Thursday, March 28, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. गैलरी
  3. इनक्रेडिबल इंडिय
  4. कश्मीर: एक शादी जिसने इंसानियत को रखा ज़िंदा

कश्मीर: एक शादी जिसने इंसानियत को रखा ज़िंदा

India TV News Desk India TV News Desk
Updated on: October 20, 2016 11:11 IST
  •  कश्मीर में पिछले कुछ महीने से अशांति का माहौल है लेकिन ऐसे माहौल में भी लोसवानी गांव में लोगों ने जश्न के लिए वक़्त निकाल ही लिया। पुलवामा जिले के इस गांव में इस तीन मंज़िला पुरानी हवेली में हाल ही में एक शादी में हज़ारों की संख्या में मुस्लिम और हिंदू शरीक हुए। ये शादी थी निशा और आशू की जो कश्मीरी पंडित हैं। निशा की रिश्तेदार का कहना है कि उन्होंने किसी को नहीं बुलाया था, वे ख़ुद-ब-ख़ुद आए और दिन भर रुके हालंकि खाया कुछ नही।
    कश्मीर में पिछले कुछ महीने से अशांति का माहौल है लेकिन ऐसे माहौल में भी लोसवानी गांव में लोगों ने जश्न के लिए वक़्त निकाल ही लिया। पुलवामा जिले के इस गांव में इस तीन मंज़िला पुरानी हवेली में हाल ही में एक शादी में हज़ारों की संख्या में मुस्लिम और हिंदू शरीक हुए। ये शादी थी निशा और आशू की जो कश्मीरी पंडित हैं। निशा की रिश्तेदार का कहना है कि उन्होंने किसी को नहीं बुलाया था, वे ख़ुद-ब-ख़ुद आए और दिन भर रुके हालंकि खाया कुछ नही।
  • 
अशोक कुमार रैना की पत्नी का कहना है कि शादी का पूरा इंतज़ाम तनवीर ने किया, वो मेरा बेटा है। तनवीर का इस घर में बरसों से आना जाना है और उसका कहना है कि अपनी बहन की शादी का इंतज़ाम करना उसका फ़र्ज़ था।
    अशोक कुमार रैना की पत्नी का कहना है कि शादी का पूरा इंतज़ाम तनवीर ने किया, वो मेरा बेटा है। तनवीर का इस घर में बरसों से आना जाना है और उसका कहना है कि अपनी बहन की शादी का इंतज़ाम करना उसका फ़र्ज़ था।
  • रैना के मुस्लिम पड़ौसी बिलाल साहिर जो पेशे से टीचर और लेखक हैं, का कहना है: “समाज में नफ़रत फ़ैलाने वाले हमेशा रहे हैं और इसी वजब से कुछ पंडित परिवार गांव छोड़कर चले गए।
    रैना के मुस्लिम पड़ौसी बिलाल साहिर जो पेशे से टीचर और लेखक हैं, का कहना है: “समाज में नफ़रत फ़ैलाने वाले हमेशा रहे हैं और इसी वजब से कुछ पंडित परिवार गांव छोड़कर चले गए।"
  • शादी में मुसलमान महिलाओं की संख्या हिंदू से ज़्यादा थी। लड़कियों ने जहां दुल्हन को सजाया वहीं पुरुषों ने हवेली सजाई। मुसलमान महिलाओं ने इस मौक़े पर गाए जाने वाले पारंपरिक लोक गीत गाए।
    शादी में मुसलमान महिलाओं की संख्या हिंदू से ज़्यादा थी। लड़कियों ने जहां दुल्हन को सजाया वहीं पुरुषों ने हवेली सजाई। मुसलमान महिलाओं ने इस मौक़े पर गाए जाने वाले पारंपरिक लोक गीत गाए।
  • दुल्हन की बहन नेहा के पुलवामा के कॉलेज में कई मुस्लिम दोस्त हैं, लड़िकयां और लड़के, दोनों। नेहा ने बताया कि उनके दोस्तों ने शादी की तैयारी में जी तोड़ मेहनत की। इस मौक़े पर उसकी कुछ मुस्लिम सहेलियों ने साड़ी पहनी जो अमूमन पंडित महिलाएं पहनती हैं।
    दुल्हन की बहन नेहा के पुलवामा के कॉलेज में कई मुस्लिम दोस्त हैं, लड़िकयां और लड़के, दोनों। नेहा ने बताया कि उनके दोस्तों ने शादी की तैयारी में जी तोड़ मेहनत की। इस मौक़े पर उसकी कुछ मुस्लिम सहेलियों ने साड़ी पहनी जो अमूमन पंडित महिलाएं पहनती हैं।
  • नेहा की मां ने 90 में ख़ुद की शादी को याद करते हुए बताया, “पंडित परिवार ट्रक में सामान लादकर भाग रहे थे और मेरी शादी हो रही थी लेकिन इसके बावजूद काफी लोग मेंरी शादी में आए। उन्होंने बताया कि निशा की शादी में लोगों ने न सिर्फ मदद की बल्कि रुपय-पैसे की भी पेशकश की। उनका कहना था कि जितनी वह उनकी बेटी है उतनी उनकी भी है। कुछ ने तो दो लाख रुपय तक देने की पेशकश की।
    नेहा की मां ने 90 में ख़ुद की शादी को याद करते हुए बताया, “पंडित परिवार ट्रक में सामान लादकर भाग रहे थे और मेरी शादी हो रही थी लेकिन इसके बावजूद काफी लोग मेंरी शादी में आए। उन्होंने बताया कि निशा की शादी में लोगों ने न सिर्फ मदद की बल्कि रुपय-पैसे की भी पेशकश की। उनका कहना था कि जितनी वह उनकी बेटी है उतनी उनकी भी है। कुछ ने तो दो लाख रुपय तक देने की पेशकश की।
  • अब हम आपको ले चलते हैं लोसवानी से कुछ ही दूर तहाब गाव जहां से बारात शादी के लिए रवाना होने को तैयार है। बारातियों में आधे मुसलमान हैं। बारात दोपहर तक लोसवानी गाव पहुंची। नेहा ने सबसे पहले बारातियों का स्वागत किया। पुरुषों ने माला पहनाकर दूल्हे का स्वागत किया। पंडित महिलाओं ने जहां आरती उतारी वहीं मुस्लिम महिलाओं ने पारंपरिक लोग गीत गाए।
    अब हम आपको ले चलते हैं लोसवानी से कुछ ही दूर तहाब गाव जहां से बारात शादी के लिए रवाना होने को तैयार है। बारातियों में आधे मुसलमान हैं। बारात दोपहर तक लोसवानी गाव पहुंची। नेहा ने सबसे पहले बारातियों का स्वागत किया। पुरुषों ने माला पहनाकर दूल्हे का स्वागत किया। पंडित महिलाओं ने जहां आरती उतारी वहीं मुस्लिम महिलाओं ने पारंपरिक लोग गीत गाए।
  • आशू की बारात में उनके पड़ौसी इरफ़ान भी आए। आशू के चाचा माखन लाल का कहना है कि इरफ़ान मेरे बच्चों से ज़्यादा उनके करीब है। मुस्लिम पड़ौसियों से हमारा रिश्ता भाईयों की तरह है। गांव में 40 मुस्लिम और छह पंडित परिवार रहते हैं। “इन दिनों एक या दो कार में बाराती जाते हैं लेकिन आशू की हिफ़ाज़त के लिए उसकी बारात में 9 कारें थी।”
    आशू की बारात में उनके पड़ौसी इरफ़ान भी आए। आशू के चाचा माखन लाल का कहना है कि इरफ़ान मेरे बच्चों से ज़्यादा उनके करीब है। मुस्लिम पड़ौसियों से हमारा रिश्ता भाईयों की तरह है। गांव में 40 मुस्लिम और छह पंडित परिवार रहते हैं। “इन दिनों एक या दो कार में बाराती जाते हैं लेकिन आशू की हिफ़ाज़त के लिए उसकी बारात में 9 कारें थी।”
  • पिछले तीन महीने से घाटी में चल रही अशांति को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई लेकिन इस शादी की तरह कई ऐसी घटनाएं भी होती रही हैं जिससे सांप्रदायिक सौहार्द की भावना और मज़बूत हुई हैं। शादी या आपदा के समय हिंदू-मुसलमान एकजुट हो जाते हैं। हाल ही में 13 जुलाई को कश्मीर के बीजबहाड़ा शहर में एक सड़क दुर्घटना में अमरनाथ यात्री घायल हो गए थे। मुसलमानों ने कर्फ़्यू तोड़कर उनकी मदद की। इसी तरह 16 जुलाई को श्रीनगर के महाराजगंज में मुसलमानों ने एक हिंदू महिला के अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया।

मूल अंग्रेज़ी लेखक-विजदान मोहम्मद, फ़ोटोग्राफ़र- विकार सईद
    पिछले तीन महीने से घाटी में चल रही अशांति को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई लेकिन इस शादी की तरह कई ऐसी घटनाएं भी होती रही हैं जिससे सांप्रदायिक सौहार्द की भावना और मज़बूत हुई हैं। शादी या आपदा के समय हिंदू-मुसलमान एकजुट हो जाते हैं। हाल ही में 13 जुलाई को कश्मीर के बीजबहाड़ा शहर में एक सड़क दुर्घटना में अमरनाथ यात्री घायल हो गए थे। मुसलमानों ने कर्फ़्यू तोड़कर उनकी मदद की। इसी तरह 16 जुलाई को श्रीनगर के महाराजगंज में मुसलमानों ने एक हिंदू महिला के अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया। मूल अंग्रेज़ी लेखक-विजदान मोहम्मद, फ़ोटोग्राफ़र- विकार सईद
  • 90 के दशक में बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित घाटी से पलायन कर गए थे लेकिन रैना परिवार नहीं गया। पास के गांव से शादी में आईं 70 साल की चूनी देवी का कहना है कि कश्मीर छोड़ने का मेरा दिल ही नहीं किया। हमारे मुसलमान भाईयों से बहुत अच्छे रिश्ते हैं। उनका कहना है कि 90 के दशक में जब संग्रामपोड़ा और चित्तीसिंहपोड़ा में सात पंडितों और 36 सिखों की हत्या हुई तो वह डर हईं थी। “हम एक बार ही मरते हैं और मैं अपने घर में ही मरना चाहती थी। आज भी मेरे गांव में पंडित और मुसलमान एक ही गर में रहते हैं।”
    90 के दशक में बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित घाटी से पलायन कर गए थे लेकिन रैना परिवार नहीं गया। पास के गांव से शादी में आईं 70 साल की चूनी देवी का कहना है कि कश्मीर छोड़ने का मेरा दिल ही नहीं किया। हमारे मुसलमान भाईयों से बहुत अच्छे रिश्ते हैं। उनका कहना है कि 90 के दशक में जब संग्रामपोड़ा और चित्तीसिंहपोड़ा में सात पंडितों और 36 सिखों की हत्या हुई तो वह डर हईं थी। “हम एक बार ही मरते हैं और मैं अपने घर में ही मरना चाहती थी। आज भी मेरे गांव में पंडित और मुसलमान एक ही गर में रहते हैं।”