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Hindi News भारत राजनीति भारत में सिर्फ़ एक एनजीओ के लिए जगह है और इसका नाम RSS है: राहुल गांधी

भारत में सिर्फ़ एक एनजीओ के लिए जगह है और इसका नाम RSS है: राहुल गांधी

गिरफ़्तार किए गए लोगों में कोई वामपंथी विचारधारा का समर्थक था तो कोई दलित एक्टिविस्ट लेकिन पुलिस का मानना है कि आरोपियों के कनेक्शन नक्सलियों से हैं जो देश के प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश रच रहे हैं।

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नई दिल्ली: भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में गिरफ़्तारियों पर राजनीति भी तेज़ हो गई है। राहुल गांधी के साथ लेफ्ट पार्टियों ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा है और बेकसूरों को जानबूझकर निशाना बनाने का आरोप लगाया है जबकि पुलिस का दावा है कि गिरफ्तार किए गए लोग माओवादियों और नक्सलियों से जुड़े हुए हैं। भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में मंगलवार को 5 गिरफ़्तारियां हुई।

गिरफ़्तार किए गए लोगों में कोई वामपंथी विचारधारा का समर्थक था तो कोई दलित एक्टिविस्ट लेकिन पुलिस का मानना है कि आरोपियों के कनेक्शन नक्सलियों से हैं जो देश के प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश रच रहे हैं। बावजूद इसके विपक्ष ने सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस के साथ लेफ्ट पार्टी गिरफ़्तार किए गए लोगों के समर्थन में आ गईं।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार पर तंज कसते हुए लिखा, ‘’भारत में सिर्फ़ एक एनजीओ के लिए जगह है और इसका नाम आरएसएस है, बाकी सभी एनजीओ बंद कर दो। सभी ऐक्टिविस्टों को जेल में भेज दो और जो लोग शिक़ायत करें उन्हें गोली मार दो। न्यू इंडिया में आपका स्वागत है।‘’

सीपीएम ने भी गिरफ़्तारियों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया। हालांकि बीजेपी के सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि जो लोग देश की तरक्की के खिलाफ है उन्हें सज़ा मिलनी ही चाहिए।

दरअसल भीमा-कोरेगांव हिंसा की जांच के दौरान जून में पुलिस ने दिल्ली से रोना विल्सन, मुंबई से दलित कार्यकर्ता सुधीर धवले और नागपुर से माओवादियों के वकील सुरेंद्र गडलिंग समेत महेश राउत और प्रोफेसर शोमा सेन की गिरफ़्तारी की थी।

जब आरोपियों से पूछताछ हुई और जांच की गई तो नक्सलियों से आरोपियों के कनेक्शन का खुलासा हुआ। पूछताछ में आरोपियों ने और लोगों के नाम, पते और ठिकाने बताए जिसके आधार पर पुलिस ने मंगलवार को कई शहरों में दबिश दी और 5 लोगों को गिरफ़्तार किया कर लिया।

जो लोग गिरफ्तार किए गए, उनके भी नक्सलियों से जुड़े होने का शक है। ये लोग माओवादी मूवमेंट को जिंदा रखने के लिए काम करते आ रहे हैं। पुलिस को शक है कि ये लोग नक्सलियों की सेंट्रल कमिटी के मेंबर भी हैं।

आरोप है कि गिरफ़्तार किए गए लोग ना सिर्फ़ 31 दिसंबर को पुणे में आयोजित एलगार परिषद के सूत्रधार थे बल्कि एलगार परिषद में भड़काऊ बयानबाज़ी के बाद ही भीमा-कोरेगांव युद्ध के 200 साल पूरे होने पर कार्यक्रम के दौरान दो गुटों में हिंसक झड़प हुई। हिंसा की ये चिंगारी पुणे से भड़की जिसकी आग देखते ही देखते महाराष्ट्र के 18 ज़िलों तक जा पहुंचीं और इसमें एक शख़्स की मौत भी हो गई।

अब पुलिस आरोपियों को सज़ा दिलाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रही है। नक्सलियों की साज़िश को मुंहतोड़ जवाब देने की कोशिश में है लेकिन उससे पहले ही विपक्ष ने विरोध की आवाज़ बुलंद कर दी है।

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