Friday, March 29, 2024
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ट्यूबलाइट

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राजेश यादव राजेश यादव
Updated on: August 11, 2017 19:31 IST
Movie Review Tubelight
Movie Review Tubelight
  • फिल्म रिव्यू: ट्यूबलाइट
  • स्टार रेटिंग: 3.5 / 5
  • पर्दे पर: Jun 23, 2017
  • डायरेक्टर: कबीर खान
  • शैली: वॉर ड्रामा

कबीर खान के निर्देशन और सलमान खान के अभिनय से सजी फिल्‍म ‘ट्यूबलाइट’ जबरदस्‍त इमोशनल कनेक्‍शन के साथ दर्शकों के सामने आई है। फिल्‍म निर्देशक कबीर खान ने सलमान खान को इमोशनल अवतार के रूप में पेश किया है। जिस सलमान खान को दर्शक एक्‍शन स्‍टार के रूप में देखना पसंद करते हों और बॉक्‍स ऑफिस पर उनका एक्‍शन सफलता की गारंटी माना जाता हो उस सलमान खान को पूरी फिल्‍म भावनात्‍मक आवेग में बहते हुए और कई सीन में बच्‍चे की तरह रोते हुए देखकर दर्शक कितना कनेक्‍ट हो पाएंगे यह तो आने वाला समय ही बताएगा। कबीर खान ने इस फिल्‍म का निर्माण ‘लिटिल बॉय’ से प्रेरित होकर किया और 1962 में हुए भारत -चाइना वॉर के बैकग्राउंड की कहानी कहती इस फिल्‍म में गांधी दर्शन की भी अलग छाप पड़ी है। फिल्‍म में ब्रदरहुड के साथ ही दोस्‍ती का कनेक्‍शन भी बेहतर अंदाज में दिखाया गया है। इन सब बातों के बावजूद पटकथा में वॉर सीन कमजोर हैं, भरत के रोल को और दमदार किया जाता तो बात कुछ और होती।

फिल्‍म की कहानी  लक्ष्‍मण सिंह बिष्‍ट (सलमान खान) और भरत सिंह बिष्‍ट (सोहेल खान) दो भाईयों के बीच के बेहतरीन ब्रदरहुड इमोशनल कनेक्‍शन को दिखाती है। साथ ही भारत-चीन वॉर का बैकग्रांउड भी कहानी में मोड़ लाता है। कबीर खान की इस फिल्‍म में गांधी दर्शन का बेहतरीन प्रयोग किया गया है जो कहता है कि अगर आपको किसी बात का पक्‍का यकीन है तो उसे आप पूरा कर सकते हैं, और लक्ष्‍मण सिंह बिष्‍ट (सलमान खान) के मन में यही बात पहले भाई, बाद में मास्‍टर जी (ओम पुरी) बैठाने में कामयाब होते हैं। और जब जंग से लक्ष्‍मण सिंह का भाई वापस नहीं आता तो वह गांधी के रास्‍ते पर चलकर अपने भाई लक्ष्‍मण को वापस आने का यकीन करता है जिस बात पर जगतपुर के गांव के लोगों को भरोसा नहीं होता। अब जंग में गए भरत को लक्ष्‍मण सिंह वापस ला पाता है या नहीं यह देखने के लिए आप इस फिल्‍म को देख सकते हैं।

सिनेमा इमोशन का गोता लगाने का बेहतरीन जरिया है और फिल्‍म निर्देशक कबीर खान ने फिल्‍म ‘ट़यूबलाइट’ में सलमान के लक्ष्‍मण सिंह बिष्‍ट का किरदार को कुछ इसी अंदाज में बुना है। कबीर उन निर्देशकों में से एक है जो सिनेमाई आजादी का फायदा उठाना पसंद करते हैं। फिल्‍म ‘ट़यूबलाइट’ में भरत के किरदार के लिए जो क्‍लाइमेक्‍स चुना है वह इसी तरह की सिनेमाई आजादी है, बेशक यह तार्किक ना लगे लेकिन कबीर खान ऐसा करने का साहस करते रहे हैं। जरा याद करें ‘बजरंगी –भाईजान’ के मुन्‍नी के किरदार को पूरी फिल्‍म में जो किरदार गूंगी लड़की के किरदार में रहा सिनेमा के अंत कबीर खान ने उसकी आवाज सुनने के लिए दर्शको को बेकरार कर दिया था और जब वह बजरंगी - भाईजान को ‘मामा’ बोलती है तो सिनेमा देख रहा दर्शक भावनात्‍मक आवेग के शिखर पर होता है।

कलाकारों का अभिनय:

जहां तक अभिनय की बात है तो सलमान ने लक्ष्‍मण सिंह बिष्‍ट के किरदार को बहुत ही बेहतरीन अंदाज में जिया है। एक्‍शन स्‍टार सलमान नहीं बल्कि भावनाओं के ज्‍वारभाटा से सरोबार कलाकार सलमान आपको पसंद आएगा। ओम पुरी ने अपनी अंतिम फिल्‍म में भी अपनी छवि के अनुरूप बेहतरीन अभिनय किया है। बाल कलाकार मेटिन ने उम्‍दा काम किया है। चीनी एक्‍ट्रेज जू जू भी अपने रोल में ठीक-ठाक नजर आई हैं।

बेशक पटकथा और संपादन कई जगह कमजोर नजर आता है लेकिन कलाकारों से जिस तरह से फिल्‍म निर्देशक कबीर खान ने काम लिया है वह उनकी निर्देशन क्षमता को बताता है कि वह कितने उम्‍दा फिल्‍म निर्देशक है। उन्‍होंने सलमान खान की छवि से परे जाकर लक्ष्मण सिंह बिष्ट के किरदार को लिखा है।

फिल्‍म का संगीत:
फिल्‍म में प्रीतम का संगीत उम्‍दा हैं और गीतों के बोल को मुख्‍य किरदार सलमान खान की फिल्‍म में छवि के अनुरूप रचा गया है। ‘नाच मेरी जान’ दर्शकों के बीच पहले ही लोकप्रिय हो गया है।

कबीर खान का निर्देशन:
‘एक था टाइगर’, ‘बजरंगी - भाईजान’ के बाद निर्देशक कबीर खान ने सलमान खान को लेकर यह तीसरी फिल्‍म बनाई हैं। गजब का संजोग यह है कि अपने बचपन में कबीर खान ने फिल्‍म गांधी की शूटिंग और  बाद में फिल्‍म देखने के बाद सिनेमा की दुनिया से प्रभावित हुए थे और फिल्‍मकार बनने का अंकुर उनके मन में फूट गया था और आज तीन दशक बाद कबीर खान अपने सफलता के शिखर के दिनों में ‘ट़यूबलाइट’ जैसी फिल्‍म लेकर आते हैं जिसमें गांधी दर्शन और उनके विचारों के प्रभाव को फिल्‍म के मुख्‍य किरदार की जिंदगी में ना केवल शामिल करते हैं बल्कि संदेश देने का प्रयास करते हैं कि अगर आप सच के साथ हैं, और अपने आप पर भरोसा करते हैं तो आपका यकीन जीत जाएगा। दरअसल यह जितनी सलमान की फिल्‍म है उतनी ही निर्देशक कबीर खान की। फिल्‍म के शुरुआती 20 मिनट बेहद प्रभावशाली है लेकिन यह भी उतना सच है कि कई जगह पटकथा और फिल्‍म का संपादन कमजोर होता है जो फिल्‍म को कमजोर साबित करता है। लक्ष्‍मण के किरदार को बेहतरीन बनाया गया लेकिन जंग लड़ने गया भरत के किरदार के हिस्‍से कुछ बेहतरीन वॉर सीन आते तो बात कुछ और होती।

क्‍यों देखें: इस फिल्‍म को आप सलमान खान के अभिनय के लिए देख सकते हैं। लेकिन अगर आप सलमान खान के दबंग और सुल्‍तान वाले अवतार की खोज कर रहे हैं तो आपको फिल्‍म निराश कर सकती है। फिल्‍म में रोमांस का तड़का नहीं के बराबर है इसलिए अगर आप बॉलीवुड स्‍टाइल का रोमांटिक गीत संगीत और कहानी की खोज में जाएंगे तो यह फिल्‍म आपके लिए नहीं है। आप सलमान खान के फैन हैं तो यह फिल्‍म एक बार आपको इसलिए देखनी चाहिए क्‍योंकि सलमान ने इस फिल्‍म में एक ऐसे किरदार को जिया है जो अपनी उम्र से तो बड़ा हो गया है लेकिन दिल और दिमाग से एक छोटे बच्‍चे की तरह व्‍यवहार करता है।

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