी दी जा रही है और अलग-अलग तरीक़े के अंडरहैण्ड काम चल रहे थे। महबूबा जी ने ख़ुद मुझे एक हफ्ता पहले फ़ोन करके कहा कि मेरे एमएलएस को एनआईए की डर से डराया जा रहा है। दूसरे पक्ष के लोगों ने कहा कि बहुत बड़े पैमाने पर रुपये का लालच दिया जा रहा है। मतलब हॉर्स ट्रेडिंग 20 दिन पहले ही शुरु हो चुकी थी। इसलिए मैंने किसी को भी मौक़ा नहीं दिया। अगर किसी भी पक्ष को मौका देता और उसको जो टाइम देता उसमे और बड़े पैमाने पर हॉर्स ट्रेडिंग होती। और यहाँ का पूरा पॉलिटिकल वैल्यू सिस्टम ख़त्म हो जाता। जिस तरीक़े से दूसरे स्टेटस में होता है। इसलिए मैं वो अफ़ोर्ड नहीं कर सकता था।

राज्यपाल के द्वारा उठाए गए कदम की शोर में अबतक कई ऐसे सवाल हैं, जिसका जवाब ना तो कांग्रेस, ना ही पीडीपी और ना ही एनसी ने दिया है। इन पार्टी के बयानवीरों को ये बताना चाहिए था कि-

- तमाम राजनीतिक मतभेदों के बावजूद घंटेभर में ऐसा क्या हो गया कि वो कांग्रेस, जो पीडीपी और बीजेपी की गठबंधन की सरकार थी, तो पीडीपी पर एक भी हमले का मौक़ा नहीं छोड़ती थी। उसके साथ सरकार बनाने को तैयार हो गई? 

- विधानसभा भंग होने के बाद वृहस्पतिवार को नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर स्पष्ट किया कि एनसी का अपने ऐतिहासिक विरोधी पीडीपी के साथ असेम्बली इलेक्शन लड़ने का कोई इरादा नहीं है। अब्दुल्ला ने ये भी कहा हम लोगों ने राज्यपाल को कोई पत्र नहीं भेजा है। राज्यपाल के विधानसभा को भंग करने वाले कदम को चुनौती देने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी पीडीपी की है। अब यहाँ सवाल है कि इन दो ऐतिहासिक विरोधी पार्टियों में क्या रायशुमारी हुई थी, कि सरकार बनाने को तैयार हो गये थे?

- इन तीनों दलों ने संवैधानिक प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई। श्रीनगर से जम्मू की दूरी हवाई जहाज़ से मुश्किल से घंटेभर की भी नहीं है। फिर क्यों नहीं अपने प्रतिनिधि को राज्यपाल के पास भेजा? राज्यपाल को सरकार बनाने की कोई सबूत क्यों नहीं दी? किसी ने कोई एमएलएस की परेड नहीं कराई?

- क्या ये तीनों पार्टियां नहीं जानती है कि सरकार सोशल मीडिया से नहीं बनती है?

- क्या तीनों दलों के नेताओं बीच कोई मीटिंग हुई? महबूबा मुफ्ती के ट्वीटर पर सरकार के गठन की जानकारी देने से पहले, क्या कोई रणनीति बनाई गई थी? यदि ऐसा कुछ भी हुआ तो मीडिया में ख़बरें क्यों नहीं आई?

- जब तीनों दलों को ऐसा लग रहा है कि राज्यपाल ने ग़लत किया है, तो विधानसभा के भंग हुए क़रीब 72 घंटे और राज्यपाल को ये बात 'मैं चाहता हूँ कि वो कोर्ट में जाएँ।उनका अधिकार है। उन्हें कोर्ट जाना चाहिए' कहे हुए क़रीब 48 घंटे से भी ज़्यादा हो गए है। लेकिन अब तक सिर्फ़ बयानबाज़ी के अलावा कोई न्यायालय की तरफ़ रूख़ क्यों नहीं किया?

आदित्य शुभम इंडिया टीवी न्यूज चैनल में कार्यरत हैं और इस ब्लॉग में व्यक्त उनके निजी विचार हैं

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