Thursday, April 25, 2024
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लाल किले पर हमले की कहानी, पर्ची पर लिखे एक नंबर की मदद से मास्टरमाइंड तक पहुंची थी पुलिस

22 दिसंबर, 2000 की रात करीब 9 बजकर 5 मिनट पर दिल्ली के लाल किले में भारतीय सेना की राजपूताना राइफल्स के बेस कैंप पर आतंकियों ने हमला किया था।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: December 22, 2018 10:54 IST
प्रतीकात्मक तस्वीर- India TV Hindi
Image Source : PTI प्रतीकात्मक तस्वीर

तारीख- 22 दिसंबर, 2000, दिन- शुक्रवार, वक्त- रात करीब 9 बजकर 5 मिनट, जगह- दिल्ली का लाल किला, निशाना- भारतीय सेना की राजपूताना राइफल्स का बेस कैंप और निशाना बनाने वाले थे आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के ‘फिदायीन’। लाल किले के परिसर में हर रोज होने वाले ‘लाइट एंड साउंड’ प्रोग्राम के बाद उस दिन हमलावरों ने राजपूताना राइफल्स के बेस कैंप पर हमला कर दिया था। कैंप के अंदर से उठने वाली गोलियों की तड़तड़ाहट भरी आवाजों ने दिल्ली को दहशत में धकेल दिया था। 

हमले में सैनिक सहित 3 लोग मारे गए थे। जिसकी FIR उत्तरी दिल्ली के थाना कोतवाली में लिखी गई थी। पड़ताल में जुटी दिल्ली पुलिस को मौके से कागज की एक पर्ची मिली जिसपर एक मोबाइल नंबर लिखा था। इसके अलावा कई A K 56 राइफलें, जिंदा हथगोले और एक रस्सी भी पुलिस ने बरामद की थी। इन सब चीजों में पुलिस के लिए सबसे ज्यादा कारगर साबित हुई वो पर्ची जिसपर नम्बर लिखा था। 

मोबाइल नंबर की मदद से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस ने पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर डीडीए जनता फ्लैट पर छापा मारा। यहां पुलिस को मिला हमले का मास्टरमाइंड लश्कर-ए-तैयबा का पाकिस्तानी आतंकवादी मो. अशफाक उर्फ मोहम्मद आरिफ। फ्लैट में पुलिस को एक औरत रहमाना युसुफ फारुखी भी मिली, जिसे अशफाक अपनी बीबी बता रहा था। रहमाना युसुफ फारुखी भी उसे अपना शौहर बताती थी।

बताया जाता है कि अशफाक और रहमाना की शादी एक साजिश के तहत ही की गई थी। आतंकियों को भारत में हमले को अंजाम देने के लिए एक अदद औरत की जरूरत महसूस हुई थी, ताकि यहां छिपने का इंतजाम हो सके। इसके लिए अशफाक ने बाकायदा भारतीय लड़की से निकाह के लिए भारत के मशहूर अखबार में शादी का विज्ञापन देकर रहमाना युसुफ के साथ निकाह पढ़वा लिया। हालांकि, इस मामले में रहमाना फारुखी को दिल्ली हाईकोर्ट ने बा-इज्जत बरी कर दिया।

लेकिन, मामले में 31 अक्टूबर, 2005 को मुख्य षड्यंत्रकारी पाकिस्तानी आतंकवादी मोहम्मद अश्फाक को 2 सजा-ए-मौत (फांसी), कुल 51 साल की सजा, 5 लाख 35 हजार 500 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई। जिसके लिए दया याचिका सुप्रीम कोर्ट में डाली गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त, 2011 को अश्फाक की दया याचिका को खारिज कर दी। 

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