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Hindi News भारत राष्ट्रीय विविधता के बाद भी सभी भारत पुत्र, संगठित समाज ही भाग्य परिवर्तन की कुंजी: मोहन भागवत

विविधता के बाद भी सभी भारत पुत्र, संगठित समाज ही भाग्य परिवर्तन की कुंजी: मोहन भागवत

उन्होंने कहा कि प्रणब मुखर्जी-प्रणब मुखर्जी हैं और संघ-संघ है। उन्होंने कहा कि संघ को संपूर्ण समाज को संगठित करने के लिए गठित किया गया है।

RSS chief Mohan bhagwat- India TV Hindi Image Source : ANI RSS chief Mohan bhagwat

नागपुर: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि संघ के कार्यक्रम में इस बार प्रणब मुखर्जी के आमंत्रण को लेकर काफी चर्चा चली। उन्होंने कहा कि प्रणब मुखर्जी-प्रणब मुखर्जी हैं और संघ-संघ है। उन्होंने कहा कि संघ को संपूर्ण समाज को संगठित करने के लिए गठित किया गया है। उन्होंने कहा कि सभी भारतवासी एक हैं, सबकी माता भारत माता है। 

संघ प्रमुख ने प्रणब मुखर्जी का स्वागत करते हुए कहा कि हर साल इस तरह के कार्यक्रम में लोगों को आमंत्रित किया जाता है। उन्होंने कहा, 'जिनके लिए आना संभव होता है वे मेरा निमंत्रण स्वीकार करते हैं। हम उनकी बातों का पाथेय रूप में स्वीकार कर आगे बढ़ते हैं। इसबार इसकी कुछ विशेष चर्च चल पड़ी। पक्ष-विपक्ष की चर्चा का कोई अर्थ नहीं होता... संघ-संघ है और प्रणब-प्रणब रहेंगे....ये प्रतिवर्ष जैसे होता है वैसे ही होता है.. प्रणब मुखर्जी साहब से हम परिचित हुए.. अत्यंत समृद्ध एक ऐसा आदरीणय व्यक्तित्व हमारे पास है.. हमने सहज रूप में आमंत्रण दिया और उन्होंने हमारे स्नेह को पहचान कर निमंत्रण स्वीकार किया।'

उन्होंने कहा कि संघ को संपूर्ण समाज को संगठित करने के लिए गठित किया गया है। विविधता में एकता हजारों वर्ष की परंपरा रही है। भारत की धरती पर जन्मा हर शख्स भारतवासी है। उन्होंने कहा कि भाषा और पंथ की विविधता पहले से रही है। दूसरों की विविधता का सम्मान करते हुए हमें विविधता में निहित एकता में रहना है। सारे विश्व के भेद स्वार्थ कलह मिटाकर सुख शांतिपू्र्ण जीवन देने के लिए अनेक महापुरुषों ने इस देश को सींचा। हम उनके आदर्शों का अनुसरण करते हैं। अंततोगत्वा हम भारत माता के पुत्र हैं... अलग-अलग मतों के बाद भी हम इस देश की सुख समृद्धि की कामना करते हैं। संगठित समाज ही भाग्य परिवर्तन की कुंजी है। 

उन्होंने कहा, 'सरकारें बहुत कुछ कर सकती है लेकिन सबकुछ नहीं कर सकती है। देश के आम लोग जब निस्वार्थ भाव से देश की सेवा के लिए उठ खड़े होंगे तब इस देश की तरक्की होगी। हेडगेवार ने 17 लोगों के साथ संघ की शुरुआत की थी। कुछ लोगों को कुछ मालूम नहीं...पराया कोई नहीं.. दुश्मन कोई नहीं... सबकी माता भारत माता है.. सबके जीवन के ऊपर भारतीय संस्कृति के प्रभाव देखने को मिलते हैं.. सबकी विविधता का सम्मान करते हुए हमे देश को आगे ले जाना है।'

समाज हितैषी आचरण बनानेवाले कार्यकर्ताओं को तैयार करना हमारा उद्देश्य है... संपूर्ण समाज को अपना मानते हुए जो सबको साथ लेकर चले इस तरह से कार्यकर्ता को तैयार करते हैं। संघ प्रमुख ने कहा कि शक्ति को शील का आधार चाहिए। बिना शील के शक्ति का कोई औचित्य नहीं। बिना शील के शक्ति दानवी रूप ले लेती है। उन्होंने कहा कि यहां कोई भी आ सकता है। उन्होंने कहा,  'संघ को अंदर से परखें.. सब आ सकते हैं.. परखकर अपना भाव बना सकते हैं.. हम जो हैं वैसे दिखते हैं.. जो हैं वैसे रहते हैं.. किसी के प्रति दुर्भावना नही रखकर हम अपना काम कर रहे हैं।'

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