Hindi News पैसा बिज़नेस मनरेगा से भारत के मैन्‍यूफैक्‍चरिंग सेक्‍टर को हो रहा है नुकसान, स्किल्‍ड वर्कर्स छोड़ रहे हैं काम

मनरेगा से भारत के मैन्‍यूफैक्‍चरिंग सेक्‍टर को हो रहा है नुकसान, स्किल्‍ड वर्कर्स छोड़ रहे हैं काम

मेगा जॉब-गारंटी प्रोग्राम महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) का एक अप्रत्‍याशित और हानिकारक प्रभाव हो सकता है।

Unintended: मनरेगा से भारत के मैन्‍यूफैक्‍चरिंग सेक्‍टर को हो रहा है नुकसान, स्किल्‍ड वर्कर्स छोड़ रहे हैं काम- India TV Paisa Unintended: मनरेगा से भारत के मैन्‍यूफैक्‍चरिंग सेक्‍टर को हो रहा है नुकसान, स्किल्‍ड वर्कर्स छोड़ रहे हैं काम

नई दिल्‍ली। बड़े पैमाने पर ग्रामीण बेरोजगारी संकट को दूर करने के उद्देश्‍य के साथ शुरू किया गया मेगा जॉब-गारंटी प्रोग्राम महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) का एक अप्रत्‍याशित और हानिकारक प्रभाव हो सकता है। यह प्रोग्राम संगठित सेक्‍टर से स्किल्‍ड वर्कर्स को अपनी नौकरी छोड़कर वापस गांव जाने के लिए प्रेरित कर सकता है।

हाल ही में जारी एक रिसर्च पेपर के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में रोजगार मुहैया कराने के लिए बनाया गया महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून फैक्‍टरियों में रोजगार को खत्‍म कर सकता है।

रिसर्च पेपर के मुताबिक अधिकांश परमानेंट वर्कर्स, ऐसे वर्कर्स जो सीधे किसी फर्म की कर्मचारी लिस्‍ट में शामिल हैं और वेतन के अलावा अन्‍य लाभ भी हासिल कर रहे हैं, इस स्‍कीम के तहत काम करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ रहे हैं।

  • दिसंबर 2016 में जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक मनरेगा जॉब में ज्‍यादा मेहनत नहीं है, जो आकर्षण का सबसे बड़ा कारण है।
  • मनरेगा में गड्ढा खोदना और उसे भरने के लिए किसी विशेष कौशल की आवश्‍यकता नहीं है।
  • ऐसे में स्किल्‍ड वर्कर्स अपनी नौकरी छोड़कर इस प्रोग्राम के तहत 100 दिन काम करते हैं और शेष समय के लिए अन्‍य कॉन्‍ट्रैक्‍चुअल जॉब पकड़ लेते हैं।
  • इससे फैक्‍टरियों में लेबर की सप्‍लाई कम हो गई है।
  • यह रिपोर्ट जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के फाइनेंस प्रोफेसर सुमित अग्रवाल, इंडियन स्‍कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) के प्रोफेसर शाश्‍वत आलोक और आईएसबी के रिसर्चर्स यकशुप चोपड़ा और प्रसन्‍ना तांत्री ने तैयार की है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि लेबर की कमी की वजह से फैक्‍टरियों में ज्‍यादा मैकेनाइजेशन की जरूरत पड़ रही है।
  • मनरेगा को मनमोहन सिंह सरकार ने 2006 में लॉन्‍च किया था, तब वर्ल्‍ड बैंक ने इसे दुनिया का सबसे बड़ा सार्वजनिक कार्य का कार्यक्रम बताया था।
  • इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण भारत में अकुशल शारीरिक काम के लिए कम से कम 100 दिन का वेतन सहित रोजगार सुनिश्चित किया जाता है।
  • हालांकि इस कानून में कोई एक्‍सपायरी डेट का उल्‍लेख नहीं है। 2014 में जब नरेंद्र मोदी सरकार सत्‍ता में आई तो उसने इस योजना को चालू रखने का निर्णय लिया।
  • स्‍टडी को तैयार करने में गवर्नमेंट एम्‍प्‍लॉय गारंटी, लेबर सप्‍लाई और फर्म के विचार शामिल किए गए हैं। इसमें 1 अप्रैल 2001 से 31 मार्च 2010 तक के बीच इंडस्‍ट्री और मनरेगा के वार्षिक सर्वे का भी अध्‍ययन किया गया है।

निष्‍कर्ष

परमानेंट वर्कफोर्स में कमी:  मनरेगा की वजह से फैक्‍टरियों में परमानेंट वर्कफोर्स में 10 फीसदी की कमी आई है क्‍योंकि अधिकांश लोग जो कम वेतन पाते थे उन्‍होंने अपने घर वापस लौटकर मनरेगा के तहत काम करने को प्राथमिकता दी। मनरेगा के तहत काम की निगरानी बहुत ही खराब है और इसमें अपने घर पर रहकर ही काम करने का बड़ा लाभ है।

मशनी का बढ़ा उपयोग:  लेबर सोर्टेज से निपटने के लिए फैक्‍टरियों ने मैकेनाइजेशन को अपनाया। मैकेनाइजेशन बढ़ने से अचानक कॉस्‍ट भी बढ़ गई, जिसके परिणामस्‍वरूप फैक्‍टरियों का प्रॉफि‍ट कम हो गया।  वित्‍त वर्ष 2002 से 2010 के दौरान फैक्‍टरियों की फि‍क्‍स्‍ड संपत्ति 11.82 प्रतिशत बढ़ गई और प्‍लांट व मशीनरी में निवेश भी 23.23 प्रतिशत बढ़ गया। इसके अतिरिक्‍त प्‍लांट और मशीनरी के रेंट व लीजिंग खर्च भी 25 फीसदी बढ़ चुका है।

इस तरह के परिणाम से बचने के लिए रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि राशि आबंटन के अलावा कार्यक्रम के डिजाइन को भी महत्‍व देना चाहिए। सामाजिक दृष्टिकोण से मनरेगा को फि‍र से डिजाइन करने की आवश्‍कयता है, ताकि स्किल डेवलपमेंट को बढ़ावा दिया जा सके और लाभप्रद रोजगार उत्पादक श्रमिकों के प्रवेश को हतोत्‍साहित किया जा सके।

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