Hindi News भारत राष्ट्रीय उत्तराखंड: चलता-फिरता रेस्तरां 'मरीना' टिहरी झील में डूबा, CM ने दिए जांच के आदेश

उत्तराखंड: चलता-फिरता रेस्तरां 'मरीना' टिहरी झील में डूबा, CM ने दिए जांच के आदेश

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने टिहरी झील में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए ढाई करोड़ रुपये की लागत से तैयार चलते-फिरते रेस्तरां 'मरीना' बोट का आधा हिस्सा मंगलवार को पानी में डूब जाने के कारणों की जांच के आदेश दिए।

<p>floating restaurant marina</p>- India TV Hindi floating restaurant marina

देहरादून: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने टिहरी झील में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए ढाई करोड़ रुपये की लागत से तैयार चलते-फिरते रेस्तरां 'मरीना' बोट का आधा हिस्सा मंगलवार को पानी में डूब जाने के कारणों की जांच के आदेश दिए।

मुख्यमंत्री के एक प्रवक्ता ने यहां बताया कि मुख्यमंत्री ने टिहरी के जिलाधिकारी तथा गढ़वाल मण्डल विकास निगम के प्रबंध निदेशक को इस संबंध में विस्तृत जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री ने इस प्रकार की दुर्घटना की पुनरावृत्ति रोकने के लिए प्रभावी प्रबन्ध करने के आदेश देने के साथ ही चेतावनी भी दी है कि भविष्य में इस प्रकार की लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। प्रवक्ता ने बताया कि टिहरी झील में जलस्तर की कमी के कारण मरीना का कुछ भाग पानी में डूब गया था।

'मरीना बोट' में ठीक एक साल पहले मुख्यमंत्री रावत की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक भी आयोजित की गई थी। उपजिलाधिकारी और टिहरी झील विशेष क्षेत्र पर्यटन विकास प्राधिकरण के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी अजयवीर सिंह का कहना है कि झील का जलस्तर कम होने से मरीना का एक हिस्सा टेढ़ा हो गया था और यह हिस्सा कल तड़के पानी में डूब गया।

टिहरी झील को साहसिक खेल गतिविधियों का केंद्र बनाने की कवायद वर्ष 2015 में शुरू की गई थी। इसी उद्देश्य से झील में मरीना बोट और बार्ज बोट भी उतारी गई थीं। मरीना का जहां झील के बीच में आधुनिक रेस्तरां की भांति खाने-पीने और मनोरंजन के लिए उपयोग किया जाना था, वहीं बार्ज बोट को टिहरी से प्रतापनगर जाने वाले बांध प्रभावितों और यात्रियों को वाहनों समेत पार कराने के लिए उपयोग किया जाना था।

मरीना की लागत करीब ढाई करोड़ रुपये थी जबकि बार्ज बोट 2.17 करोड़ रुपये की लागत से तैयार की गई थी। उद्देश्य दोनों परिसंपत्तियों को लीज पर देकर यात्रियों को झील की तरफ आकर्षित कर लाभ कमाने का था लेकिन कुप्रबंधन के चलते न तो कोई पीपीपी साझेदार इनके संचालन के लिए आगे आया और न ही प्राधिकरण इनका संचालन कर पाया।

Latest India News