Hindi News मनोरंजन बॉलीवुड BLOG: 'चांदनी' की जुदाई का सदमा, एक झटके में काफूर हो गई नींद की खुमारी

BLOG: 'चांदनी' की जुदाई का सदमा, एक झटके में काफूर हो गई नींद की खुमारी

आज की सुबह का आगाज ही इस दुखद खबर से हुआ कि श्रीदेवी नहीं रहीं...

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आज की सुबह का आगाज ही इस दुखद खबर से हुआ कि श्रीदेवी नहीं रहीं। मैं बेड पर ही था जब पत्नी ने यह बात बताई। मैं उदास व अनमना सा उठा। नींद की खुमारी एक झटके में काफूर हो गई। श्रीदेवी की यादगार फिल्मों के दृश्य याद आने लगे। मैंने 80के दशक में उनकी पहली फिल्म वीसीआर से वीडियो पर तोहफा देखी थी। तोहफा वैसे तो हिट फिल्म थी पर मुझे रास नहीं आई थी।

मेरी पसंदीदा फिल्में

मुझे श्रीदेवी चांदनी फिल्म में पहली बार पसंद आईं। यश चोपड़ा की इस सुपरहिट फिल्म में श्रीदेवी कमाल की लगी हैं। शोख, चंचल चांदनी का सौंदर्य सम्मोहित करनेवाला था। इसमें श्रीदेवी की बच्चे जैसी तोतली सी आवाज में गाया गीत चांदनी ओ मेरी चांदनी जबरदस्त हिट रहा था। मेरे हाथों में नौ नौ चूड़ियां गीत पर श्रीदेवी ने  कमाल का नृत्य किया था। यह गीत विवाह समारोह का अनिवार्य गीत बन गया।

ये लम्हे ये पल हम

चांदनी के बाद यश चोपड़ा ने श्रीदेवी और अनिल कपूर को लेकर लम्हे फिल्म बनाई थी। ये फिल्म फ्लॉप हुई थी पर मुझे पसंद आई। इसकी कहानी थोड़ी अलग किस्म की थी जो लोगों के गले नहीं उतरी। श्रीदेवी और अनिल कपूर दोनों ने इसमें बेहतरीन अभिनय किया था। श्रीदेवी का मां और बेटी का डबल रोल था।

ऐ जिंदगी गले लगा ले

श्रीदेवी ने दर्जनों हिट फिल्में दी हैं पर अभिनय के लिहाज से उनकी सबसे अच्छी फिल्म कमल हासन के साथ सदमा थी। इसमें उन्होंने मंदबुद्धी युवती की भूमिका विश्वसनीय ढंग से निभाई थी। श्रीदेवी की मासूमियत ने सदमा को उनकी सबसे बेहतरीन फिल्म बना दिया था। इसका एक गीत ऐ जिंदगी गले लगा ले मुझे बेहद पसंद है पर श्रीदेवी को तो मौत ने ही गले लगा लिया। बोनी कपूर की फिल्म मिस्टर इंडिया में भी श्रीदेवी जंची थीं।

इंग्लिश विंग्लिश

जुदाई फिल्म के बाद श्रीदेवी ने 15 साल ब्रेक लेकर बच्चों की देखभाल की। बच्चे थोड़े बड़े हुए तो श्रीदेवी ने अभिनय यात्रा की दूसरी पारी इंग्लिश विंग्लिश से शुरू की। ये बहुत अच्छी फिल्म थी। श्रीदेवी ने मच्योर अभिनय किया था। इस फिल्म को ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया था।

Mom

उससे उम्मीद बंधी की अब उनकी और भी अच्छी फिल्में देखने को मिलेंगी। उन्होंने निराश नहीं किया और mom जैसी लाजवाब फिल्म अंतिम तोहफे के रूप में दी। इसमें उनकी सौतेली बेटी दुष्कर्म के बाद आत्महत्या कर लेती है। इस पर एक साधारण शिक्षका का दोषियों से बदला लेनेवाली मां के रोल को उन्होंने यादगार बना दिया। एकदम सधा हुआ संवेदनशील अभिनय निभा कर वे दर्शकों के दिल पर हमेशा के लिए राज करने के लिए इस दुनिया को असमय ही अलविदा कह गईं।

श्रीदेवी ने फ़िल्मों में लंबी पारी खेली और 'मॉम' उनकी 300वीं फ़िल्म थी। छह बार उन्हें फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला। फ़िल्मों को उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा गया था।

(इस ब्लॉग के लेखक नवीन शर्मा हैं)

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