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ई-कचरा पैदा करने वाले दुनिया के टॉप-5 देशों में है भारत का नाम

सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान और स्मार्ट शहर परियोजना पर जोर दिए जाने के बावजूद भारत ई-कचरा पैदा करने वाले शीर्ष 5 देशों में बना हुआ है...

India among the top five countries in e-waste generation, says report | Pixabay- India TV Hindi India among the top five countries in e-waste generation, says report | Pixabay

नई दिल्ली: सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान और स्मार्ट शहर परियोजना पर जोर दिए जाने के बावजूद भारत ई-कचरा पैदा करने वाले शीर्ष 5 देशों में बना हुआ है। एसोचैम-नेक द्वारा हाल में कराए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। सोमवार को जारी इस अध्ययन के अनुसार, ई-कचरा पैदा करने वाले देशों की सूची में चीन, अमेरिका, जापान और जर्मनी जैसे देश शीर्ष स्थान पर बने हुए हैं। यह अध्ययन पर्यावरण दिवस 5 जून के मौके पर जारी किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में महाराष्ट्र सबसे ज्यादा ई-कचरा पैदा करता है।

अध्ययन में कहा गया है, ‘भारत में महाराष्ट्र ई-कचरा में सर्वाधिक 19.8 फीसदी का योगदान करता है और मात्र 47,810 टन सालाना रिसाइकिल करता है, जबकि तमिलनाडु 13 फीसदी का योगदान करता है और 52,427 टन रिसाइकिल करता है। उत्तर प्रदेश 10.1 फीसदी का योगदान और 86,130 टन कचरा रिसाइकिल करता है। इसके बाद पश्चिम बंगाल (9.8 प्रतिशत), दिल्ली (9.5 प्रतिशत), कर्नाटक (8.9 प्रतिशत), गुजरात (8.8 प्रतिशत) और मध्य प्रदेश (7.6 प्रतिशत) ई-कचरे में अपना योगदान देते हैं।’ भारत में करीब 20 लाख टन सालाना ई-कचरा पैदा होता है और कुल 4,38,050 टन कचरा सालाना रिसाइकिल किया जाता है।

ई-कचरे में आम तौर पर हटाए गए कंप्यूटर मॉनीटर, मदरबोर्ड, कैथोड रे ट्यूब, PCB, मोबाइल फोन व चार्जर, कॉम्पैक्ट डिस्क, हेडफोन के साथ लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले (LCD)/प्लाज्मा टीवी, एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर शामिल हैं। अध्ययन में कहा गया है, ‘असुरक्षित ई-कचरे की रीसाइकिलिंग के दौरान उत्सर्जित रसायनों/प्रदूषकों के संपर्क में आने से तंत्रिका तंत्र, रक्त प्रणाली, गुर्दे व मस्तिष्क विकार, श्वसन संबंधी विकार, त्वचा विकार, गले में सूजन, फेफड़ों का कैंसर, दिल, यकृत को नुकसान पहुंचता है।’ 

एसोचैम-नेक द्वारा भारत में इलेक्ट्रिकल्स एंड इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्च रिंग पर किए गए संयुक्त अध्ययन के मुताबिक, ई-कचरे की वैश्विक मात्रा 20 प्रतिशत की संयुक्त वृद्धि दर से 2016 में 4.47 करोड़ टन से 2021 तक 5.52 करोड़ टन तक पहुंचने की संभावना है।