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Hindi News भारत राष्ट्रीय जम्मू-कश्मीर के पहले UPSC टॉपर शाह फैसल 'रेपिस्तान' ट्वीट पर घिरे, बचाव में आए उमर अब्दुल्ला

जम्मू-कश्मीर के पहले UPSC टॉपर शाह फैसल 'रेपिस्तान' ट्वीट पर घिरे, बचाव में आए उमर अब्दुल्ला

डीओपीटी के नियम के मुताबिक एक सरकारी अधिकारी को ऐसा करने की इजाजत नहीं है। अधिकारी का बचाव करते हुए उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, "मैं इस नोटिस को नौकरशाही के अति उत्साह में आकर उठाए गए मामले के रूप में देखता हूं। वे उस समय की भावना को समझ नहीं पा रहे हैं, जिसमें हम रह रहे हैं।"

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श्रीनगर: जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला बुधवार को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी शाह फैसल के बचाव में उतरे हैं। फैसल सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट को लेकर अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना कर रहे हैं। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की फैसल के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने के बाद राज्य प्रशासन विभाग ने 2010 के भारतीय प्रशासनिक सेवा के टॉपर को नोटिस भेजा। फैसल फिलहाल अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय से परास्नातक कर रहे हैं।

अधिकारी देश के विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर खुलकर अपनी राय देते रहे हैं। डीओपीटी के नियम के मुताबिक एक सरकारी अधिकारी को ऐसा करने की इजाजत नहीं है। अधिकारी का बचाव करते हुए उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, "मैं इस नोटिस को नौकरशाही के अति उत्साह में आकर उठाए गए मामले के रूप में देखता हूं। वे उस समय की भावना को समझ नहीं पा रहे हैं, जिसमें हम रह रहे हैं।"

उन्होंने कहा, "राजस्थान और अन्य जगहों के अधिकारियों द्वारा शासन और आचरण के मानदंडों को ताक पर रखने से आपको कोई परेशानी नहीं है, लेकिन फैसल द्वारा दुष्कर्म के बारे में किया गया ट्वीट आपको परेशान करता है। हालांकि, इससे मुझे किसी तरह की कोई हैरानी नहीं है।"

उमर ने कहा "ऐसा लगता है कि डीओपीटी ने प्रशासनिक सेवाओं से शाह फैसल को निकालने का मन बना लिया है। इस पेज की आखिरी पंक्ति चौंकाने वाली और अस्वीकार्य है जहां वे फैसल की 'सत्यनिष्ठा और ईमानदारी' पर सवाल उठाते हैं। एक व्यंग्यात्मक ट्वीट बेईमानी कैसे है? यह उन्हें भ्रष्ट कैसे बनाता है?।"

अपने बचाव में फैसल ने कहा, "सरकारी कर्मचारियों को सरकारी नीति की आलोचना के लिए घसीटा जा सकता है, मैं इस बात से सहमत हूं। लेकिन, इस मामले में अगर आपको लगता है कि दुष्कर्म केवल सरकारी नीति का हिस्सा है तो आप मेरे खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं जिसे लेकर मुझे यकीन है कि यह सरकारी नीति नहीं है।"

उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हमें यह समझने की जरूरत है कि सरकारी कर्मचारी समाज में रहते हैं और वे समाज के नैतिक प्रश्नों से पूरी तरह से अलग-थलग नहीं रह सकते हैं। बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक पूरी तरह से अस्वीकार्य है।"

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