Wednesday, April 17, 2024
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Prassthanam Movie Review: कमजोर निर्देशन में भी संजय दत्त और अली फजल की दमदार एक्टिंग

Prassthanam Movie Review: संजय दत्त के प्रोडक्शन तले बनी 'प्रस्थानम' एक राजनीतिक फिल्म है। जो साल 2010 में रिलीज हुई तेलुगू भाषा का हिंदी वर्जन है। जिसमें राजनीतिक फैमिली के इर्द-गिर्द घूमती हुई कहानी है।

Shivani Singh Shivani Singh
Updated on: September 20, 2019 14:44 IST
Prassthanam Movie Review

Prassthanam Movie Review

  • फिल्म रिव्यू: प्रस्थानम
  • स्टार रेटिंग: 2.5 / 5
  • पर्दे पर: 20 सितंबर 2019
  • डायरेक्टर: देव कट्ट
  • शैली: Drama-Action

Prassthanam Movie Review: कहते हैं कि राजनीति एक ऐसा कीड़ा है जो किसी पर चढ़ जाए तो उसको राजगद्दी तक पहुंचा देगा या फिर हर चीज तहस-नहस कर देगा। ऐसे ही एक राजनीतिक परिवार के द्वंद को दिखाने की कोशिश करती है संजय दत्त और मान्यता दत्त के बैनर तले बनी 'प्रस्थानम' जो आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है।

राजनीति बनाम महाभारत के दांव पेंच को पारिवारिक जामे में फिट करके प्रस्थानम की कहानी बनाई गई है। सत्ता का लालच कैसे खून के रिश्तों पर भारी पड़ता है, कॉन्सेप्ट पुराना लगता है लेकिन इस विषय पर बनी अधिकतर फिल्में अच्छी रही हैं और संजय दत्त की इस फिल्म में भी राजनीति की विवशता साफ दिखती है, ये एप्रोच दर्शकों तक सफलतापूर्वक पहुंच सकती थी लेकिन लंबी चौड़ी स्टाकास्ट और उलझी हुई स्क्रिप्ट दर्शकों को कई बार उलझाती है।

मान्यता दत्त के प्रोडक्शन और देव कट्टा के निर्देशन में बनी प्रस्थानम में कट्टा पहले हॉफ में  कमजोर रहे क्योंकि पहला हाफ यही समझने में निकल जाता है कि कौन किसका किरदार निभा रहा है। संजय दत्त लीड रोल में हैं और वो ही कहानी के मुख्य केंद्र हैं। संजय दत्त, अली फजल और मनीषा कोईराला अपने किरदार के साथ न्याय करते दिखे हैं और कई अन्य कलाकार इसी फोकस के चलते कमजोर पड़ गए लगते हैं। अगर आप भी इस वीकेंड 'प्रस्थानम' देखने की सोच रहे हैं तो पहले ही जान लें इस फिल्म का रिव्यू।  

कहानी

कहानी कुछ यूं है कि उत्तर प्रदेश के बल्लीपुर नामक एक छोटे गांव से शुरू होकर लखनऊ एमएलए बलदेव प्रताप सिंह (संजय दत्त)  उनके 2 बेटों और पूरे परिवार का साम्राज्य चलता है। आयुष (अली फजल) सौतेला बड़ा बेटा है जो हर काम बड़ा ही सोच-समझ करता है। जिसके कारण बलदेव को नाज है। वहीं दूसरी ओर छोटा बेटा विवान (सत्यजीत दुबे) जो गर्म दिमाग का है और बिना सोचे-समझे ही हर काम करता है। जिसका हर्जाना पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है। लेकिन इस कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब बलदेव अपने बड़े बेटे आयुष को पार्टी का युवा नेता बना देता है और छोटे बेटे विवान को बिजनेस संभालने के लिए कहता है। फिर शुरू होता है सत्ता हड़पने और बचाने का खेल जिसमें पूरा परिवार फंस जाता है। सामान्य तौर पर देखें तो महाभारत की तरह इसमें सत्ता की लालसा, दांव पेंच, खून के रिश्ते और चालाकी का हर मसाला है लेकिन स्क्रिप्ट पर कमजोर पकड़ के चलते किरदार परिवार की बजाय बिखरे नजर आते हैं।

अभिनय

एक्टिंग की बात करें तो संजय दत्त ने वाकई उम्दा अभिनय किया है। जबसे उन्होंने उम्रदराज रोल करने शुरू किए हैं, उनकी एक्टिंग निखर कर आई है क्योंकि ये किरदार चार्म और ग्लेमर की ताकीद नहीं करते। एक ऐसा सफल लीडर कैसे असफल पिता बनता है, रिश्तों की ब्लेकमेलिंग कैसे मजबूत आदमी को अंदर से तोड़ती है। संजय ने इसे दिखाया है। दूसरे नंबर पर अली फजल की अदाकारी है। वो युधिष्ठिर की तरह दिखे हैं और उन्होने इसी तरह किरदार को जिया भी है। 

विवान बने सत्यजीत दुबे ने मिले किरदार को जी जान से निभाया है और उनकी शुरुआती फिल्मों की बात करें तो वो इतने बड़े बड़े स्टारों के बीच सही तरह से सर्वाइव कर पाएं है, यह अच्छी बात है। मनीषा कोईराला ने एक मजबूर मां का किरदार निभाया है। उनके हिस्से डायलॉग्स कम आए हैं लेकिन उनका मौन बहत कुछ बोल गया है। चंकी पांडे(Chunky Pandey) विलेन के रोल में टाइप्ड लग रहे हैं। हाल ही में रिलीज हुई साहो में भी उनका किरदार कुछ ऐसा ही था। उन्हें ऐसे रोल चुनने से बचना चाहिए और कुछ करेक्टर रोल पर ध्यान देना चाहिए। 

संगीत
चूंकि फिल्म राजनीतिक पृष्ठभूमि पर रही तो फिल्म के म्यूजिक पर ज्यादा काम नहीं किया गया और इसलिए म्यूजिक ज्यादा प्रभावित नहीं रहा। फिल्म में ऐसे कई जगहों पर जबरन गाने डाल दिए गए है, जहां पर बिल्कुल भी जरुरत नहीं थी। निर्देशन का हाल देखिए कि बेहतरीन फाइट और टेंशन के सीन के बीच में स्लो गाना मजा किरकिरा करने के लिए काफी था। हालांकि बैकग्राउंड साउंड ठीकठाक था।

डायरेक्शन
प्रस्थानम फिल्म का डायरेक्शन देव कट्टा ने किया है। यह फिल्म साल 2010 में रिलीज हुई तमिल फिल्म प्रस्थानम् का हिंदी वर्जन है। इस फिल्म में अली फजल के किरदार को सबसे सही ढंग से पेश किया गया है। 9 साल पुरानी तमिल फिल्म को एक नए वर्जन के साथ पेश करना काबिले तारीफ है। यह फिल्म कई परतों में सामने आती है। जरा सा ध्यान हटा तो आपके लिए थोड़ा परेशान करने वाला हो सकता है।
 
फिल्म में सबसे अच्छी चीज
इस फिल्म में सबसे अच्छी बात है असल में जो राजनीति की नीति है उसे दिखाया गया है। जो सच है उसे दिखाने में काफी हद तक देव कट्टा दिखाने में सफल हो गए है।

फिल्म की कमजोर कड़ी
कुछ जगहों पर फिल्म काफी काल्पनिक नजर आईं। जैसे फिल्म में आयुष(अली फजल) और अमायरा दस्तूर(Amyra Dastur) की लव स्टोरी बेकार में जोड़ी गई। इसके साथ ही इस फिल्म में मनीषा कोईराला(Manisha Koirala) का किरदार काफी दमदार था लेकिन उस पर काम नहीं किया गया। जैकी श्रॉफ जैसे मंझे हुए एक्टर को भी कट्टा सही तरह से उपयोग नहीं कर पाए। 

देखे या नहीं
अगर आप संजय दत्त के फैन है या फिर आपको राजनीति से संबंधी फिल्में वाकई पसंद है तो आप इस फिल्म को देख सकते है।

इंडिया टीवी इस फिल्म को शानदार एक्टिंग, कहानी के कारण 5 में से 2.5 स्टार देती है।  

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