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राज्यसभा में आज पेश हो सकता है तीन तलाक बिल

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की महिला शाखा ने तीन तलाक से संबंधित विधेयक के महिला विरोधी होने का आरोप लगाया और राज्यसभा सदस्यों से इसे कानूनी जांच के लिए प्रवर समिति को भेजने को आह्वान किया।

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नयी दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान आज राज्यसभा में सदन के पटल पर मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2018 विचार के लिए लाया जाएगा। वहीं राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने तीन तलाक से संबंधित विधेयक प्रवर समिति का भेजने का प्रस्ताव किया है। आजाद के इस प्रस्ताव पर भी उस समय चर्चा होने की संभावना है जब मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2018 विचार के लिए लाया जाएगा।

आजाद ने अपने प्रस्ताव में प्रवर समिति के लिए 11 विपक्षी सदस्यों के नाम भी प्रस्तावित किए हैं। आजाद द्वारा प्रस्तावित सदस्यों में कांग्रेस के आनंद शर्मा, सपा के राम गोपाल यादव, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, राजद के मनोज कुमार झा भी शामिल हैं। विपक्षी सदस्यों ने विधेयक में संशोधन के लिए नोटिस भी दिए हैं। संजय सिंह ने कहा कि उन्होंने विधेयक में चार संशोधनों की सिफारिश की है।

दूसरी ओर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की महिला शाखा ने तीन तलाक से संबंधित विधेयक के महिला विरोधी होने का आरोप लगाया और राज्यसभा सदस्यों से इसे कानूनी जांच के लिए प्रवर समिति को भेजने को आह्वान किया। इकाई की मुख्य आयोजक असमा ज़ोहरा ने यहां एक विज्ञप्ति में कहा कि ‘मुस्लिम महिला (विवाह का अधिकार संरक्षण) विधेयक 2018’ महिलाओं को सशक्त करने के बजाय शादियों को तोड़ सकता है और परिवार व्यवस्था तथा विवाह संस्था को सीधा आघात पहुंचाएगा।

उन्होंने आरोप लगाया कि विधेयक को ‘मुस्लिम महिलाओं’ को सशक्त करने के लिए लाया गया है लेकिन इसके प्रावधान इसके मकसद को पूरा नहीं करते हैं। ज़ोहरा ने कहा, ‘‘ मुस्लिम महिलाओं को इस विधेयक से कुछ नहीं मिलेगा। बल्कि उन्हें अकेले छोड़ दिया जाएगा। उनके हालात और तकलीफदेह हो जाएंगे।’’ उन्होंने कहा कि किसी भी आपराधिक मामले में, मजिस्ट्रेट जमानत देने पर फैसला करते हैं न कि पीड़ित।

ज़ोहरा ने कहा, ‘‘ पत्नी के सिर्फ इल्जाम लगाने पर शौहर (पति) जेल चला जाएगा। यह आपराधिक न्यायशास्त्र के खिलाफ है।’’ उन्होंने कहा कि यह विडम्बना है कि हमारे देश में पुरुषों और महिलाओं को शादी से पहले, विवाहत्तेर और यहां तक कि कई संबंध रखने की आजादी है। उन्होंने कहा कि धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाना निजी और दीवानी मामलों में आजादी की एक मिसाल है। उन्होंने सवाल किया कि फिर क्यों एक मुस्लिम पुरूष को तलाक देने पर सजा दी जाए।

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