Hindi News इलेक्‍शन लोकसभा चुनाव 2019 EXCLUSIVE: भोपाल में साध्वी, मालेगांव में बवाल; किधर जाएंगे यहां के मुसलमान?

EXCLUSIVE: भोपाल में साध्वी, मालेगांव में बवाल; किधर जाएंगे यहां के मुसलमान?

मालेगांव छोटे कारखानों का शहर है। यहां फैक्ट्री के अंदर भी काम चलता है और सड़क पर भी। यहां के फर्नीचर मार्केट के कामगारों के लिए नोटबंदी बड़ा मुद्दा है और फर्नीचर का कारोबार करने वालों के लिए जीएसटी भी जंजाल बना हुआ है।

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नई दिल्ली: मालेगांव महाराष्ट्र का वो शहर है जो पिछले 11 बरस से रह-रहकर सुर्खियों में आता है। सितंबर 2008 में इस शहर ने धमाकों का वो जख्म झेला था जिसमें 6 लोगों की जान चली गई थी और इन्हीं धमाकों के बाद पहली बार हिंदू आतंकवाद शब्द सामने आया था। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर इसमें गिरफ्तार हुईं थीं। अब 11 बरस बाद कोर्ट के फैसले के बाद हिंदू आतंकवाद का मुद्दा फिर से उठा है लेकिन इस बार ये मुद्दा खत्म होने के लिए उठा है। बीजेपी ने इन धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से दिग्विजय सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा है। साध्वी को मैदान में उतारने से मालेगांव के मुसलमानों को लग रहा है कि उनके ज़ख्मों को किसी ने कुरेद दिया हो।

साध्वी को टिकट देने से मुसलमान नाराज़ हैं और उनकी इसी नाराज़गी ने शहर में दो फाड़ कर दिया हैं। महाराष्ट्र के नासिक ज़िले का ये दूसरा बड़ा शहर है और धुले लोकसभा क्षेत्र में आता है जहां से रक्षा राज्य मंत्री सुभाष भामरे चुनाव जीते थे। इस बार वो फिर से यहां से चुनावी मैदान में हैं। 10 लाख की आबादी वाले मालेगांव में 75 फीसदी से ज्यादा मुसलमान हैं। 11 साल पहले धमाके हुए लेकिन आज ये शहर शांत है। लोग अपनी रोज़ी-रोटी के लिए दिन रात एक कर रहे हैं। 

बता दें कि सन 1740 में स्थानीय जागीरदार नारो शंकर राजे बहादुर ने मालेगांव का किला बनवाया था लेकिन 1818 में अंग्रेज़ इसी किले से अपनी हुकूमत चलाने लगे। उसी दौरान हैदराबाद से आकर मुसलमानों ने यहां बसना शुरू किया। 1862 के बाद वाराणसी के कुछ मुसलमान बुनकरों ने यहां बसना शुरू कर दिया और करीब सौ साल बाद 1960 तक इस शहर में बड़ी आबादी मुसलमानों की ही हो गई।

2011 की जनगणना के हिसाब से मालेगांव में करीब 76 फीसदी मुस्लिम हैं जबकि हिंदुओं की आबादी 22 फीसदी है। उसके बाद 1.42 फीसदी बौद्ध, 0.82 फीसदी जैन और 0.10 फीसदी इसाई रहते हैं। ज़ाहिर है मालेगांव सीट पर फैसला मुसलमान करते हैं। बीजेपी ने रक्षा राज्यमंत्री सुभाष भामरे को धुले सीट से उम्मीदवार बनाया है तो कांग्रेस ने कुणाल पाटिल को मैदान में उतारा है। यहां मुकाबला भले ही बीजेपी और कांग्रेस के बीच में हो लेकिन दिलचस्प बात ये है कि धुले लोकसभा सीट से 11 मुस्लिम उम्मीदवार भी मैदान में हैं और सबकी नज़रें इन्हीं मुस्लिम वोटरों की तरफ लगी है।

मालेगांव को सिटी ऑफ पावरलूम भी कहा जाता है। इस शहर में 1000 से ज्यादा कारखाने हैं जिनमें लाखों मज़दूर दिन रात काम करते हैं। इन्हीं कारखानों में से एक के मैनेजर रियाज़ शेख मौजूदा सरकार से खुश नहीं हैं। वहीं थोड़ा आगे है शेख महबूब का कारखाना है जहां बिजली नहीं थी और काम रुका हुआ था। पूछने पर पता चला कि बिजली कब आएगी कब जाएगी इसका कोई पक्का पता नहीं होता। तीन कारखाने चलाने वाले शेख महबूब ने दावा किया कि अगर बिजली और मंदी की मार से कोई उबार ले तो मालेगांव का कारोबार गुलज़ार हो जाएगा।

मालेगांव छोटे कारखानों का शहर है। यहां फैक्ट्री के अंदर भी काम चलता है और सड़क पर भी। यहां के फर्नीचर मार्केट के कामगारों के लिए नोटबंदी बड़ा मुद्दा है और फर्नीचर का कारोबार करने वालों के लिए जीएसटी भी जंजाल बना हुआ है। मालेगांव सेंट्रल सीट पर मुसलमान भले ही दखल रखते हों लेकिन धुले लोकसभा सीट का समीकरण बदल जाता है। 

धुले लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा सीटें हैं जिनमें सिंदखेड़ा और धुले शहर बीजेपी के पास है, मालेगांव आउटर शिवसेना के पास, धुले ग्रामीण और मालेगांव सेंट्रल कांग्रेस के पास और बागलाण एनसीपी के पास है। 43 फीसदी मराठा वोटों वाले धुले में मालेगांव के ये मुस्लिम वोटर कितना असर डालता है इसके लिए 23 मई तक इंतज़ार करना होगा।