Saturday, April 20, 2024
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कांग्रेस के ‘महाराजा’ ज्योतिरादित्य सिंधिया का BJP से है गहरा रिश्ता, दादी ने दी थी इंदिरा गांधी को चुनौती

ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया मध्य प्रदेश में कांग्रेस को दोबारा खड़े करने वाले शख्स में से एक है। लेकिन, आपको बता दें कि उनके परिवार का BJP से काफी पुराना नाता रहा है।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: December 12, 2018 15:24 IST
ज्योतिरादित्य...- India TV Hindi
Image Source : PTI ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सबसे बड़े नामों में से एक हैं ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया। लेकिन, यकीन मानिए सिर्फ यही उनकी न कभी पहचान थी और न ही कभी शायद होगी। कांग्रेस के रसूखदार लीडर होने से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश में ग्वालियर के ‘महाराज’ हैं। उनके पूर्वज वहां राज करते आए थे। हालांकि, बाद में भारत से राजशाही का अंत हो गया लेकिन उनके परिवार का आज भी रसूख राजाओं वाला ही है। वहां की जनता अभी भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को महाराजा के रूप में ही मानती है।

ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया मध्य प्रदेश में कांग्रेस को दोबारा खड़े करने वाले लोगों में से एक हैं। लेकिन, आपको बता दें कि उनके परिवार का BJP से काफी पुराना नाता रहा है। ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया उनकी दादी है। विजयाराजे सिंधिया ऐसी रानी थी जिन्हें 'किंगमेकर' माना जाता था। आजादी के बाद राजशाही खत्म होने पर भी जनता ने उन्हें वहीं प्यार दिया जो राजशाही में दिया करते थे।

राजमाता विजयाराजे सिंधिया बीजेपी के संस्थापकों में से एक थीं। वो 1957 से 1991 तक आठ बार ग्वालियर और गुना से सांसद रहीं। लेकिन, BJP से पहले वो भी कांग्रेस में ही थी। तब महारानी ने गुना सीट से 1957 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और हिंदू महासभा के देश पांडेय को 60,000 वोटों से हरा दिया।

लेकिन, धीरे-धीरे उनके और इंदिरा गांधी के बीच टकराव वाली स्थिति पैदा हो गई। तब महारानी दूसरी वार चुनाव जीती थीं और मुख्यमंत्री बनाए गए थे डीपी मिश्रा। डीपी मिश्रा इंदिरा गांधी के करीबी थे, और कहा जाता है कि उन्हीं की वजह से महारानी ने कांग्रेस छोड़ी थी। यहीं से उनके जनसंघ में मिलने का सफर शुरू हुआ। ये वही जनसंघ था जो आगे चलकर BJP में बदल गया।

कांग्रेस छोड़ने के अगले साल उन्होंने जनसंघ की ओर से करैरा में और स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर गुना में चुनाव लड़ा। दोनों चुनाव जीतीं लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार बनी और वो बन गई नेता प्रतिपक्ष। जिसके बाद कांग्रेस के फूट पड़ी और रीवा रियासत के गोविंद नारायण सिंह ने 35 विधायकों के साथ जनसंघ में आने का प्रस्ताव महारानी के सामने रखा। अब तक वो किंगमेकर हो चुकी हैं। जिसके बाद जनसंघ की सरकार बनी और वो बन गईं सदन की नेता। यही इंदिरा गांधी के लिए सीधी चुनौती थी।

इसका खामियाजा राजमाता को इमरजेंसी के दौरान चुकाना पड़ा। उनकी गिरफ्तारी हुई और उन्हें पीटा भी गया। जिसके बाद से उनकी तबीयत खराब रहने लगी थी। अब मध्य प्रदेश की राजनीति में भले ही सिंधिया राजघराने की ताकत ज्योतिरादित्य के जरिए एक बार फिर कांग्रेस के पाले में हो लेकिन जीवाजी राव सिंधिया, राजमाता विजयाराजे, यशोधरा राजे और राजस्थान में वसुंधरा राजे BJP के खेमे में हैं।

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