Thursday, April 25, 2024
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दिल धड़कने दो

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Published on: June 05, 2015 3:30 IST
Dil Dhadakne Do
Dil Dhadakne Do
  • फिल्म रिव्यू: Dil Dhadakne Do
  • स्टार रेटिंग: 2 / 5
  • पर्दे पर: 5 JUNE, 2015
  • डायरेक्टर: ज़ोया अख़्तर
  • शैली: ड्रामा

क्या है कहानी- कमल मेहरा (अनिल कपूर) और नीलम (शेफाली) अपनी शादी की 30वीं सालगिराह को मनाने के लिए अपने बेटे कबीर (रणवीर सिंह) और बेटी आएशा (प्रियंका चोपड़ा) के साथ एक आलीशान जहाज़ पर दावत का आयोजन करते है।

अपने बिजनेस को फायदा पहुंचाने के लिए कमल अपने बेटे की शादी अपने दोस्त की बेटी से करवाना चाहता है लेकिन कबीर को प्यार है फराह (अनुष्का शर्मा) से। वही आएशा अपनी शादीशुदा जिंदगी से नाखुश है और इस कहानी में मोड़ तब आता है जब एंट्री मारता है सनी (फरहान अख्तर), आएशा का पहला प्यार।

तो क्या मानव से अलग हो जाएगी आएशा? और क्या कबीर अपने पिता की मनचाही लड़की से शादी के लिए तैयार हो जाएगा? जानने के लिए देखिए दिल धड़कने दो।

समीक्षा-

दिल धड़कने दो को देखकर जब आप सिनेमाघर से बाहर निकलेंगे तो आपको विश्वास नहीं होगी कि ये उसी ज़ोया अख्तर की फिल्म है जिसने पहले 'लक बाए चांस' और 'जिंदगी न मिलेगी दोबारा' जैसी फिल्में दी थी।

आखिरी फिल्म 'जिंदगी न मिलेगी दोबारा' के ज़रिए ज़ोया हमें एक ट्रिप पर ले गई थीं जिसकी यादें धीरे-धीरे हमारे दिलों में उतर कर घर कर गई थी।

ये जरुर था कि वो फिल्म कुछ खास दर्शकों तक ही सीमीत थी लेकिन जल्द ही उसने हर किसी को अपना दीवाना बना लिया था। लेकिन अफसोस कि 'दिल धड़कने दो' में वो बात नहीं है।

फिल्म में वरिष्ठ मेहरा फैमली की अस्त-व्यसत जिंदगी को दर्शाया गया है जो बाहर से तो फीकी मुस्कुराहट लेकर घूमता है लेकिन अंदर से एक दूसरे की खुशियों को कुचलता है। ये लोग पढ़े-लिखे तो हैं लेकिन 'लोग क्या कहेंगे' वाली भावना से भी अछूते नहीं है।

ज़ोया ऐसे परिवार की कहानी को दर्शाने की कोशिश करती हैं लेकिन एक इस कोशिश में वो नाकामयाब दिखती है।

फिल्म की पटकथा काफी कमजोर है जो तीन घंटो तक आपको जबरन घसींटती है और सिर्फ बोर करती है।

काफी कुछ नाटकीए लगता है लेकिन कुछ ऐसे द्रश्य भी हैं जिनमें आप भावुक हो जाते है इनमे शामिल है कबीर और आएशा के भाई-बहन के द्रश्य।

अगर मनमोहक लोकेशन्स की उम्मीद आप कर रहे है तो यहां पर भी निराशा ही आपके हाथ लगेगी। रिश्तों की कड़वाहटों में लोकेशन्स की खूबसूरती कहीं गुम सी हो जाती है और सिर्फ कलाकारों के मुंह से ही हम ग्रीस, इंस्तांबुल जैसी जगहों की तारीफे सुन पाते है।

ताज्जुब की बात है कि ये फिल्म एक यात्रा पर आपको ले जाती है लेकिन कम ही मौके है जहां आप इन जगहों की खूबसूरती को देख पाए।

वहीं कलाकारों की बात करें तो अनील कपूर और शेफाली शाह एक पति-पत्नी के किरदार में अच्छा अभिनय करते है। लड़ाई-झगड़ें और प्यार करने का इनका अंदाज़ निराला है।

प्रियंका चोपड़ा एक इंडिपेन्डेंट वुमन के किरदार में अच्छा प्रदर्शन करती है। रणवीर सिंह कुछ द्रश्यों में स्फूर्ति डालते है और हमें हंसाते है।

अनुष्का शर्मा की एक्टिंग ठीक है लेकिन रणवीर के साथ उनकी प्यार की कहानी फिल्म में ठीक नहीं बैठती।

फरहान अख्तर को फिल्म में इंटर्वल के बाद लाया जाता है। उनको देखकर लगता है कि वो बहन ज़ोया अख्तर के प्यार में बोल्ड हो गए है और सिर्फ इसीलिए फिल्म में एंट्री लेते है।

एक बड़ी खामी इसके संगीत में भी है जो तीन घंटे की फिल्म में एक भी ऐसा गाना नहीं दे पाती जो आप याद रखें।

अंत में मैं यही बताना चाहूंगा कि ये फिल्म आपको निराश करेगी। ज़ोया की पिछली फिल्मों की तरह आपको इसमें दिल को छू जाने वाले द्रश्य ढूढनें पर भी नहीं मिलेंगे।

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