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Hindi News भारत राष्ट्रीय इमरान खान के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने से भारत पर क्या होगा असर?

इमरान खान के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने से भारत पर क्या होगा असर?

पाकिस्तान में जो हो रहा है वो भारत के लिए सिर्फ एक सियासी घटना नहीं है। इमरान पीएम बने तो भारत-पाकिस्तान में तल्खी बढ़ सकती है। इमरान खान भारत को लेकर आक्रामक रवैया अपनाते रहे हैं और खराब रिश्तों के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया था।

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नई दिल्ली: भारत का सबसे नज़दीकी पड़ोसी पाकिस्तान सत्ता परिवर्तन के दरवाजे पर खड़ा है। इमरान खान की पार्टी पीटीआई अब तक के रुझानों और नतीजों में सबसे आगे हैं और अब ये लगभग तय हो चुका है कि नवाज शरीफ की पार्टी को उखाड़ फेंकने में इमरान खान कामयाब हो गए हैं। इमरान खान का नारा था 'न्यू पाकिस्तान' लेकिन कहा जा रहा है कि इमरान युग के पाकिस्तान में सियासत से लेकर सियासतदां तक और समर्थन से लेकर विरोध तक सब फौज के मोहरे होंगे। चुनाव के जरिए एक गंदे खेल की गंदी गोटियां खेली गई हैं, जिसमें सिर्फ और सिर्फ चुनाव के नाम पर धांधली हुई है।

पीएमएल-एन के प्रमुख शाहबाज शरीफ ने कहा कि पहले बूथ पर धांधली हुई, उसके बाद चुनाव परिणाम घोषणा करने में। सवाल उठाया जा रहा था कि देर रात तक एक भी परिणाम क्यों नहीं सामने आए। इन  सारे सवालों का जवाब देने पाकिस्तान के चुनाव आयोग के अधिकारी आधी रात को खुद सामने आए और उन्होंने कहा कि तकनीकि कारणों की वजह से परिणामों के ऐलान में देरी हो रही है।

पाकिस्तान में जो हो रहा है वो भारत के लिए सिर्फ एक सियासी घटना नहीं है। इमरान पीएम बने तो भारत-पाकिस्तान में तल्खी बढ़ सकती है। इमरान खान भारत को लेकर आक्रामक रवैया अपनाते रहे हैं और खराब रिश्तों के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया था। इमरान की सोच पाक सेना की सोच से काफी मिलती जुलती है और पाकिस्तानी कट्टरपंथियों का साथ इमरान खान को रास आता है। आतंकियों पर नकेल कसने के बजाय इमरान उनसे बातचीत के हिमायती हैं।

चुनाव प्रचार के दौरान भी इमरान भारत के खिलाफ ज़हर उगलते रहे थे। वो पाकिस्तानी सेना, कट्टरपंथियों के समर्थक माने जाते हैं और पाकिस्तान की राजनीति में सेना के प्रभाव को गलत नहीं मानते इसलिए द्विपक्षीय संबंधों की किताब को फिर से पलटकर देखने का मौका है क्योंकि जानकार कहते हैं अगर सरहद के पार इमरान खान सरकार बनते हैं तो पड़ोस के देश में फौजी बूटों और बंदूकों की धमक संसद के अंदर तक सुनाई पड़ेगी।

हालांकि भारत में शीर्ष सरकारी सूत्रों का कहना है कि जब बात भारत-पाकिस्‍तान संबंधों की आती है तो यह बहुत मायने नहीं रखता कि इस्लामाबाद में किसकी सरकार है, क्‍योंकि आपस के संबंधों को लेकर बातचीत में मुद्दे वही रहेंगे लेकिन विश्‍लेषकों का भी मानना है कि नेतृत्‍व किस तरह का है, यह आपसी बातचीत के तौर-तरीकों को प्रभावित जरूर करता है। विश्‍लेषकों का कहना है कि इस्‍लामाबाद में इमरान की सरकार से डील करना भारत के लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है और इसकी वजह उनका कट्टरपंथ की ओर रूझान है।

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