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Hindi News भारत राष्ट्रीय पूर्व सीएम और पूर्व पीएम के सरकारी आवास मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से मांगा जवाब

पूर्व सीएम और पूर्व पीएम के सरकारी आवास मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने आज केन्द्र और राज्य सरकारों से कहा कि वे स्पष्ट करें कि क्या पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री लगातार सरकारी आवास में रहने के हकदार हैं।

supreme court- India TV Hindi Image Source : PTI supreme court

नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज केन्द्र और राज्य सरकारों से कहा कि वे स्पष्ट करें कि क्या पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री लगातार सरकारी आवास में रहने के हकदार हैं। शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगलों में रहने का प्रावधान करने संबंधी कानून में राज्य विधान सभा के संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान केन्द्र ओर राज्य सरकारों को अपना दृष्टिकोण रखने का निर्देश दिया। जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस आर भानुमति ने इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमणियम के इस संबंध में सुझाव पर गौर किया। 

पीठ ने कहा, ‘‘न्याय मित्र द्वारा व्यक्त विचार पर गौर करने पर हमारी राय है कि हम इसे केन्द्र सरकार और संबंधित राज्यों, जिनमे इस तरह के विधायी-कार्यकारी निर्देश हो सकते हैं, के विधि अधिकारियों पर इस विकल्प के साथ छोड़ दें कि वे चाहें तो सुनवाई की अगली तारीख पर पेश हों।’’ पीठ ने इसके साथ ही इस मामले की सुनवाई 13 मार्च के लिये स्थगित कर दी। 

कोर्ट एक गैर सरकारी संगठन की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें उप्र मंत्रियों (वेतन, भत्ते और विविध प्रावधान) कानून, 1981 में अखिलेश यादव सरकार द्वारा किये गये संशोधनों को चुनौती दी गयी है। संगठन ने राज्य सरकार के संपदा विभाग के अधीन आवासों का आबंटन विधेयक-2016 के प्रावधान को भी चुनौती दे रखी है। यह कानून ट्रस्टों, पत्रकारों, राजनीतिक दलों, विधान सभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष , न्यायिक अधिकारियों और सरकारी अधिकारियों को सरकारी आवास आबंटन को नियंत्रित करता है। 

न्यायालय ने न्याय मित्र से आग्रह किया कि वह इस आदेश की प्रति अटार्नी जनरल या सालिसीटर जनरल तथा राज्यों के महाधिवक्ताओं के कार्यालयों को भेज दें जिनके यहां उत्तर प्रदेश जैसा कानून होगा। पीठ ने न्याय मित्र से कहा, ‘‘भले ही हम इस कार्यवाही का दायरा नहीं बढ़ायें लेकिन क्या इसमें हिस्सा लेने के लिये इसे केन्द्र और राज्य सरकारों पर नहीं छोड देना चाहिए।’’ इस पर गोपाल सुब्रमणियम ने ने कहा कि यही उचित रहेगा। सुब्रमणियम ने कहा कि चूंकि इस मुद्दे का केन्द्र और राज्यों पर भी असर पड सकता है, अटार्नी जनरल या सालिसीटर जनरल ओर राज्यों के महाधिवक्ताओं को अपने सुझाव देने के लिये कहा जा सकता है। 

इससे पहले, न्याय मित्र ने शीर्ष अदालत को दिये अपने सुझावों में कहा था कि उच्च सांविधानिक पदों से व्यक्तियों के हटने के बाद वे सामान्य नागरिक होते हैं और वे सरकारी आवास के हकदार नहीं हैं। न्यायालय ने पिछले साल इस मामले में सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि इस पर विस्तार से विचार की आवश्यकता है क्योंकि इससे विभिन्न राज्यों और केन्द्र सरकार के सरकारी आवास से संबंधित कानून प्रभावित हो सकते हैं। 

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