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Hindi News भारत राजनीति कौन थे पटेल के पिता? वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ब्लॉग लिखकर कांग्रेस पर साधा निशाना

कौन थे पटेल के पिता? वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ब्लॉग लिखकर कांग्रेस पर साधा निशाना

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ब्लॉग लिखकर कांग्रेस पर निशाना साधा है

What was the Name of Sardar Patel’s Father?- India TV Hindi What was the Name of Sardar Patel’s Father?

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिता को लेकर कांग्रेस के नेताओं की तरफ से की गई टिप्पणी पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा, इस मामले पर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ब्लॉग लिखकर कांग्रेस पर निशाना साधा है। वित्त मंत्री ने अपने ब्लॉग में लिखा कि मध्यम वर्ग परिवारों से आने वाले लाखों प्रतिभावान राजनीतिक कार्यकर्ता कांग्रेस के लीडरशिप टेस्ट में फेल हो जाते हैं, उन्होंने लिखा कि कांग्रेस पार्टी राजनीतिक ब्रांड के तौर पर सिर्फ एक सरनेम को तवज्जो देती है। वित्त मंत्री ने कांग्रेस पर वंशवादी राजनीति का आरोप लगाया।

कौन थे पटेल और गांधी के पिता?

वित्त मंत्री ने आगे लिखा कि उन्होंने अपने कुछ जानकार मित्रों से 3 सवाल पूछे, वे तीन सवाल थे, गांधीजी के पिता का नाम क्या है? सरदार पटेल के पिता का नाम क्या है? और सरदार पटेल की पत्नी का नाम क्या है? वित्त मंत्री ने आगे लिखा कि उनके जानकार दोस्तों में कोई भी सटीक उत्तर नहीं दे सका, उन्होंने आगे लिखा कि कांग्रेस की अबतक की राजनीति का देशपर यही दुखद असर है। उन्होंने आगे लिखा कि गांधी जी ने आजादी की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी जबकि सरदार पटेल ने आजादी के बाद 550 से ज्यादा रियासतों को एक किया। लेकिन गांधी जी के पिता कर्मचंद उत्तमचंद गांधी, सरदार पटेल के पिता झावेरभाई पटेल और सरदार पटेल की पत्नी दिवाली बा के ना तो कोई फोटो उपलब्ध हैं और न ही कोई जानकारी उपलब्ध है।

पंडित नेहरू ने अपने मंत्रियों को पटेल की मृत्यु के बात मुंबई जाने से रोका था!

उन्होंने इसका कारण कांग्रेस पार्टी की राजनीति को बताया, उन्होंने लिखा कि कांग्रेस के दशकों के शासन के दौरान शहरों, पुलों, हवाई अड्डों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों या फिर स्टेडियमों के नाम गांधी परिवार के नाम पर रखे गए और कांग्रेस पार्टी के लिए अन्य नेताओं का कोई महत्व नहीं रहा। वित्त मंत्री ने आगे लिखा कि जब सरदार पटेल की मुंबई में मृत्यु हुई थी तो पंडित नेहरू ने अपने कई मंत्रियों को कहा था कि सरदार पटेल को सच्ची श्रद्धांजलि उनकी मृत्यु के दिन भी अपने काम में लगे रहना होगी न कि मुंबई जाना। वित्त मंत्री ने यह भी लिखा कि दिल्ली में विजय चौक पर सरदार पटेल की मूर्ती को लगाए जाने के प्रस्ताव तक को बर्खास्त कर दिया गया था।

वकील होने के बावजूद नेहरू ने अपने जीवन में एक भी केस नहीं लड़ा

वित्त मंत्री ने आगे लिखा कि ज्यादातर लोग यही जानते हैं कि सरदार पटेल एक किसान नेता थे और उन्होंने बारदोली सत्याग्रह में हिस्सा लिया था, लेकिन वे एक सफल वकील भी थे। जबकि दूसरी तरफ पंडित नेहरू ने कानून की पढ़ाई जरूर की थी लेकिन उन्होंने अपने पूरे जीवन में एक भी केस नहीं लड़ा।

पंडित नेहरू ने रखी वंशवादी लोकतंत्र की नींव

वित्त मंत्री ने अपने ब्लॉग में लिखा कि कांग्रेस पार्टी ने सरदार पटेल और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं के योगदान को कम करके आंका जबकि एक परिवार के सदस्यों को ज्यादा तवज्जो दी गई, उन्होंने लिखा कि कांग्रेस पार्टी ने एक परिवार को पार्टी का आदर्श मान लिया। उन्होंने लिखा कि जब पंडित नेहरू ने अपनी पुत्री को अपना उत्तराधिकारी चुना तो उन्होंने भारत के वंशवादी लोकतंत्र की नींव भी रख दी। जब उनकी पुत्री 1975 में तानाशाह बन गई तो कांग्रेस पार्टी का आदर्श भी भारत को एक अनुशासित लोकतंत्र बनाना हो गया।

वंशवादी राजनीति का असर जम्मू-कश्मीर पर

वित्त मंत्री ने आगे लिखा कि हमारा देश वंशवादी राजनीति की कीमत चुका रहा है और देश के कई हिस्सों मे ऐसा देखा गया है। उन्होंने आगे लिखा कि तीन परिवार, जिनमें 2 जम्मू-कश्मीर और एक दिल्ली में है, पिछले 71 साल से जम्मू-कश्मीर के भविष्य से खेल रहे हैं। उन्होंने आगे लिखा कि कांग्रेस पार्टी को देखते हुए कई और क्षत्रीय दल भी कांग्रेस के सिद्धांत पर ही चल पड़े हैं।

मोदी Vs राहुल की चुनौती स्वीकारती है भाजपा

वित्त मंत्री ने वंशवादी राजनीति की खामियां गिनाते हुए आगे लिखा कि 2014 में वंशवादी पार्टियों को करारी हार का सामना करना पड़ा था, उन्होंने लिखा कि 2019 के भारत और 1971 के भारत में बहुत अंतर है। उन्होंने आगे लिखा कि अगर कांग्रेस पार्टी चाहती है, कि 2019 का चुनाव पहुत छोटी हस्ती रखने वाले माता पिता के पुत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ऐसे व्यक्ति (राहुल गांधी) जिन्हें उनकी योग्यता और क्षमता के आधार पर नहीं बल्कि उसके माता पिता की पहचान की वजह से जाना जाता हो, के बीच होना चाहिए, तो भारतीय जनता पार्टी इस चुनौती को खुशी से स्वीकार करती है।

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